७०५० सूनार सूदित-वि० [म०] १ आहत । घायल । जख्मी । २ जो नष्ट हो गया वृद्ध भए अकुलात |--सूर (शब्द॰) । (ग) भाव सोते हो। विनष्ट । ३ जो मार डाला गया हो । निहत । करि वाको भामिनी भाग बडे वश चौकडि पायो । कान्ह ज्यो सूदितृ-वि० [सं०] वध या विनाश करनेवाला। सूधे जू चाहत नाहिन चाहति है अव पाइ लगायो। केशव सूदितृ'-सञ्ज्ञा पु० रसोइया । पाककर्ता । पाचक । (शब्द)। सूदी-वि० [फा० मूद] १ (पूजी या रकम) जो सूद या व्याज पर मुहा०--सूधे सूध = कोरा । साफ साफ । उ०--मूधैं सूध जवाव हो । व्याजू । २ व्याज पर लिया हुआ (रुपया)। न टीजै ।-विश्राम ( शब्द०)। सूदी-वि० [स० सूदिन] उफनकर या ऊपर से बहनेवाला [को०] । सून-सज्ञा पुं० [ स०] १ प्रसव । जनन । २ कली । कलिका। ३ फूल । पुप्प। प्रसून । उ०-चुनते वे मुनि हेतु सून थे।- सूद्र-सज्ञा पुं० [सं० शूद्र] दे॰ 'शूद्र' । साकेत, पृ० ३४४ । ४ फल । ५ पुन । उ०—(क) नद सून सूघg:-वि० [स० शुद्ध, प्रा० मुध्ध] दे० 'सूधा' । उ०—(क) नाय पद लालन लोभ। रमा रसिकिनी पावति छोभ ।--घनानद, करहु वालक पर छोहू । सूध दूधमुख करिय न कोहू । -तुलसी पृ० २६४ । (ख) श्री वसुदेव सून है नद कुमार कहावत ।- (शब्द॰) । (ख) काह करउँ सखि सूध सुभाऊ । दाहिन वाम न प्रेमघन०, भा० १, पृ०६१। जानउँ काऊ।-तुलसी (शब्द०)। सून'-वि० १ खिला हुअा। विकसित (पुष्प) । २ उत्पन्न । जात । सूघ'-वि० दे० 'शुद्ध' । उ०--माया सो मन बीगडा ज्यो कांजी करि ३ रिक्त । खाली। शून या शून्य (को॰) । दूध । है कोई ससार मे मन करि देवइ सूध । -दादू (शब्द॰) । सून--सज्ञा पुं० [स० शून्य, प्रा० सुण्ण (सून)] दे० 'शून्य' । उ०-- सूध-क्रि० वि० सीधा । उ०-दूसर मारग सुनु मन लाई । देश विदर्भ (क) तुलसी निज मन कामना चहत सून कह सेइ । वचन गाय सूघ यह जाई ।--सवलसिंह (शब्द॰) । सबके विविध कहहु पयस केहि देइ। -तुलमी (शब्द०)। सूचना--क्रि० अ० [स० शुद्ध] सिद्ध होना । सत्य होना । ठीक होना । (ख) नाम राम को अक है सव साधन है सून । अक गए कछु उ०-ऐसे सुतहि पिया जो दूधा गुन हरि तासु मनोरथ सूधा हाथ नहिं अक रहे दस गून ।-तुलसी (शब्द॰) । --गिरिधरदास (शब्द०)। सून'-वि० १ निर्जन । जनशून्य । सूना । मुनमान । खाली । उ०- सूघरा-वि० [स० शुद्धतर] दे॰ 'सूधा। (क) इहां देखि घर सून चोर मूसन मन लायो। हीरा सूधा-वि० [स० शुद्ध] [वि॰ स्त्री० सूधी ] १ सीधा । सरल । हेरि निकारि भवन बाहर घरि आयो ।-विधाम भोला। निष्कपट । उ.---को अस दीन दयाल भयो (शब्द०)। (ख) हनहु सक हमको एहि काला। अव दशरत्य के लाल से सूधे सुभायन । दौरे गयद उवारिवे मोहि लगत जगत जजाला। नहिं कल बिना शेषपद देखे । को प्रभु वाहन छोडि उवाहने पापन ।-पद्माकर (शब्द०)। विन प्रभु जगत सून मम लेखे ।-रघुराज (शब्द०)। २ जो टेढा न हो। सीधा। उ०- इमि कहि सबन सहित (ग) मंदिर सून पिउ अनतै बसा। सेज नागिनी फिर फिर तव ऊधो। गए नद गह गहि मग सूधो ।-गिरिधरदास डसा ।--जायसी (शब्द०)। २ रहित । हीन । उ०-- (शब्द०) । ३ इस प्रकार पडा हुआ कि मुह, पेट आदि निरखि रावण भयावन अपावन महा जानकी हरण करि शरीर का अगला भाग ऊपर की ओर हो। चित। ४ समुख चलो शठ जात है। भन्यो अति कोप करि हनन की चोप का । सामने का । उ०-मुदित मन वर वदन सोभा उदित करि लोप करि धर्म अव क्यो न ठहरात है । जानि थैल सून नृप अधिक उछाह । मनहु दूरि कलक करि ससि समर सूधो सूत रमणी हरी करी करणी कठिन अव न बचि जात है। राहु । —तुलसी (शब्द॰) । ५ जो उलटा न हो। जो ठीक -रघुराज ( शब्द०)। और साधारण स्थिति मे हो। ६ जो सीधी रेखा मे चला सून'--सक्षा पु० [देश॰] एक प्रकार का बहुत वडा सदावहार पेड गया हो। जिसमे वक्रता न हो । उ०--सूधी अंगुरि न निकस जो शिमले के आसपास के पहाडो पर बहुत होता है । इसकी घीऊ ।-जायसी (शब्द०)। लकडी बहुत मजबूत होती है और इमारतो मे लगती है। इसे मुहा-सूधी सूधी सुनाना-खरी खरी कहना । सूधी सहना = 'चिन' भी कहते हैं। खरी खरी सुनना। उ०-कवहूं फिर पांव न दही यहाँ भजि सूनशर-सज्ञा पु० [स०] कामदेव । जैहौ तहाँ जहाँ सूधी सही। पद्माकर (शब्द॰) । सूनसान-वि० [ स० शून्य स्थान ] दे० 'सुनसान' । उ०पर तनक विशेष-और अधिक अर्थो तथा मुहावये के लिये दे० 'सीधा' । थिर होकर सुनने से ऐसे सूनसान और सन्नाटे मे भी किसी की सूधि-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे॰ 'सुधि' । उ०—तातें इनको देखि के दुखभरी रुलाई सुनाई पड़ती है। ठेठ०, पृ० ३२ । श्रीठाकुर जी को श्रीस्वामिनी जी की सूधि प्रावति हैं।--दो सूना' वि० [ स० शून्य ] [ वि० सी० सूनो ] जिसमे या जिसपर सी वावन०, भा० १, पृ० १०८ । कोई न हो। जनहीन । निर्जन । सुनसान । खाली । जैसे- सूघे-क्रि० वि० [हिं० सूधा ] सीधे से । उ०--(क) सूधे दान काहे सूना घर, मूना रास्ता, सूना सिंहासन । उ०--(क) जात हुती न लेत । —सूर (शब्द०)। (ख) हौं वड ही वड बहुत निज गोकुल मे हरि आवै तहाँ लखिकै मग सूना । तासो कहीं कहावत सूधे कहत न वात । योग न युक्ति ध्यान नहिं पूजा पदमाकर यो अरे सांवरौ वावरे तै हमें छू ना।-पद्माकर
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४३०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।