मे से एक। सूक्ष्मषट्चरण ७०४१ सूक्ष्मषट्चरण-सज्ञा पु० [सं०] एक प्रकार का सूक्ष्म कीडा जो सूखर-सज्ञा पुं० [म० सूक्ष्म ( = शिव)] एक शैव संप्रदाय । पलको की जड मे रहता है। सूखा-वि० [स० शुष्क] [वि० स्त्री० सृखो] १ जिसमे जल न रह सूक्ष्मस्फोट--सज्ञा पु० [स०] एक प्रकार का कोट । विचिका रोग । गया हो । जिसका पानी निकल, उड या जल गया हो । जैसे- सूक्ष्मा'---सञ्ज्ञा स्त्री० [म०] १ जूही। यूथिका । २ छोटी इलायची। सूखा तालाव, सूखी नदी, सूखी धोती। २ जिसका रस या आता निकल गई हो। रसहीन । जैसे,--सूखा पत्ता, सूखा ३. करुणी नाम का पौधा । ४. मूसली। तालमूली। ५ बालू । बालुका । ६ सूक्ष्म जटामासी। ७ विष्णु की नौ शक्तियो फूल। ३ उदास । तेजरहित । जैसे,--सूखा चेहरा । ४ हृदयहीन। कठोर । रुढ । जैसे,—वह वडा सूखा आदमी है। ५ कोरा । जैसे,-- सूखा अन्न, सूखी तरकारो। ६ केवल । सूक्ष्मा-वि० स्त्री० दे० 'सूक्ष्म"। निरा। खाली । जैसे,---(क) वह सूखा शेखीबाज है। (ख) सूक्ष्माक्ष-वि० [स०] सूक्ष्म दृष्टिवाला । तीव्रदृष्टि । तेज नजर का । उसे सूखी तनखाह मिलती है। सूक्ष्मात्मा-सञ्ज्ञा पु० [स० सूक्ष्मात्मन शिव । महादेव । मुहा०-सूखा टरकाना या टालना = आकाक्षी या याचक आदि सूक्ष्माह्वा--सज्ञा सी० [स०] महामेदा नामक अष्टवर्गीय प्रोपधि । को बिना उसकी कामना पूरी किए लौटाना। सूखा जवाव सूक्ष्मेक्षिका-~-सज्ञा स्त्री० [स०) सक्ष्म दृष्टि । तेज नजर । देना = साफ इनकार करना। उ०-वे भला आप सूख जाते सूक्ष्मैला-सज्ञा स्त्री० [स०] छोटी इलायची। या। मुख न सूखा जवाव सूखा सुन ।--चुभते०, पृ० १३ । सूख-वि० [स० शुष्क दे० 'सूखा' । उ०-(क) कद मूल फल सूखी नसो मे लहू भरना = निराशो मे प्राशा का सचार करना । असन, कबहुँ जल पवनहिं । सूख वेल के पात खात दिन गवनहिं । उ०--हम 'सूखी नसो मे लहू भरते थे। चुभते० (दो -तुलसी ग्र०, पृ० ३२ । (ख) धर्मपाश और कालपाश पुनि दो०), पृ० २। दुव दारुन दोउ फांसी। सूख गोद लीजै असनी युग रघुनदन सूखा-सज्ञा पुं० १ पानी न वरमना। वृष्टि का प्रभाव । अवर्षण । सुखरासी।-रघुराज (शब्द०)। (ग, सूख सरोवर निकट अनावृष्टि । उ०-बारह मासउ उपजई तहाँ किया परनेस । जिमि सारस बदन मलीन ।-शकरदिग्विजय (शब्द॰) । दाद सूखा ना पडइ हम पाए उस देस ।-दादू (शब्द॰) । सूखना-क्रि० अ० [स० शुष्क, हिं० सूख + ना (प्रत्य०)] १ आर्द्रता क्रि०प्र०--पडना। या गीलापन न रहना । नमी या तरी का निकल जाना। रसहीन २ नदी के किनारे की जमीन । नदी का किनारा । जहाँ पानी होना। जैसे,-कपडा सूखना, पत्ता सूखना, फूल सूखना। न हो। उ०-वन मे रूख सूख हर हर ते। मनु नृप सूख बरूथ न मुहा०-सूखे पर लगना = नाव आदि का किनारे नगना। करते।-गिरिधर (शब्द०)। २ जल का विलकुल न रहना ३ ऐसे स्थान जहाँ जल न हो। ४ सूखा हुआ तबाकू का पत्ता जो या बहुत कम हो जाना । जैसे,--तालाब सूखना, नदी सूखना। चूना मिलाकर खाया जाता है । उ०-भग तमाखू सुलफा गाँजा, ३ उदास होना । तेज नष्ट होना। जैसे,-चेहरा सूखना। ४ सूखा खूब उडाया रे ।--कबीर० श०, भा० १, पृ० २५ । नष्ट होना । बरवाद होना । जैसे,-फसल सूखना। ५ आर्द्रता ५ भांग। विजया । ६ एक प्रकार की खाँसी जो बच्चो को न रहने से कडा होना। ६ डरना। सन्न होना । जैसे,—जान होती है, जिससे वे प्राय मर जाते है । हब्बा डब्बा । ७ खाना सूखना। ७. दुबला होना। कृश होना । जैसे,-लडका अग न लगने से या रोग आदि के कारण होनेवाला दुवलापन । मुहा०-सूखा लगना = सुखडी नामक रोग होना। ऐमा रोग मुहा०--सूखकर काटा होना = अत्यत कृश होना । बहुत दुवला लगना जिससे शरीर विलकुल सूख जाय । पतला होना । उ०--बदन सूख के दो ही दिन मे कॉटा हो गया। सूखासण@t-सा पुं० [स० सुखासन] दे॰ 'मुखामन' । उ०-जाइ -फिसाना०, भा० ३, पृ० २३८ । सूखे खेत लहलहाना = अच्छे सूखासण वइठो छइ राय।-वी० रासो, पृ० २७ । दिन आना। सूखे धानो पानी पड़ना = पूर्णतः निराशा की सूखिम-वि० [म० सूक्ष्म] ३० 'सूदम' । उ०--गई द्वारिका सूखिम हालत मे अकस्मात् इच्छा पूरी होना । ईप्मित की प्राप्ति होना। वेपा।-नद० ग्र०, पृ० १२८ । उ०--(क) सूखत धानु परा जनु पानी।-मानस, १।२६३ । (ख) बेगम समझी थी कि सूखे धानो पानी पडा।--फिसाना०, सूगध---सञ्ज्ञा श्री० [म० मुगन्ध] दे० 'सुगध' । उ०-दरवार भीर वरनी न जाड, सूगध वाम नासा अघाड । विगसत वदन छत्तीस भा०३, पृ० २२६ । बस, जदुनाथ जनम जनु जदुन बस।-पृ० रा०, १७१५ । सयो० क्रि०--जाना। सूखम-वि० [स० सूक्ष्म] दे० 'सूक्ष्म' । उ०—कवन सूखम कवन सूधर@-वि० [सं० सुघट] दे॰ 'सुघड' । अस्थूला।-प्राग०, पृ०१। सूच'-सज्ञा पु० [स०] कुश का अकुर । दीकुर । सूखमना@----सज्ञा स्त्री० [सं० सुपुम्ना, पु०हिं० सुपमन] दे० सूच-वि० [स० शुचि] निर्मल। पवित्र । (डिं०)। उ०-चारि 'सुपुम्ना' । उ०-सूखमना सुर की सरिता अघ ओघहि दीन- वरण सो हरिजन ऊँचे। भए पवित्तर हरि के सुमिरे । मन के दयाल हरै।--दीन० ग्र०, पृ० १७४ । उज्ज्वल मन के सूचे।--शब्दवर्णन, पृ० ३०८ । 1 सूख गया।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४२१
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