सायकाल । सूर्यसिद्धात ७०६० सूल सूर्यसिद्धात-मज्ञा पुं॰ [स० मूर्यसिद्वान्त] गणित ज्यौतिप का भास्करा ५ वौद्ध मतानुसार एक प्रकार का ध्यान या समाधि । ६ एक चार्य द्वारा विरचित एक ग्रथ किो०] । प्रकार का जलपान । मूर्यसुत-सज्ञा पु० [म०] १ शनि । २ कर्ण । ३ सुग्रीव । ४ यम । सूर्यावर्तरस-- स--पज्ञा ० [स० ] श्वास रोग की एक रसीपध जो पारे, सूर्यसूक्त-मज्ञा पु० [स०] ऋग्वेद के एक सूक्त का नाम जिसमे सूर्य गधक और तांबे के सयोग से बनती है। की स्तुति की गई है। सूर्यावर्ता--सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] ३० 'सूर्यावर्त' [को०] । सूर्यसूत-सज्ञा पु० [स०] सूर्य का सारयि, अरुण । सूर्याश्म -मज्ञा पु० [स० सूर्याश्मन्] सूर्यकात मणि । सूर्यस्तुत-सज्ञा पुं० [म०] एक दिन मे होनेवाला एक प्रकार का यज्ञ । सूर्याश्व--सञ्ज्ञा पु० [स०] सूर्य का घोडा। वाताट हरित । सर्यस्तुति--सज्ञा स्त्री० [म०] सूर्य का स्तवन । सूर्य की प्रार्थना [को०] । सूर्यास्त--सज्ञा पु० [म०] सूर्य का डूवना । सूर्य के छिपने का समय । सूर्यस्तोत्र-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सूर्यस्तुति' । सुर्यहृदय-सञ्ज्ञा पु० [स०] सूर्य का एक स्तोत्र (को० । क्रि० प्र०-होना। सूर्यांशु-सञ्ज्ञा पु० [सं०] सूर्य की किरण। सूर्याह्व-सज्ञा पु० [म०] १ ताँवा । ताम्र । २ आक । मदार । अर्क- सूर्या-सज्ञा स्त्री० [स०] १ सूर्य की पत्नी सज्ञा । वृक्ष। ३ महेद्रवारुणी । वडी इद्रायन । ४ वह जो सूर्यसज्ञक विणष-कई मत्रो मे यह मूर्य की कन्या भी कही गई हैं। कही हो (को०)। ये सविता या प्रजापति की कन्या और अश्विनी की स्त्री कही सूर्येदुसगम--सज्ञा [स० मूर्य + इन्दु + सदगम] सूर्य और चद्रमा का गई हैं और कही सोम की पत्नी। एक मन मे इनका नाम संगम या मिलन, अर्थात् दोनो की एक राशि मे स्थिति । ऊर्जानी अाया हैं और ये पूपा की भगिनी कही गई हैं। सूर्या अमावस्या। सावित्री ऋग्वेद के सूर्यमूक्त की द्रष्टा मानी जाती हैं । २ नवोढा। नवविवाहिता स्त्री। ३ इद्रवारुणी। ४ सूर्य के सूर्योज्ज्वल--वि० [स०] सूर्य की तरह ज्योतित। उ०—भूत शिखर के विवाह से सबद्ध सूक्त या ऋचाएं (को०)। चरम चूड सा, शत सूर्योज्ज्वल । -युगपथ, पृ० ११८ । सूर्योढ'--वि० [स०] सूर्य द्वारा लाया हुआ। सूर्यास्त के समय सूर्याकर - सज्ञा पुं० [स०] रामायण मे वर्णित एक जनपद का नाम । पाया हुआ। सूर्याक्ष- 1- सज्ञा पुं० [सं०] १ विष्ण । २ महाभारत में एक राजा का सूर्योढ--सज्ञा त०१ सूर्यास्त का समय । २ वह अतिथि जो सूर्यास्त नाम । ३ रामायण मे वरिणत एक वदर का नाम । होने पर अर्थात् सध्या समय आता है। सूर्याक्ष'--वि० १ सूर्य के समान आँखोवाला। २ जिसकी आँख सूर्य सूर्यो थान--सज्ञा पु० [स०] सूर्योदय । मूर्य का चटना । हो (को०)। सूर्याणी-सका सी० [स०] सूर्य की पत्नी-सज्ञा । सूर्योदय-मज्ञा पुं० [म०] १ सूर्य का उदय या निकलना । सूर्य के निकलने का समय । प्रात काल । सूर्यातप--सञ्ज्ञा पु० [स०] सूर्य की गरमी । धूप । घाम । उ०--विद्रुम औ, मरकत की छाया, सोने चाँदी का सूर्यातप । --युगात, सूर्योदया गिरि-मज्ञा पु० [स०] वह कल्पित पर्वत जिसके पीछे से क्रि० प्र०- होना। सूर्यात्मज-सज्ञा पु० [स०] १ शनि । २ कर्ण। ३ सुग्रीव । ५ सूर्य का उदित होना माना जाता है । उदयाचल । यम (को०)। सूर्योद्यान--सज्ञा पु० [सं०] सूर्यवन नामक तीर्थ । सूर्याद्रि-सज्ञा पुं॰ [स०] मार्कडेय पुराण मे अागत एक पर्वत का नाम। सूर्योपनिषद् --सज्ञा स्त्री॰ [स०] एक उपनिपद का नाम । सूर्यापाय--सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] सूर्यास्त । सूर्योपस्थान-सञ्ज्ञा पु० [स० । सूर्य की एक प्रकार की उपासना । सूर्यापीड-सज्ञा पु० [स० सूर्यापीड] परीक्षित के एक पुत्र का नाम । विशेप--प्रात , मध्याह्न और सायकाल को सध्या करते समय सूर्यायाम--मज्ञा पुं० [स०] सूर्यास्त का समय । सूर्याभिमुख हो एक पैर से खडे होकर सूर्य की उपामना करने सूर्यार्थ्य-सा पु० [स०] सूर्य को दिया जानेवाला अर्घ्य [को०] । का विधान है। सूर्यालोक -सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ सूर्य का प्रकाश । २ गरमी । आतप। सूर्योपासक-मज्ञा पुं० [स०] सूर्य की उपासना करनेवाला । सूर्यपूजक । सूर्यावर्त-सज्ञा पु० [स०] १ हुलहुल का पौधा । हुरहुर। आदित्य- भक्ता । २ सूवर्चला । ब्रह्मसीचली। ३ गजपिप्पली । सूर्योपासना--सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] सूर्य की आराधना या पूजा । गजपीपल । ४ एक प्रकार की शिर की पीडा । आधासीसी। सूल-सशा पु० [स० शूल, प्रा० सूल] १ वरछा। भाला । सांग । विशेष--यह रोग वातज कहा गया है। इसमे सूर्योदय के साथ उ.--(क) वर्म चर्म कर कृपान मूल सल धनुपवान, धरनि ही मस्तक मे दोनो भंवो के बीच पीडा आरभ होती है और दलनि दानव दल रन कगलिका--तुलमी। ग्र०, पृ० ४६२ । सूर्य की गरमी वढने के साथ साथ वढती जाती है । सूरज ढलने (ख) लिए सूल सेल पास परिघ प्रचड दड भाजन सनीर धीर के साथ ही पीडा घटने लगती है और शात हो जाती है । घरे धनुवान है ।---तुलसी ग्र०, पृ० १७१। २ कोई चुभनेवाली पृ० ८६। सौर ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४४०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।