७०४७ सूत्रक । सूति'-सा पु० [म०] १ विश्वामित्र के एक पुत्र का नाम । २ हम । सूतिरोग -ज्ञा पुं॰ [स०] ३० 'सूतिकारोंग' (को०] । सूतिका-सशा स्त्री० [स०] १ वह स्त्री जिसने अभी हाल में बच्चा सूतिवात -तशा पु० [सं०] दे० 'सूतिमारुत' । जना हो । सद्य प्रसूता। जच्चा । २ वह गाय जिसने हाल मे सूती'- '-वि० [हिं० सूत + ई (प्रत्य॰)] सूत का बना हुआ । जैसे-- वछडा जना हो । ३ दे० 'तिका रोग'। सूती कपडा । सूती गलीचा। सूतिका काल-सज्ञा पुं॰ [म०] प्रसव का समय । जननका न । सूती :--संज्ञा स्त्री० [सं० शुक्ति प्रा० सुत्ति] १ सीपी। उ०---सूती में सूतिकागार-ता पुं० [सं०] वह कमरा या कोठरी जिसमे स्त्री वच्चा नहिं सिंधु समाई ।-विश्राम (शब्द॰) । २ वह सीपी जिससे जने । सौरी । प्रसवगृह । अरिष्ट । डोडे में की अफीम काछते है। विशेष- चषक के अनुसार सूतिकागार पाठ हाय लवा और चार सूती' --सहा सो० [स० सूत] सूत की पत्नी । भाटिन । हाथ चौडा होना चाहिए तथा इसके उत्तर और पूर्व की ओर सूतीगृह -संज्ञा पु० [स०] वच्चा होने का स्थान । प्रसवगृह । उ०- द्वार होने चाहिए। अखुटत परत, सुविह्वल भयो। डरत डरत सतीगृह गयौ ।-- सूतिकागृह - -सज्ञा पुं० [स०] दे० 'सूतिकागार' । नद० ग्र०, पृ०२३१ । सूतिकागेह-शा पुं० [स०] ३० 'सूतिकागार' । सूतीघर-सञ्ज्ञा पु० [हिं० सूती + घर] दे॰ 'सूतीगृह' । सूतिकाभवन-सज्ञा पु० [स०] दे॰ 'सूतिकागार' । सूतीमास-सज्ञा पुं० [स०] दे॰ 'सूतिमास' । सूतिकामारुत-सज्ञा पुं॰ [स०] प्रसव की पीडा [को०] । सूत्कार-सज्ञा पु० [स०] दे० 'सीत्कार' । सूतिकारोग-भशा पु० [सं०] प्रसूता को होनेवाले रोग । सूत्तर--वि० [मं०] १ बहुत श्रेष्ठ। बहुत बढकर । २ माकूल या विशेष-वैद्यक के अनुसार सूतिकाराग अनुचित प्राहार विहार, उचित (जवाव) । ३ अत्यत उत्तर । धुर उत्तर [को०] । क्लेश, विपमासन तथा अजीर्णावस्या मे भोजन करने से होते सूत्थान --वि० [सं०] चतुर । होशियार । हैं। प्रसूता के अगो का टूटना, अग्निमाद्य, निर्बलता, शरीर का सूत्थान--सज्ञा पुं० सम्यक् उत्थान या चेष्टा को० कॉपना, सूजन, ग्रहणी, अतिसार, शूल, खाँसी, ज्वर, नाक, मुह सूत्पर--सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] शराब चुवाने की क्रिया । सुरासधान । से कफ निकलना आदि सूतिकारोग के लक्षण है । सूतिकाल-सज्ञा पुं० [सं०] प्रसव करने या बच्चा जनने का समय । सूपत्लावती-सहा त्री० [स०] मार्कंडेयपुराण के अनुसार एक नदी कानामा सूतिकावल्लभ रस-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] सूतिकारोग की एक औषध । विशेष-यह रस पारे, गधक, सोने, चाँदी, स्वर्णमाक्षिक, कपूर, सूत्य-मज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सुत्य' । अभ्रक, हरताल, अफीम, जाविनी और जायफल के सयोग से सूत्यशौच-सज्ञा, पुं० [स०] 'सूतकाशीच' [को०] । बनता है। ये सब चीजे बराबर बरावर लेकर इनमे मोथे, सूत्याशीच-सा स्त्री० [स०] १ यज्ञ के उपरात होनेवाला स्नान । खिरैटी और मोचरस की भावना दी जाती है । अनतर दो दो अवभृत । २ सोमरस निकालने की क्रिया। ३ सोमरस पीने रत्ती की गोलियां बनाई जाती हैं। वैद्यक के अनुसार इसके सेवन की क्रिया। से सूतिकारोग शीघ्र दूर हो जाता है । सूत्र--मज्ञा पुं० [सं०] १ सूत । ततु । तार । तागा । डोरा। २ सूतिकावास सज्ञा पुं० [स०] दे० 'सूतिकागार'। यज्ञसूत्र । यज्ञोपवीत । जनेऊ । ३ प्राचीन काल का एक सूतिकाष ठी-सशा स्रो० [स०] सतान के जन्म से छठे दिन होनेवाली मान । ४ रेखा। लकीर। ५ करधनी । कटिभूपण। ६ नियम । व्यवस्था। ७ थोडे अक्षरो या शब्दो मे कहा हुना पूजा तथा अन्य कृत्य । छठी। सूतिकाहर रस-सज्ञा पु० [सं०] सूतिकारोग का एक प्रोपध । ऐसा पद या वचन जो बहुत अर्थ प्रकट करता हो। सारगर्मित सक्षिप्त पद या वचन । जैसे,-ब्रह्मसूत्र, व्याकरणसूत्र । विणेष-इस रस के निर्माण मे हिंगुल, हरताल, शखभस्म, लोह, खर्पर, धतूरे के वीज, यवक्षार और सुहागे का लावा बराबर विशेष--हमारे यहाँ के दर्शन प्रादि शास्त्र तथा व्याकरण सूत्र बरावर पडता है। इन चीजों मे बहेडे के क्वाथ की भावना रूप मे ही ग्रथित है। ये सूत्र देखने में तो बहुत छोटे वाक्यो देकर मटर के बराबर गोली बनाते हैं। कहते हैं, इसके सेवन के रूप मे होते है, पर उनमे बहुत गूढ अर्थ गभित होते है । से सूतिकारोग दूर हो जाता है । ८ सूत्र रूप मे रचित ग्रथ। जैसे, अप्टाध्यायो, गृह्यसूत्र आदि सूतिगा--संज्ञा पुं० [स० सूतक] दे० 'सूतक' । (को०)। ६ कारण । निमित्त । मूल। १० पता। सूराग । सूतिगृह-सज्ञा पुं० [स०] दे॰ 'सूतिकागार'। सरत । ११ एक प्रकार का वृक्ष । ११ सूत का टेर (को०) । १२ योजना। १३ ततु । रेशा । जैसे, मरणालसूत्र (को०) । सूतिमारुत-सग पुं० [स० बच्चा जनने की समय की पीडा। प्रसव- पीडा। १४ कठपुतली में लगी हुई वह डोरी जिमके आधार पर उन्हें सूतिमास-सज्ञा पुं० [सं०] वह मास जिसमे किसी स्त्री को सतान नचाते है (को०)। उत्पन्न हो । प्रसवमास । वजनन । सूत्रकठ-सरा पुं० [ मै० सूत्रकण्ठ ] १ ब्राह्मण ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४२७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।