पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४३७

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- सूरेठ ७०५७ सूर्यकांति सूरेठ--सना पु० [ देश० ] वाँस की हाथ भर की एक लकडी जिससे ये अधिक होते है, उस साल वर्षा भी अधिक होती है । भारतीय बहेलिए चोगे मे से लासा निकालते है। ग्रथो मे सूर्य को गणना नव ग्रहो मे है। आधुनिक सूक्षण-सज्ञा पु० [ स०] अनादर । ज्योतिर्विज्ञान के अनुसार सूर्य ही मुख्य पिंड है जिसके पृथ्वी, सूर्य-सज्ञा पु० [ स० ] उडद । माप। शनि, मगल अादि ग्रह अनुचर है और उसकी निरतर परिक्रमा किया करते है। विशेष दे० 'खगोल'। सूर्यण- --सज्ञा पु० [स०] दे० 'सूर्तरग' [को०] । सूर्जg--सञ्ज्ञा पु० [ स० सूर्य की उपासना प्राय सब सभ्य प्राचीन जातियो मे सूर्य, प्रा० सूर, मूरिन, सुज्ज ] दे॰ 'सूर्य' । उ०--चाँद सूर्ज तारागन नाही, मच्छ कच्छ अौतारा।- प्रचलित है। आर्या के अतिरिक्त असीरिया के असुर भी 'शम्श' कबीर श०, भा०३, पृ०३ । ( सूर्य ) की पूजा करते थे । अमेरिका के मेक्सिको प्रदेश मे बसनेवाली प्राचीन सभ्य जनता के भी बहुत से सूर्यमदिर थे सूर्प-सज्ञा पु० [ स०] दे० 'शूर्प' । सूप [को०] । प्राचीन आर्य जातियो के तो सूर्य प्रधान देवता थे। भारतीय और सूर्पनखा-सज्ञा स्त्री॰ [ स० शूर्पणखा ] दे० 'शूर्पणखा' । पारसीक दोनो शाखाग्रो के प्रार्यों के बीच सूर्य को मुख्य स्थान सूमि, सूर्मी f-सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ लोहे की बनी स्त्री की प्रतिमूर्ति । प्राप्त था। वेदो मे पहले प्रधान देवता सूर्य, अग्नि और इद्र विशेष-मनु ने लिखा है कि गुरुपत्नी मे व्यभिचार करनेवाला थे । सूर्य प्रकाश के देवता थे । इनका रथ सात घोडो का कहा अपने पाप को कहकर तपी हुई लोहे की शय्या पर शयन गया है। आगे चलकर सूर्य और सविता एक माने गए और करे अथवा तपी हुई लोहे की स्त्री की प्रतिमूर्ति का प्रालिंगन सूर्य की गणना द्वादश आदित्यो मे हुई । ये अादित्य वष के १२ करे। इस प्रकार मरने से उसका पाप नष्ट होता है--'सूर्मो महीनो के अनुसार सूर्य के ही रूप थे। इसी काल में सूर्य के ज्वलन्ती वाश्लिष्येन्मृत्युना स विशुद्वयति' । सारथि अरुण । सूर्योदय की ललाई ) कहे गए जो लँगडे २ पानी का नल । ३ गृह का स्तभ (को०)। ४ काति । प्रकाश माने गए है। सूर्य का ही नाम विवस्वत् या विवस्वान भी था (को०) । ५ ज्वाला (को॰) । जिनकी कई पत्नियां कही गई है, जिनमे सज्ञा प्रसिद्ध है। सूर्य--सज्ञा पु० [ स०] [स्त्री० सूर्या, सूर्याणी ] १ अतरिक्ष मे पृथ्वी, पर्या०--भास्कर। भानु । प्रभाकर । दिनकर । दिनपति। मार्तड । मगल, शनि आदि ग्रहो के बीच सबसे बडा ज्वलत पिंड जिसकी रवि । तरणि । सहस्राशु । तिग्मदीधिति । मरीचिमाली। सब ग्रह परिक्रमा करते है। वह वडा गोला जिससे पृथ्वी आदि चडकर । आदित्य । सविता । सूर । विवस्वान ! दिवाकर। ग्रहो को गरमी और रोशनी मिलती है। सूरज । आफताब । २ वारह की सख्या । ३ अर्क । पाक । मदार । ४ बलि के एक विशेष-सूय पृथ्वी से चार करोड पैसठ लाख मील दूर है। पुत्र का नाम । ५ शिव का एक नाम (को॰) । उमका व्यास पृथ्वी के व्यास से १०८ गुना अर्थात् ४,३३,००० सूर्यक--वि० [म.] सूर्य के समान । सूर्य जैसा (को०] । कोस है । घनफल के हिसाब से देखें तो जितना स्थान सूर्य घेरे हुए सूर्यकगल - सशा पुं० [सं०] सूरजमुखी फल । है, उतने मे पृथ्वी के ऐसे ऐसे १२,५०,००० पिंड आएँगे। साराश यह कि सूर्य पृथ्वी से बहुत ही बडा है। परंतु सूर्य सूर्यकर- Y० [स०] सूर्य की किरण। जितना बड़ा है, उसका गुस्त्व उतना नही है। उसका सापेक्ष सूर्यकरोज्ज्वल--सज्ञा पुं० [स०] सूर्य की किरणो से दीप्त । गुरुत्व पृथ्वी का चौथाई है। अर्थात् यदि हम एक टुकडा सूर्यकात--सज्ञा पु० [सं० सूर्यकान्त] १ एक प्रकार का स्फटिक या पृथ्वी का और उतना ही बडा टुकडा सूर्य का ले तो पृथ्वी बिल्लौर, सूर्य के सामने रखने से जिसमे से आँच निकलती है। का टुकडा तौल मे सूर्य के टुकडे का चौगुना होगा। कारण पर्या--सूर्यमणि । तपनमणि । रविकात । सूर्याश्मा । ज्वलनाश्मा यह है कि सूर्य पृथ्वी के समान ठोस नही है । वह तरल ज्वलत दहनोपम । दीप्तोपल । तापन । अपिल । अग्निगर्भ । द्रव्य के रूप मे है। सूर्य के तल पर कितनी गरमी है, इसका विशेष-वैद्यक के अनुसार यह उष्ण, निर्मल, रसायन, वात मौर जल्दी अनुमान ही नही हो सकता । वह २०,००० डिग्री तक श्लेष्मा को हरनेवाला और बुद्धि बढानेवाला है। अनुमान की गई है। इसोताप के अनुसार उसके अपरिमित प्रकाश २ सूरजमुखी शीशा । आतशी शीशा । का भी अनुमान करना चाहिए । प्राय हम लोगो को सूर्य का विशेप-यह विशेप बनावट का मोटे पेटे का गोल शीशा होता तल बिलकुल स्वच्छ और निकलक दिखाई पडता है, पर उसमे भी वहुत से काले धब्बे है। इनमे विचिन्नता यह है कि है जो सूर्य की किरनो को एक केंद्र पर एकत्र करता है, जिससे एक निश्चित नियम के अनुसार ये घटते वढते रहते है, अर्थात् ताप उत्पन्न हो जाता है। इसके भीतर से देखने पर वस्तुएँ कभी इनकी सख्या कम हो जाती है, कभी अधिक । जिस वर्ष वडे आकार की दिखाई पड़ती है। इनकी संख्या अधिक होती है, उस वर्ष मे पृथ्वी पर चुवक ३ एक प्रकार का फूल । प्रादित्यपर्णी । ४ माकंडेयपुराण के शक्ति का क्षोभ बहुत बढ जाता है और विद्युत् की शक्ति अनुसार एक पर्वत का नाम । के अनेक काड दिखाई पडते है। कुछ वैज्ञानिको का अनुमान सूर्यकाति'-सा स्त्री॰ [स० सूर्यकान्ति] १ सूर्य की दीप्ति या प्रकाश । है कि इन लाछनो का वर्षा से भी सवध है। जिस साल २. एक प्रकार का पुष्प । ३ तिल का फूल ।