७०६४ से गर (को०)। ८ सतान (को०)। ६ गभारी का पेड । खभारी। १० लिये होती है कि कही उनमे कोई आपत्तिजनक या भडकानेवाली एक प्रकार की ईट जो यज्ञ की वेदी बनाने के काम मे ग्राती थी। वात तो नहीं है। --सज्ञा पु० उग्रसेन के एक पुत्र का नाम । विशेष-बायस्कोप के फिल्मो या नाटको की जांच और काट छांट सृष्टिकर्ता-सझा पु० [म० सृष्टिकत्त] १ सृष्टि या ससार की रचना करने के लिये तो मेसर बरावर रहता है, पर समाचारपत्रो करनेवाला, ब्रह्मा। २ ईश्वर । और तारघरो मे उसी समय सेंमर बैठाए जाते है जब देश में सृष्टिकृत- --सज्ञा पुं० [सं०] १ दे० 'मृष्टिकर्ता'। २ पित्तपापडा । विद्रोह या किसी प्रकार की उत्तेजना फैली होती है अथवा किमी पर्पटक। देश से युद्ध छिडा होता है। सेसर ऐसी बातो को प्रकाशित नही होने देता जिनमे देश में और भी उत्तेजना फैन सकती हो सृष्टिदा--सज्ञा पु० [स०] १ ऋद्धि नामक एक अष्टवर्गीय प्रोपधि । अथवा शन्नु या विरोधी को किसी प्रकार का लाभ पहुंचता हो। २ दे० 'सृष्टिप्रदा'। यौ०-सेंसर बोर्ड = सेसर करनेवाले अनेक अधिकारियों का समूह सृष्टिपत्तन--सज्ञा पुं० [स०] एक प्रकार की मत्रशक्ति । या समिति । सृष्टिप्रदा--सज्ञा स्त्री० [स०] गर्भदावी क्षुप । श्वेत कटकारी। सफेद मॅसस-सञ्ज्ञा पुं० [अ० सेन्सस] दे० 'मर्दुमशुमारी' ! भटकटैया। से --प्रव्य० [म० स्वयम्, प्रा० सय, सइँ = से] स्वय। खुद । सृष्टिविज्ञान--सन्ना पु० [स०] वह विज्ञान या शास्त्र जिसमे सृष्टि की उ०-से वुझ्झ सुरतान दूत पच्छिम मुविहान ।-पृ०, रचना प्रादि पर विचार किया गया हो। रा०, १०८ । सृष्टिशास्त्र-सज्ञा पुं० [१०] दे० 'सृष्टिविज्ञान' । से कर--सच्चा स्त्री० [हिं० सेकना] १ प्रांच के पाम या दहकते अगारे सृष्टिसृज-सज्ञ -सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] दे० 'सृष्टिकर्ता' [को०] । पर रखकर भूनने की क्रिया । २ अांच के द्वारा गरमी पहुंचाने सृष्टयतर-मज्ञा पुं० [स० सृष्टयन्तर] वह सतान जो अन्य जाति के की क्रिया । जैसे,--दद मे से क से बहुत लाभ होगा। विवाह से हुई हो [को०] । क्रि० प्र०-करना।--देना । —होना। सेंजी---सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की घास जो पजाव मे चौपायो यौ०--से कसाँक। को खिलाई जाती है । यह कपास के साथ बोई जाती है। सेक-मशा स्त्री० लोहे की कमाची जिसका व्यवहार छीपी कपडे छापने सेंट-सज्ञा पुं० [अ० सेन्ट] १ सुगधियुक्त द्रव्य । २ महक । गध । मे करते हैं। खुशबू । उ०-वेणी सेंट से महकाई सी, जरा रेडियो को ऊंचा सेकना-क्रि० स० [स० श्रेपण ( = जलाना, तपाना)] १ आँच के कर दीजो, दुलहन । -वदनवार, पृ० ४४ । ३ शत। मौ। पास या प्राग पर रखकर भूनना। जैसे,-रोटी से कना। २ ४ किसी वडे सिक्के का सौवां भाग। आँच के द्वारा गरमी पहुंचाना । आँच दिखाना। अाग के पास सेटर-सज्ञा पु० [अ० मेन्टर १ गोलाई या वृत्त के बीच का बिंदु । ले जाकर गरम करना । जैसे,—हाथ पर सेंकना। केद्र । मध्यविंदु । २ प्रधान स्थान । जैसे,--परीक्षा का सेंटर। सयो० क्रि०-डालना।-देना।-लेना। सेटेस--सज्ञा पु० [अ० सेन्टेन्स] वाक्य । उ०-अग्रेजी का एक स्टेंस मुहा०--प्रांख से कना - सुदर रूप देखना। नजारा करना। धूप भी ठीक से नहीं बोल सकते।--सन्यासी, पृ० १७५ । से कना = धूप मे रहकर शरीर मे गरमी पहुँचाना । धूप खाना । सेट्रल--वि० [अ० सेन्ट्रल] जो केंद्र या मध्य मे हो । केंद्रीय । प्रधान । से की --सशा स्रो॰ [फा० सोनी, हिं० मीनिकी, सनहकी] तश्तरी । मुख्य । जैसे,--सेट्रल गवर्नमेट, सेट्रल कमेटी, सेट्रल जेल । सेंद्रिय-वि० सेन्द्रिय वि० स्त्री० सेन्द्रिया] १ इद्रियसपन्न। सेंगर-सञ्चा पु० [सं० शृङगार] १ एक पौधा जिसकी फलियो की जिसमे इद्रियाँ हो । सजीव । जैसे,—सेद्रिय द्रव्य । उ०-सेद्रिया तरकारी बनती है । २ इस पौधे की फली। ३ बबूल की फली मै, अगुणता से नित्य उकता ही रही थी, सजन मै आ ही रही या छीमी। थी।--क्वासि, पृ० ८५। २ पुरुषत्वयुक्त । जिसमे मदानगी विशेष-प्रोपधिकार्य मे भी इसका प्रयोग विहित है। अधिकतर हो । पुसत्वयुक्त। यह भैस, बकरी, ऊंट आदि को खाने को दी जाती है। ४ एक सेद्रियता-सञ्चा स्त्री० [स० सेन्द्रिय+ता (प्रत्य॰)] इद्रियसपन्न होने का प्रकार का अगहनी धान जिसका चावल बहुत दिनो तक भाव, स्थिति या क्यिा। सजीवता। साकारता। उ०-नभ रहता है। विहारिणी, अलख प्राण, निज जन की सुधि करिए। हे प्रतीद्रिये सेंगर-मशा पुं० [स० शृडगीवर] क्षत्रियो की एक जाति या शाखा। सेद्रियता से क्यो इतना डरिए ।-अपलक, पृ०२२ । उ०-कूरम, राठौर, गौड, हाडा, चहुवान, मौर, तोमर, चंदेल, सेंसर-सशा पु० [अ० सेन्सर] वह सरकारी अफसर जिसे पुस्तक, जादौ जग जितवार है । पौरच, पुंडीर, परिहार और पँवार वैस, पुस्तिकाएँ विशेषकर समाचारपत्न छपने या प्रकाशित होने, सेंगर, सिसोदिया, सुलकी दितवार हैं। -सूदन (शब्द॰) । नाटक खेले जाने, फिल्म दिखाए जाने, या तार कही भेजे जाने (ख) सेंगर सपूती सो भरे । जे सुद्ध जुद्धन मे लरे ।-पद्माकर के पूर्व देखने या जांचने का अधिकार होता है। यह जांच इस- ग्र०, पृ०८। रकावी।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४४४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।