पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४७२

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सोख्ता ७०६२ सोज सोख्ता'--सज्ञा पुं० [फा० सोलह्] १ जला हुआ कोयला । २ एक कहै कलको है। सोच नही धन पावन को सखि सोच यहै उनके प्रकार का मोटा खुरदुरा कागज जो स्याही सोख लेता है। छल को है। -बेनी प्रवीन (शब्द०)। ४ पछतावा । पश्चा- स्याही सोख। स्याही चट । (अ० व्लाटिंग पेपर)] । ३ वास्द त्ताप। उ देखिकै उमा को रुद्र लज्जित भए, कहो मैं कौन से सपृक्त या रजित वस्न जो शीघ्र जल उठता है (को॰) । यह काम कोनो। इद्रिजित ही कहावत हुतो पापु कों, समुझि सोख्ता-नि० १ जला हुआ। २ विषादयुक्त। खिन्नमनस्क (को०] । मन माहिं ह रह्यो खीनो। चतुर मुज रूप धरि प्राइ दरसन ३ प्यार करनेवाला। प्रेमी (को०)। दियो कह्यौ शिव सोच दीजै बिहाई।-सूर०, ७।२० । सोगद-सज्ञा स्त्री० [स० सौगन्ध, हिं० सौगद] दे॰ 'सौगद' । सोचक-सा पु० [स० सौचिक] दरजी। (दि०)। उ०-गुरु गीत सोग-सज्ञा पु० [स० शोक, प्रा० सोक, सोग] शोक । दुख। रज । बाद वाजिन्न नृत्य । सोचक सु वाच्य सविचार कृत्य । मनि उ०--(क) जाके बल गरजे महि कांपे । रोग सोग जाके सिमा मन्न जन वास्तुक विनोद । नेपथ विलास सुनि तत्त मोद।- न चाँपे - रामानद०, पृ०७ । (ख) निसि दिन राम राम की पृ० रा०, ११७३२। भक्ति, भय रुज नहिं दुख सोग।—सूर (शब्द०)। (ग) चिन सोचना-क्रि० अ० [स० शोचन, शोचना (= दुख, शोक, अनुताप)] पितु घातक जोग लखि भयो भएँ सुत सोग। फिर हुलस्यो जिय १ किसी प्रकार का निर्णय करके परिणाम निकालने जोयसी समुझ्यो जारज जोग।-बिहारी (शब्द०)। या भवितव्य को जानने के लिये बुद्धि का उपयोग करना। मन मे किसी बात पर विचार करना। गौर करना। मुहा०--सोग मनाना = किसी प्रिय या सवधी के मर जाने पर शोकसूचक चिह्न धारण करना और किसी प्रकार के उत्सव या जैसे,—(क) मैं यह सोचता हूँ कि तुम्हारा भविष्य क्या मनोविनोद आदि मे समिलित न होना । होगा। (ख) कोई बात कहने से पहले सोच लिया करो कि वह कहने लायक है या नहीं । (ग) इस बात का सोगन --सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० सौगद] सौगद। कसम । (डिं०) । उ०-- (क) नयाँरा सोगन कर, भै मान सुण भूत । रामत दूला री उत्तर मैं सोचकर दूगा । (घ) तुम तो सोचते सोचते सारा समय विता दोगे। उ०--मोचत है मन ही मन मैं अव रमै राडूला री पूत ।--वाँकी० ग्र०, भा॰ २, पृ० १३ । (ख) कीज कहा वतियां जगछाई। नीचो भयो ब्रज को सत्र सीस लेखण तोला ताकडी, सोगन नै जीकार ।-वांकी० ग्र०, भा० मलीन भई रसखानि दुहाई। -रसखान (शब्द०)। २ चिंता २, पृ०६६। करना। फिक्र करना। उ०-(क) अब हरि आइहैं जिन सोगिनी-वि० स्त्री० [हिं० सोग + इनी (प्रत्य॰)] शोक करने- सोचे । सुन विधुमुखी वारि नयनन ते अब तू काहे मोर्च।- वाली। शोकार्ता । शोकाकुला । शोकमग्ना । उ०—मुख कहत सूर (शब्द०) । (ख) कौनहुँ हेतन पाइयो प्रीतम जाके धाम । आजु बधि धृष्ट अरि तरपहुं चौसठ जोगिनी। विललात फिर ताको सोचति सोच हिय केशव उक्ताधाम 1- केशव (शब्द०) वन पात प्रति मगध सु दरी सोगनी ।--गोपाल (शब्द॰) । ३ खंद करना । दुख करना। उ०-माथे हाथ मंदि दोउ सोगी-वि० [स० शोकिन्, हिं० सोग] [स्त्री० सोगिनी] १ शोक मनाने- लोचन। तनु धरि सोचु लाग जनु सोचन ।- तुलसी वाला। शोकात । शोकाकुल । दुखित । २ सोच विचार करता (शब्द०)। हुआ । चितित । उदास। सोचविचार--सज्ञा पु० [हिं० सोच+ सः विचार] समझबूझ । सोच-सज्ञा पुं० [सं० शोच] १ सोचने की क्रिया या भाव । जैसे,- गौर । जैसे,—(क) सोच विचार कर काम करो । (ख) तुम अच्छी तरह सोच लो कि तुम्हारे इस काम का क्या अच्छी तरह सोचविचार लो। फल होगा। सोचाना-क्रि० स० हि० सोचना] दे० 'सूचाना' । उ०--सुदिन यौर-सोचसमझ । सोचविचार । सोचसाच = दे० 'सोचविचार'। सुनखत सुधरी सोचाई। वेगि वेदविधि लगन धराई। -तुलसी उ०-हमे भी बहुत सोच साच के धन्यवाद देना पडा -प्रेम- (शब्द०)। घन॰, भा॰ २, पृ०२३ । सोचु - -सज्ञा पु० [हिं० सोच] दे० 'सोच' । उ०--सती सभीत महेस २ चिंता। फिक्र । जैसे,—(क) तुम सोच मत करो, ईश्वर भला पहिं चली हृदय बड सोचु ।--तुलसी (शब्द०)। करेंगे। (ख) तुम किस सोच मे बैठे हो? उ.---(क) चल्यो सोच्छ्वास'-वि० [सं०] १ प्रसन्न। खुश। २ उच्छ्वासयुक्त । अनखाइ समझाइ हारे वातनि सो, 'मन | तू समझ, कहा कीज जोरो से सांस लेता हुआ। ३. शिथिल । सुस्त । टीला [को०] । सोच भारी है ।'-भक्तमाल (प्रिया०), पृ० ५०५। (ख) नारि तजी सुत सोच तज्यो तब । केशव (शब्द॰) । ३ सोच्छ्वास-क्रि० वि० आराम । प्रसन्नतापूर्वक [को॰] । शोक । दु ख । रज । अफसोस । उ०—(क) तुलसी के दुह हाथ सोछ-क्रि० वि० [स० स्वच्छ प्रा० सुच्छ] साफ साफ । सुस्पष्ट मोदक हैं, ऐसी ठाउँ जाके मुए जिए सोच करिहैं न लरिको।- स्वच्छ । उ०--ऐसा इप्ट संभारिये चरनदास कहि सोछ।- तुलसी (शब्द॰) । (ख) नेह के मोहिं बुलायो इत अव बोरत चरण० वानी, पृ० ४६ । मेह महीतल को है। प्राई मझार महावत मै तन मै श्रम सीकर सोज'--सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० सूजना] १ सूजने की क्रिया, भाव या की झलको है। न मिले अव नौल किसोर पिया हियो बेनी प्रवीन अवस्था। सूजन । शोथ । २ दे० 'सौज'। उ०-तुलसी