पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४८२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

का नाम। का राजा। मोमकुल्या ८००२ सोमनाथ करती है । पुरुपो को भी दूषित वीर्य की शुद्धि के लिये यह दिया सोमकुल्या-सशा सी० [स०] मार्कंडेय पुराण के अनुसार एक नदी जा सकता है। सोमकेश्वर--सज्ञा पु० [सं०] १ वामन पुराण के अनुसार एक राजपि सोमचमस-सचा पु० [स०] सोम पान करने का पान । का नाम जो भरद्वाज के शिष्य थे। २ सोमक जाति या देश सोमज'--सज्ञा पुं० [स०] १ सोम का पुत्र, बुध ग्रह । २ दूध । सोमज-वि० चद्रमा से उत्पन्न । सोमक्रतवीय-सज्ञा पु० [स०] एक साम का नाम । सोमजाजी-सञ्ज्ञा पुं० [सं० सोमयाजिन्] दे० 'सोमयाजी' । उ०- व्याध अपराध की साध राखी कौन? पिंगला कौन मति भक्ति सोमक्रतु-सज्ञा पुं० स०] सोमयज्ञ । भेई। कौन धौ सोमजाजी अजामिल अधम ? कौन गजराज धौं सोमक्रयण-सञ्ज्ञा पुं॰ [म.] सोम के मूल्य पर कार्य करनेवाला [को०] । वाजपेई । —तुलसी (शब्द॰) । सोमक्रयपी--संज्ञा स्त्री० [स०] सोममूल्य के रूप मे प्राप्त गो। सोमक्षय-सज्ञा पु० [स०] अमावस्या तिथि, जिसमे चद्रमा के दर्शन सोमतीर्थ--मज्ञा पुं॰ [स०] एक तीर्थ का नाम जिसका उल्लेख महा- भारत मे है। इसे प्रभास क्षेत्र भी कहते है। नहीं होते। सोमदर्शन-सञ्ज्ञा पुं० [स०] एक यक्ष का नाम । (बौद्ध)। सोमक्षीरा-सज्ञा स्त्री० [स०] सोमवल्ली । सोमराजी । बकुची । सोमदा -सज्ञा स्त्री० [म०] १ रामायण के अनुसार एक गधर्वी का सोमक्षीरी--सज्ञा स्त्री० [स०] वकुची। सोमवल्ली। नाम । २ गधपलाशी । कपूरकचरी । सोमखडा-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० सोमखण्डा] बकुची। सोमवल्ली । सोमदिन-सज्ञा पुं० [स० सोम + दिनसोमवार। चद्रवार। उ०- सोमखड्डक--सञ्ज्ञा पुं० [स०] नेपाल के एक प्रकार के शैव साधु । रस गोरस खेती सकल विप्र काज सुभ साज । राम अनुग्रह सोम सोमगवक--सज्ञा पुं० [म० सोमगन्धक] रक्त पद्म । लाल कमल । दिन प्रमुदित प्रजा सुराज। -तुलसी (शब्द॰) । सोमगति-वि० [अ० शूम, हिं० सूम] सूम का आचरण करने- सोमदेव--सज्ञा पुं० [सं०] १ सोम देवता। २ चद्रमा देवता । ३ वाला । कृपण। उ०--अजा कठ कुच पै नही क्या पीव दुहि कथासरित्सागर के रचयिता का नाम जो काश्मीर मे ११वी ग्वाल । ज्यो रज्जब सिख सोमगति गुरु भेपा बेहाल ।- शताब्दी में हुए थे। रज्जव० वानी, पृ० १४ । सोमदेवत--वि० [स०] जिसके देवता सोम हो । सोमगर्भ-सज्ञा पु० [स०] विष्णु का एक नाम । सोमदेवत्य--वि० [सं०] दे० 'सोमदेवत' । सोमगा--सज्ञा स्त्री॰ [म०] वकुची । सोमराजी । सोमवल्ली । सोमदैवत-सञ्ज्ञा पुं० [स०] मृगशिरा नक्षत्र । सोमगिरि-सज्ञा पु० [सं०] १ महाभारत के अनुसार एक पर्वत का नाम । २ मेरुज्योति । ३ एक आचार्य का नाम । सौमदैवत्य-वि० [स०] दे० 'सोमदेवत' । सोमघान-वि० [सं०] जिसमे सोम हो । सोमयुक्त । सोमगृष्टिका--सज्ञा स्त्री० [स०] पेठा । कुष्माड लता। सोमगोपा सज्ञा पुं० [स०] अग्नि । सोमधारा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] १ आकाश । आसमान । २ स्वर्ग। सोमग्रह--सञ्ज्ञा पु० [स०] १ चद्रमा का ग्रहण । २ घोडो का एक ग्रह सोमधेय-सज्ञा पुं० [स०] महाभारत के अनुमार एक प्राचीन जनपद और जाति । जिससे ग्रस्त होने पर वे कांपा करते हैं। ३ सोमपान । सोम रस का पात्र (को०)। सोमनदी-सज्ञा पुं० [स० सोमनन्दिन्] १. महादेव के एक अनुचर का नाम । २ एक प्राचीन वैयाकरण का नाम । सोमग्रहए-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ चद्रमा का ग्रहण। चद्रग्रहण। २ वह जो सोमरस को ग्रहण या धारण करे (को०)। सोमनदीश्वर-सञ्चा पुं० [स० सोमनन्दीश्वर] शिव जी के एक लिंग सोमघृत--मञ्ज्ञा पुं० [स०] स्त्रीरोगो की एक औपध । सोमन--सज्ञा पु० [स० सौमन ] एक प्रकार का अस्त्र । विशेप--इसके बनाने की विधि इस प्रकार है-सफेद सरसो, तथा पिशाच अस्त्र अरि मोहन लेहु राज दुलहेटे। तामस सोमन बच, ब्राह्मी, शखाहुली, पुनर्नवा, दूधी (क्षीर काकोली) खिरैटी, लेहु वार बहु शनुन को दरभेटे। -रघुराज (शब्द॰) । कुटकी, खभारी के फल (जरिश्क), फालसा, दाख, अनतमूल, सोमनस-सज्ञा पुं० [सं० सौमनस्य] दे० 'सौमनस्य' । उ०—पारि- काला अनतमूल, हलदी, पाठा, देवदारु, दालचीनी, मुलैठी, भाद्र सोमनस अरु अविज्ञात सुरवर्ष । रमणक अप्याजन सहित मजीठ, त्रिफला, फूल प्रियगु, अडूसे के फूल, हुरहुर, सोचर नमक देउ सुरोवन हर्ष ।--केशव (शब्द०)। और गेर ये सब मिलाकर एक सेर घृतपाक विधि के अनुसार सोमनाथ-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ प्रसिद्ध द्वादश ज्योतिलिंगो मे से एक । चार सेर गौ के घी मे पाक करना चाहिए। गर्भवती स्त्री को २ काठियावाड के पश्चिम तट पर स्थित एक प्राचीन नगर दूसरे महीने से छह महीने तक इसका सेवन कराया जाता है । जहाँ उक्त ज्योतिलिंग का मदिर है। इससे गर्भ और योनि के समस्त दोपो का निवारण होता है, विशेष—इतिहासज्ञो के अनुसार इस मदिर के विपुल धन, रत्न रजवीर्य शुद्ध होता है और स्त्री वलिष्ठ तथा सुदर सतान उत्पन्न की प्रसिद्धि सुनकर सन् १०२४ ई० मे महमूद गजनवी ने इस- - का नाम। उ०-