सौहणं ८०११ सोहरा सोहणg+-सज्ञा पुं० [सं० स्वप्न, प्रा० सोहण] दे० 'स्वप्न' । उ० सलोने गात ।-विहारी (शब्द०) । २. अच्छा लगना । उपयुक्त सोहण याई फर गया मई सर भरिया रोइ । आव सोहागण होना । फवना । जैसे,—(क) यह टोपी तुम्हारे सिर पर नही नीदडी बलि प्रिय देखू सोइ ।-ढोला०, दू० ५१० । सोहती। (ख) ऐसी वातें तुम्हे नही सोहती। उ०—(क) यह सोहणा-सञ्ज्ञा पु० [स० स्वप्न, प्रा० सुहिणा] सपना। स्वप्न । पाप क्या हम लोगो को मोहता है।--प्रताप (शब्द॰) । (ख) उ०---(क) जउ सोहणो साचेइ होइ सोहणो बडी बसत्त । ऐसी नीति तुम्हें नहिं सोहत ।-गोपाल (शब्द॰) । -ढोला०, दू० ५०६ । सोहना--वि० [वि० स्त्री० सोहनी] १ सोहन। सुहावना। शोभा- सोहदा-सज्ञा पु० [फा० शुहदह] दे० 'शोहदा' । युक्त । उ०-को है सरद ससि मुख रहे लसि चपल नैना सोहना । सोहन'--वि० [सं० शोभन, प्रा० सोहण] [वि॰ स्त्री० सोहनी] अच्छा नद० ग्र०, पृ० ३७५ । २ सुदर । मनोहर । जैसे,—सोहनी लकडी, सोहना बगीचा । लगनेवाला । सुदर । सुहावना। मनभावना । मनोहर । उ०- (क) तहँ मोहन सोहन राजत है । जिमि देखि मनोभव लाजत सोहना-क्रि० स० [सं० शोधन, प्रा० सोहण] खेत मे उगी घास निकालकर अलग करना। निराना । हैं। (ख) हीर जराऊ मुकुट सीस कचन को सोइन ।गोपाल (शब्द॰) । (ग) चित चोरना विवि खभ वातक रतन डांडी सोहना'-सञ्ज्ञा पुं० [फा० सोहान] कसेरो का एक नुकीला औजार सोहनी.-नद० ग्र०, पृ० ३७५ । जिससे वे घरिया या कुठाली मे, सांचे मे गली धातु गिराने के लिये, छेद करते है। सोहन'-सज्ञा पुं० सुदर पुरुष। नायक । उ०--प्यारी की पीक सोहनाइत - सज्ञा पुं॰ [देशी] एक अोहदा या पद । उ०-गोसामिन कपोल मे पीके विलोकि सखीन हंसी उमडी सी । सोहन सौह न माझिहे-रनाहे-मलिकह सोहनाइत महामा वोनो, लोचन होत सुलोचन सु दरि जाति गडी सी।-देव (शब्द०)। अगुजाडी।-वर्ण०, पृ०२। सोहन-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक बडी चिडिया जिसका शिकार करते है। विशेष-यह बिहार, उडीसा, छोटा नागपुर और बगाल को हो सोहनी सज्ञा स्त्री० [स० शोधनी] १ झाड । बुहारी। सरहट । २ खेत मे से उगी घास खोदकर निकालने की क्रिया। निराई। हिंदुस्तान मे सर्वत्र पाई जाती है। यह कीडे, मकोडे, अनाज, सोहनी'-वि० स्त्री० [हिं० सोहना] सुदर। सुहावनी। मनभावनी । फल, घास के अकुर आदि सब कुछ खाती है। पूंछ से लेकर उ०-साँवरी सी रही सोहनी सूरवि हेरत को जुवती नहिं चोच तक इसकी लवाई डेढ हाथ तक होती है और वजन मोहैं ?-सुदरीसर्वस्व (शब्द०)। भी बहुत भारी, प्राय दस सेर तक, होता है । इसका मास बहुत सोहनी'---सज्ञा स्त्री- सोहिनी नाम की रागिनी। सोहबत-सज्ञा स्त्री॰ [अ०] १ सग साथ । सगत। २ सभोग। स्त्री- सोहन --पूज्ञा पुं० एक बड़ा पेड जो मध्यभारत तथा दक्षिण के जगलो मे बहुत होता है। सोहबती-~-वि० [फा०] सगी । साथी । सोहबतवाला। विशेष—इसके हीर की लकडी बहुत कडी, मजबूत, चिकनी, टिकाऊ सोहमस्मि-पद [सं० स + अहम् + अस्मि, सोऽहमस्मि] दे० 'सोऽह- तथा ललाई लिए काले रंग की होती है । यह मकानो मे लगती मस्मि' । उ०--सोहमस्मि इति वृत्ति अखडा। दीप सिखा सोइ है तथा मेज, कुरसी आदि सजावट के सामान बनाने के काम मे परम प्रचडा ।—तुलसी (शब्द०)। अाती है। सोहन शिशिर मे झाड पत्ते देनेवाला पेड है। इसे सोहर'-~मशा पुं० [स० सूतिगृह । हिं० सोहना, सोहला] १ एक प्रकार रोहन और सूमी भी कहते हैं। का मगलगीत जो स्त्रियाँ घर मे बच्चा पैदा होने पर गाती है। सोहन-सञ्ज्ञा पु० [फा० सोहान] एक प्रकार की वढइयो की रेती या सोहला। उ०-रानि कौसिला ढोटा जायो रघुकुल कुमुद जुन्हैया । सोहर सोर मनोहर नोहर माचि रह्यौ चहुं धया।-- यो०-तिकोनिया सोहन = तीन कोने की रेती । रघुराज (शब्द०)। २ मागलिक गीत । उ०-कोसिल्यै सीत सोहन चिड़िया-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० सोहन + चिडिया] दे० 'सोहन'-३ । करि भागे। चली अवध मदिर अनुरागे। सहसन सा सहचरी सोहन पपड़ी-सज्ञा स्रो० [हिं० सोहन + पपडी] एक प्रकार की भाव । महामनोहर सोहर गावै।-रघुराज (शब्द०)। मिठाई जो जमे हुए कतरो के रूप मे होती है। सोहर -सज्ञा स्त्री० [सं० सूतका, अयवा स० सूतिगृह, सूतागृह, प्रा० सोहन हलवा-~-सञ्ज्ञा पुं० हिं० सोहन + अ० हलवा] एक प्रकार की सुइहर, सूप्राहर] सूतिकागृह । सौड । सौरी। स्वादिष्ट मिठाई जो जमे हुए कतरो के रूप मे और घी से तर सोहर-सञ्ज्ञा सी० [देश॰] १ नाव के भीतर की पाटन या फर्श । २ नाव का पाल खीचने की रस्सी। सोहना-क्रि० अ० [स० शोभन, प्रा० सोहण] १ शोभित होना। सोहरना।--क्रि० अ० [स० सु+ Vस्तू >स्तर, स्तार] ऊपर से नीचे सुदरता के साथ होना। सजना। उ०—(क) नासिक कीर, तक फैलकर लटकना । फैल जाना। फैलना। विस्तृत होना। कंवल मुख सोहा। पदमिनि रूप देखि जग मोहा ।-जायसी जैसे,-पहिरे के आटे न सोहा जाय (लोकोक्ति) । (शब्द०)। (ख) काक पच्छ सिर सोहत नीके । -तुलसी सोहराल-वि० [सं० शोभन] शोभायुक्त । उपयुक्त। अच्छा। (शब्द०)। (ग) रत्न जटित ककन बाजूबंद नगन मुद्रिका उ०-लेखा देणां सोहरा, जे दिल सांचा होइ। उस चगे सोहै।-सूर (शब्द०)। (घ) सोहत ओढ़े पीत पट स्याम दीवान मैं पला न पकडे कोइ ।-कवीर म०, पृ० ४२ । स्वादिष्ट कहा जाता है। प्रसग। रदा। होती है।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४९१
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