सौनव्य ८०३३ सौबिगा सौनध-- तज्ञा पु० [म०] , स्त्री० सौनव्यायनो] सुनु के अपत्य । सौपुष्पि-सज्ञा पुं० [म०] वह जो सुपुष्प के गोत्र मे उन्पन्न हुआ हो । सौनहोत्र--मज्ञा पु० [स० शौनहोत्र] १ वह जो शुनहोत्न के गोत्र मे सुपुष्प का गोत्रज। उत्पन्न हुग्रा हो । शुनहोत्न का अपत्य । २ गृत्समद ऋषि । सौप्तिक'-सज्ञा पुं० [सं०] १ रात को सोते हुए मनुष्यो पर आक्र- सौना@-पला पु० [स० स्वर्ण, हिं० सोना] दे० 'सोना' । उ० मग । रात्रियुद्ध । निशारण। रात्रिमारण। २ महाभारत के धरि सोने के पीजरा राखौ अमृत पिवाइ । विप को कीरा रहत दसवें पर्व का नाम । सौप्तिक पर्व । है विप ही मै सुख पाइ।--रसनिधि (शब्द॰) । विशेष इस पर्व मे पाडवो की अनुपस्थिति में उनके सोते हुए सौना-पज्ञा पु० [हिं० सौ दन, सोनन] दे० 'सौंदन' । विजयी दल पर अश्वत्थामा की प्रधानता मे कृतवर्मा, कृपाचार्य सौनाग-नशा पु० [म०] वैयाकरणो की एक शाखा का नाम, जिसका प्रादि द्वारा आक्रमण करने का वर्णन है। द्रौपदी के गर्भ से उल्लेख पतजलि के महाभाष्य मे है। उत्पन्न पाडवो के पाँचो पुन, धृष्टद्युम्न आदि और महाभारत से बचे अनेक वीर इसी युद्ध मे मार डाले गए थे। सौनामि-मज्ञा पु० [म०] वह जो सुनाम के गोन मे उत्पन्न हुग्रा हो। सौनि--सज्ञा पु० [स० स्वर्ण, हिं० सोना] सोने (कुदन) का लाल सौप्तिक-वि० सुप्त सवधी । वर्ण। उ०—केलि की कलानिधान सुदरि महा सुजान आन न सौप्रजास्त्व-सञ्ज्ञा पुं० [स०] अच्छी सतानो का होना। अच्छी समान छवि छाँह पं छिपए सौनि ।--घनानद, पृ० १२ । औलाद होना। सौनिक-सज्ञा पु० [स०] १ मास वेचनेवाला। कसाई। वैतसिक । सौप्रतीक-वि० [स०] १ मुप्रतीक दिग्गज सवधी। २ हाथी का । मासिक । २ कौटिक । वहेलिया। याध । शिकारी। हाथी सवधी। सौगीतेय-सज्ञा पु० [स०] सुनीति के पुत्र, ध्रुव । सौफ-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० सौ फ] दे० सौफ' । सौपथि-सज्ञा पु० [स०] सुपथ के अपत्य । सोफिया-सज्ञा स्त्री० [हिं० सी फ] रूसा नाम की घास जव कि वह सौपना--कि० स० [हिं० सौंपना] दे० 'सौपना' । पुरानी और लाल हो जाती है। सौपर्ण' -सज्ञा पु० [स०] १ पन्ना। मरकत । २ सोठ। शुठी। सौफियाना -वि० [हिं० सोफियाना] दे० 'सोफियाना' । ३ गरुड जी के अस्त्र का नाम । गरुत्म अस्त्र । ४ ऋग्वेद का सौफो-सज्ञा पु० [हिं० सूफी, सोफो] दे० 'सूफी' । उ० - पवरि एक सूक्त । ५ गरुड पुराण। सबै लीनी नृपति, चलिय दूत निज मग्ग। आतुर पति गज्जन सौपर्ण--वि० सुपण अथवा गरुड सबधी । गरुड का। नमिय, सौफी बेसह जग्ग। -पृ० रा०, १९९७ । सौपर्णकेतव-वि० [स०] विष्ण सबधी। विष्णु का । सौबल-सज्ञा पु० [सं०] गाधार देश के राजा सुवल का पुन, शकुनि । सौपर्णव्रत--सशा पु० [स०] एक प्रकार का व्रत । गरुडव्रत । उ०-(क) जात भयो ताही समय सभा भवन कुरुनाथ । विकरण, दुश्शासन, करण, सौबल शकुनी साथ । (ख) गधार सौपर्णी-मज्ञा स्त्री० [सं०] पातालगारुडी लता। जलजमती। धरापति सुत सुभग मगधराज हित रस सो। भट सौबल सौबल सीपर्णेय---मज्ञा पु० [स०] १ सुपर्णो के पुत्र, गरुड़। २ गायत्री सग ले जग रग करिव लसो।-गोपाल (शब्द॰) । आदि छद (को०)। सौबलक'-सज्ञा पुं० [सं०] सुबल का पुन, शकुनि । सौपये--सञ्चा पु० [स०] सुपर्ण (बाज या चील) पक्षी का स्वभाव सौवलक' -वि० सौवल (शकुनि) सवधी । सौबल (शकुनि) का। या धर्म। सौबलो'-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] सुवल की पुत्री, गाधारी। धृतराष्ट्र सौपर्य:--वि० दे० 'मीपण' । की पत्नी। सौपर्व-वि० [स०] सुपर्व सवधी। सुपर्व का। सौबलो- वि० सौबल (शकुनी) सवधी । सौवल । सौपस्तबि-सचा पुं० [स० सौपस्तम्वि] एक गोत्रप्रवर्तक ऋषि का नाम । सौबलेय-सज्ञा पुं० [स०] सुबल के पुत्र शकुनि का एक नाम । सौपाक-सज्ञा पु० [स०] एक वणसकर जाति जिसका उल्लेख महा- सौबलथी-सज्ञा स्त्री० [सं०] सुबल की पुत्री और धृतराष्ट्र की पत्नी भारत में है। गाधारी का एक नाम । सौपातव--सज्ञा पुं० [सं०] एक गोत्रप्रवर्तक ऋपि। सौबल्य-सञ्ज्ञा पु० [स०] महाभारत मे वर्णित एक प्राचीन जनपद सौपमायवि-सज्ञा पु० [स०] वह जो सुपामा के गोत्र मे उत्पन्न हुआ का नाम। हो । सुपामा का गोत्रज। सौबिगा सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की बुलबुल । सौपिक-वि० [स०] १ सूप या व्यजन डाला हुआ। २ सूप या विशेष-यह बुलबुल पश्चिमी भारत को छोडकर प्राय शेष व्यजन सवधी। समस्त भारत मे पाई जाती और ऋतु के अनुसार रग बदलती सौपिष्ट-सज्ञा पु० [स०] वह जो सुपिष्ट के गोत्र मे उत्पन्न हुअा हो। है। यह लवाई मे प्राय एक वालिश्त से कुछ कम होती है । सुपिष्ट का गोत्रज । इसके ऊपर के पर सदा हरे रहते है। यह कोडे मकोडे खाती सौपिष्टी-सज्ञा पुं० [स०] दे० 'सौपिष्ट'। और एक बार मे तीन अडे देती है।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/५०२
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