सूरज ७०५४ सूरज-सज्ञा पु० [स० सूर+ज] १ शनि । २ सुग्रीव । उ०- २ एक प्रकार की प्रानिशवाजी । ३ एक प्रकार का छत्र या पया। (क) सूरज मुसल नील पट्टिस परिघ नल जामवत असि हनु ४ वह हलकी बदली जो मध्या सबेरे मूर्य मटल के प्रामपाम तोमर प्रहारे है। परसा सुरोन कुत केशरी गवय मूल विभीषण दिखाई पड़ती है। गदा गज भिदिपाल तारे है ।--रामच०, पृ० १३५ । (ख) सूरजसुत-मज्ञा पुं० [हिं० मूरज + सं० मुन] मुग्रीव । उ०--अगद करि प्रादित्य अदृष्ट नष्ट यम करौ अष्टवसु । रुद्रनि वोरि ममुद्र जो तुम पै बल होतो। तो वह मूरज को मुत को तो।-केशव करी गधर्व सर्व पसु । बलित अवेर कुबेर वलिहिं गहि देहुँ इद्र (शब्द०)। अव । विद्याधरनि अविद्य करौं विन सिद्वि सिद्ध मव । ले करौं सूरजसुता--सशा सी० [हिं० मूरज + सं० मुता] यमुना नदी। दे० अदिति की दामि दिति अनिल अनल मिलि जाहि जल । सुनि 'सूर्यगुना' । सूरज सूरज उगत ही करी असुर ससार सब । -केशव सूरजा--मज्ञा स्त्री० [सं०] मूर्य की पुत्री, यमुना । उ०- जज श्री मूरजा (शब्द०)। ३ कर्ण का एक नाम । ४ यमराज । कनिंद नदिनी । गुल्म लता, तर, मुगम, कुद युमुम मोदमन सूरज'--सज्ञा पु० [स० शूर + ज (प्रत्य॰)] शूर या वीर का पुन । भ्रमत मधुप, पुलिन मुरभि वायु नदिनी।-छीत०, पृ००० । वहादुर का लडका । उ०-~डारि डारि हथ्यार मूरज जीव ले सूरपा-सा पुं० [सं०] मूग्न । जमीकद । लै भज्जही। -केशव (शब्द॰) । सूरत'-मया मी० [फा०] १ रूप । प्राकृति। शान । उ०—(क) सूरजतनी - सशा स्त्री० [सं० सूर्यतनया] दे॰ 'सूर्यतनया' । उ० उनकी मूरत तो गजकुमारी की सी है । बालमुकुद गुप्त सु दरि कथा कहै है अपनी। ही कन्या ही मूरजतनी । कालिंदी (शब्द॰) । (ग) मन धन लै हग जौहरी, चले जात वह बाट । है मेरो नाम । पिता दियो जल मे विश्राम ।-लल्लूलाल छवि मुकता मुकते मिले जिहि मूरत की हाट ।-रसनिधि (शब्द०)। (शब्द०)। सूरजनरायन-सज्ञा पुं० [म० सूर्यनारायण] हिं० सूरजनरायन, यौ०-गुरत शगन = चेहरा मोहरा। प्राकृति। मूरत सीरत = नारायण स्वरूप सूर्य । उ० - और मूर्यनारायण को सूरजनरायन प्राकृति या स्प और गुण। कहने लग पडे थे।-प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० ३६२ । मुहा०--म्रत बिगडना चेहरा विगडना । चेहरे की रगत फीकी सूरजवपी-सज्ञा पुं॰ [स० सूर्यवंशीय] दे॰ 'सूर्यवशी' । पडना । मूरत गिाडना = (१) चेहरा विगाडना | कुरूप करना। सूरजभगत-सज्ञा पुं० [स० सूर्य + भक्त] एक प्रकार की गिलहरी जो बदमूरत बनाना। विद्रूप करना। (२) अपमानित करना । लवाई मे १६ इच होती है और भिन्न भिन्न ऋतुओ के अनुसार (३) दइ देना। नूरत बनाना = (१) प बनाना। (२) रग बदलती है । यह नेपाल और आसाम मे पाई जाती है। भेस बदलना। (३) मुह बनाना। नाक भौं सिकोडना। सूरजमुखg-सज्ञा पुं० [स० सूर्य, पु० हिं० सूरज + सं० मुख) अगचि प्रकट करना। (४) चित्र बनाना। मूरत दिखाना- सूर्यकात नाम का प्रस्तर (स्फटिक)। उ०--सूरजमुख पपान सामने आना। एक होई। रवि सनमुख तेहि पावक जोई।--घट०, पृ० २१७ । २ छवि। शोभा। सौदर्य । उ०-सांवली सूरत तुमारी सांवले । सूरजमुखी 1-सज्ञा पु० [सं० सूर्य मुखिन्] १ एक प्रकार का पौधा जब हमारी आंख मे है घूमती।-चोबे०, पृ०१। ३ उपाय । जिसमे पीले रंग का बहुत बड़ा फूल लगता है। युक्ति । ढग। तदवीर । ढव। 30~-(क) कोई उम्मीद वर विशेष-यह ४-५ हाथ ऊँचा होता है। इसके पत्ते डठल की नहीं पाती, कोई सूरत नजर नही आती। मौत का एक दिन ओर पतले तथा कुछ खुरदुरे और रोईदार होते हैं। फूल का मुऐयन है, नीद क्यो रात भर नहीं पाती |--कविता कौ०, मडल एक बालिश्त के करीव होता है। बीच मे एक स्थूल केद्र पृ० ४७२ । (ख) जाडे मे उनके जीने को कौन सूरत थी।- शिवप्रसाद (शब्द०)। होता है जिसके चारो ओर गोलाई मे पीले पीले दल निकले होते हैं । मूर्यास्त के लगभग यह फूल नीचे की ओर झुक जाता क्रि० प्र०-देखना । जैसे,--वह उनसे छुटकारा पाने की कोई है और सूर्योदय होने पर फिर ऊपर उठने लगता है। इसमे सूरत नहीं देखता।-निकालना। जैसे-रुपया पैदा करने की कुमुम के से वीज पडते है। बीज हर ऋतु मे बोए जा सकते कोई सूरत निकालो। है, पर गरमी और जाडा इसके लिये अच्छा है। यह पौधा ४ अवस्था । दशा । हालत। जैसे-उम सूरत मे तुम क्या करोगे। दूपित वायु को शुद्ध करनेवाला माना जाता है । वैद्यक मे यह उ०-पापको खयाल न गुजरे कि हमारी किमी सूरत मे तह- उष्णवीर्य, अग्निदीपक, रसायन, चरपरा, कडवा, कसैला, रुखा, कीर हुई। - केशवराम (शब्द०)। दस्तावर, स्वर शुद्ध करनेवाला तथा कफ, वात, रक्तविकार, सूरत'-सा पुं० [सं० सौराष्ट्र] बबई प्रदेश के अतर्गत एक नगर । खांसी, ज्वर, विस्फोटक, कोढ, प्रमेह, पथरी, मूत्रकृच्छू, गुल्म सूरत-सज्ञा पुं॰ [देश०] एक प्रकार जहरीला पौधा जो दक्षिण हिमा- आदि का नाशक कहा गया है। लय, आसाम, बरमा, लका, पेराक और जावा मे होता है । इसे पर्या० --आदित्यभक्ता 1 वरदा । सुवर्चला । सूर्यलता । अर्ककाता। चोरपट्टा भी कहते है । विशेप दे० 'चोरपट्ट' । भास्करेष्टा । विक्रोता । सुतेजा । सौरि । अर्कहिता । सूरत --सच्चा सी० [अ० सूरह] कुरान का कोई प्रकरण ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४३४
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