सूत्रशाख ७०४६ सूदि सूत्रशाख--पञ्ज्ञा पुं० [सं०] शरीर । सूत्रशाला--सज्ञा स्त्री० [स०] सूत कातने या इकट्ठा करने का कारखाना । विशेष--चंद्रगुप्त के समय में यह नियम था कि जो स्त्रियाँ बडे तडके अपना काता हुअा सूत सूत्रशाला मे ले जाती थी, उनको उसी समय उसका मूल्य मिल जाता था। इस प्रकार स्त्रियो की जीविका का उपयुक्त प्रबध हो जाता था। सूत्रमग्रह- सज्ञा पुं० [स० सूत्रसडग्रह] १ वह व्यक्ति जो लगाम पकडता है। अश्व के निश्चित स्थान पर रुकने के समय वागडोर को थामनेवाला जिससे सवार नीचे उतर सके। २ सूत्रो का भग्रह (को०)। सूत्रस्थान--सज्ञा पु० [सं०] सुश्रुत का प्रथम अध्याय जिसमे शरीर और रोगादि का विवरण है [को०] । सूत्राग--सज्ञा पुं॰ [स० सूत्राडग] उत्तम कांसा। सूत्रात-सज्ञा पु० [स० सूत्रान्त] बौद्ध सूत्र । सूत्रातक-सज्ञा पु० [स० सूत्रान्तक] बौद्ध सूत्रो का ज्ञाता या पडित । सूत्रा--सज्ञा स्त्री॰ [स० सूत्रकार] मकडी । (अनेकार्थ०) । सूत्रात्मा--सञ्ज्ञा पु० [स० सूत्रात्मन्] १ जीवात्मा। २ एक प्रकार की परम सूक्ष्म वायु जो धनजय से भी सूक्ष्म कही गई है। सूत्राध्यक्ष-सज्ञा पुं० [स०] कपडो के व्यापार का अध्यक्ष । सूत्रामा-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० सूत्रामन्] इद्र का एक नाम । सूत्राली-सज्ञा स्त्री० [स०] १ माला। हार। २ गले मे पहनने की मेखला। सूत्रिका-- [--सज्ञा स्त्री० [स०] १ हार । सूत्रक । २ सेवई [को०] । सूत्रित-वि० [स०] १. सूत्र रूप मे कथित या रचित। २ सूत से युक्त । ३ सिलसिलेवार लगाया हुआ [को०] । सूत्री. -सज्ञा पुं० [सं० सूत्रिन्] [वि॰ स्त्री० सूत्रिणी] १ कोमा । काक । २ दे० 'सूत्रधार। सूत्री--वि० १ सूत्रयुक्त । जिसमे सूत्र हो । २ क्रम से युक्त । नियम- युक्त । मिलसिलेवार (को०)। सूत्रीय - वि० [स०] सूत्र सबधी । सूत्र का। सूथन--सञ्ज्ञा खी० [देश॰] पायजामा। सुथना । उ०-बेनी सुभग नितवनि डोलत मदगामिनी नारी। सूथन जघन बाँधि नाराबंद तिरनी पर छविभारी। -सूर (शब्द॰) । सूथन-सज्ञा पुं० वरमा, स्याम और मणिपुर के जगलो मे होनेवाला एक प्रकार का पेड। विशेष-इसकी लकडी बहुत अच्छी होती है और इसका रस वारनिश का काम देता है । इसे 'खेऊ' भी कहते हैं। सूथनी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] १ स्त्रियो के पहनने का पायजामा । सुथना । २ एक प्रकार का कद । सूथारा--सज्ञा पुं० [स० सूत्रकार प्रा० सुत्त+पार, पु०हिं० सुतार] वढई । सुतार । खाती। उ०-जव बोल्यो वीदो सूथारू । है स्वामी की गती अपारू।-राम० धर्म०, पृ० ३६५ । सूद-मज्ञा पुं० [फा०] १ लाभ । फायदा । २. व्याज । वृद्धि । क्रि० प्र०-चढना ।—देना ।-पाना।-लगना ।-लेना ।- होना। मुहा०-सूद दर सूद = व्याज पर व्याज । चक्रवृद्धि । सूद पर लगाना = सूद लेकर रुपया उधार देना। सूद--सज्ञा पुं० [स०] १ रसोइया । सूपकार । पाचक । २ पकी हुई दाल, रसा, तरकारी, आदि । ३ सारथि का काम । सारथ्य । ४ अपराध । पाप । ५ दोप। ऐब। ६ एक प्राचीन जनपद का नाम । ७ लोध्र । लोध । ८ विध्वस । विनाश (को०)। ६ कूप । का (को०)। १०. कीचड । कर्दम (को०)। ११ व्यजन। १२ स्रोत । चश्मा। झरना (को०)। १३ गिराना। चुग्राना। ढालना (को०)। सूदक-वि० [सं०] विनाश करनेवाला। सूदकर्म- --सज्ञा पु० [स० सूदकर्मन्] रसोइए का काम । ग्धन । पाक- क्रिया। भोजन बनाना। सूदकशाला--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [म० सूदशाला] रसोईघर । पाकशाला। (डिं० )। सूदखोर-सज्ञा पुं० [फा० सूदखोर] वह जो खूब सूद या व्याज लेता हो। सूदखोरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [फा० सूदखोरी] सूदखोर का काम। सूद या व्याज का कारोबार [को०] । सूदता-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] दे० 'सूदत्व' । सूदत्व-पज्ञा पुं॰ [स०] सूद या रसोइए का पद या काम । रसोईदारी। सूदन'-वि० [स०] [वि॰ स्त्री० सूदनी] १ विनाश करनेवाला । जैसे- मधुसूदन । रिपुसूदन । उ०-नमो नमस्ते वारवार । मदन सूदन गोबिंद मुरार। -सूर (शब्द०) । २ प्यारा । प्रिय (को॰) । सूदन-सज्ञा पु० १ बध या विनाश करने की क्रिया । हनन । २ अगीकार या स्वीकार करने की क्रिया । अगीकरण । ३ फेकने की क्रिया। ४ हिंदी के एक प्रसिद्ध कवि का नाम जो मथुरा के रहनेवाले थे और जिनका लिखा 'सुजानचरित्न' वीर रस का एक प्रसिद्ध काव्य है। सूदना-क्रि० स० [स० सूदन] नाश करना । उ०--मुदित मन वर बदन सोभा उदित अधिक उछाहु । मनहुँ दूरि कलक करि ससि समर सूदयो राहु ।-- तुलसी (शब्द०)। सूदर-समा पु० [स० शूद्र ] शूद्र । (डि०) । सूदशाला-सज्ञा स्त्री० [सं०] वह स्थान जहाँ भोजन बनता हो। रसोईघर। पाकशाला। सूदशास्त्र-सज्ञा पुं० [सं०] भोजन बनाने की कला। पाकशास्त्र । सूदा-सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] ठगो के गरोह का वह आदमी जो यानियो को फुसलाकार अपने दल मे ले पाता है। (ठग०)। सूदाध्यक्ष-सञ्ज्ञा पुं० [स०] रसोइयो का मुखिया या सरदार। पाक- शाला का अधिकारी। सूदि--वि० स्त्री० [स०] दे० 'सूदी' ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४२९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।