झाँझ। सूकरर्दष्ट्रक ७०३९ सूक्ष्मतुड सूकरदष्ट्रक-सशा [स०] दे० 'सूकरदष्ट्र' को०] । सूक्तवारी-वि० [स० सूक्तदशिन्] उत्तम वाक्य या परामर्श माननेवाला। सूकरनयन-भज्ञा पु० [स०] काठ मे किया जानेवाला एक प्रकार सूक्तदर्शी-सज्ञा पु० [स० सूक्तदशिन्] वह ऋषि जिसने वेदमत्रो का का छेद । अर्थ किया हा। मनद्रष्टा । सूकरपादिका--सज्ञा सी० [स०] १ किवाच । कपिकच्छ । कोछ । सूक्ता--संज्ञा स्त्री॰ [स०] मेना। शारिका । २ सेम । कोलशिवी। सूक्ति-सशा सो० [स०] उत्तम उक्ति या कथन । सुदर पद या सूकरप्रिया, सूकरप्रेयसी-सञ्ज्ञा सी० [म०] पृथिवी का एक नाम । वाक्य आदि । बढिया कथन । सूकरमुख-मञ्चा पुं० [स०] एक नरक का नाम । सूतिक-सज्ञा पु० [सं०] सगीत में प्रयुक्त एक प्रकार का करताल या सूकराक्राता--सञ्ज्ञा स्त्री० [स० सूकराक्रान्ता] वराहक्राता । सूकराक्षिता-सज्ञा स्त्री० [स०] एक प्रकार का नेत्र रोग । सूक्षम-वि० [स० सूक्ष्म दे० 'सूक्ष्म' । उ०---साँचे को सी ढारी सूकरास्या-सज्ञा स्त्री॰ [स०] एक बौद्ध देवी का नाम जिसे वाराही अति सूक्षम सुधारि, कढी केशोदास अग अग भाइ के उतारी भी कहते है। सी। केशव (शब्द॰) । सुकराया-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] गठिवन । ग्रथिपण। सूक्षम-सज्ञा पु० एक काव्यालकार । सूक्ष्म नामक अलकार । उ०-कौनहु भाव प्रभाव ते जाने जिय की बा । इगित ते सूकरिक-सज्ञा पु० [स०] एक प्रकार का पौधा । प्राकार ते कहि सूक्षम अवदात !-केशव (शब्द॰) । सूकरिका-सज्ञा स्त्री० [स०] एक प्रकार की चिडिया। सूक्ष्म-वि० [सं०] [वि॰ स्त्री० सूक्ष्मा] १ बहुत छोटा। जैसे,—सूक्ष्म- सू करी - सशा स्त्री० [सं०] १ सूअरी । शूकरी। मादा सूअर । २ वरा- जतु । २ बहुत बारीक या महोन। जैसे,—सूक्ष्म वात । ३ हक्राता। ३ वाराहीकद । गेठी। ४ एक देवी का नाम। उत्तम । श्रेष्ठ । कलात्मक । उम्दा (को०)। ४ तेज । चोखा वाराही । ५ एक प्रकार की चिडिया।। (को०)। ५ ठीक। सही (को०)। ६ कोमल । मृदु (को॰) । सूकरेष्ट-सज्ञा पुं० [सं०] १ कसेरु । २ एक प्रकार का पक्षी। ७ धूर्त । चालाक। सूक शमg+-वि० [स० सूक्ष्म, पु०हिं० सूक्षम, सूच्छम] दे० 'सूक्ष्म'। एक्ष्म--सज्ञा पु० १ परमाणु । अणु। २ परब्रह्म । ३ लिंगशरीर। उ०-ना सूल सूना सूकशम सू है काम । है मूल सूतुज ४ शिव का एक नाम । ५ एक दानव का नाम । ६ एक मेरा सरजाम-दक्खिनी०, पृ० १७२। काव्यालकार जिसमे चित्तवृत्ति को सूक्ष्म चेष्टा से लक्षित कराने सूका-सबा पुं० [स० सपादक (= चतुर्थांश सहित)] [स्त्री० सूकी का वर्णन होता है। दे० 'सूक्ष्म'। ७ निर्मली। ८ जीरा । १ चार पाने के मूल्य का सिक्का । चवन्नी। २ सिक्को के जीरक । ६ छल । कपट । १० रीठा। अरिष्टक । ११ लिखने मे चवन्नी का चिह्न जो एक खडी रेखा (1) के रूप सुपारी । पूग । १२ वह ओषधि जो रोमकूप के मार्ग से शरीर मे लगाते है। मे प्रविष्ट करे । जसे-नीम, शहद, रेडी का तेल, सेधा नमक, सूका-वि॰ [स० शुष्क, पा० सुक्ख, प्रा० सुक्क सूखा । शुष्क । नीरस । आदि । १३ बृहत्सहिता के अनुसार एक देश का नाम । १४ उ०-~-दादू सूका रूंखडा काहे न हरिया होड। आप खीच जैनियो के अनुसार एक प्रकार का कर्म जिसके उदय से मनुष्य अमीरस, सुफल फलिया सोइ ।-दादू०, पृ० ४६१ । सूक्ष्म जीवो की योनि मे जन्म लेता है। १५ योग की तीन सूका@--सज्ञा पु० अवर्पण । सूखा । उ०—अति काल सूका पड़े, तो शक्तियो मे से एक (को०)। १६ दाँत का खोखला या खोढर निरफल कदे न जाइ ।-कबीर ग्र०, पृ० ५८ । (को०)। १७ सूक्ष्म होने का भाव । सूक्ष्मता (को०)। १८ सूको-सज्ञा स्रो० [हिं० सूका( = चवन्नी ? )] रिश्वत । घूस । बारीक, महीन या उत्तम डोरा (को॰) । सूकूत--सज्ञा पु० [अ०] चुप्पी। खामोशी । मौन। उ०--यह आपके सूचमकृशफला, सूक्ष्मकृष्एफला-सझा स्त्री॰ [स०] कठजामुन । छोटा बेजार होने का इजहार है और सूकूत के पालम का सुबूत ह । जामुन । क्षुद्र जवू। -प्रेमधन०, भा०२, पृ०२४ । सूक्ष्मकोए--सज्ञा पुं० [स०] वह कोण जो समकोण से छोटा हो । सूकृत--मज्ञा पु० [स० सुकृत] पुण्य । पुण्य कार्य। उ०--जगजिवन सूक्ष्मघटिका--सशा सी० [स० सूक्ष्मघण्टिका] सनई । क्षुद्र शणपुप्पी। दास गुरु चरन गहि, सत सूकृत धन धाम ।-जग० श०, भा० सूक्ष्मक्षक-सज्ञा पु० [सं०] एक प्रकार का चक्र। २, पृ०६६ सूक्त'--सज्ञा [स०] १ वेदमत्रो या ऋचाओ का समूह । वैदिक स्तुति सूक्ष्मतहुल-वश पु० [स० सूक्ष्मतडुल] १ पोस्त दाना । खसखस । २ सर्जरस । धूना। या प्रार्थना । जैसे---देवीसूक्त, अग्निसूक्त, श्रीसूक्त प्रादि । २ सूक्ष्मतडुला-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० सूक्ष्मतण्डुला] १ पीपल । पिप्पली । उत्तम कथन | उत्तम मापण । ३ महद्वाक्य । २ राल । सर्जरस । ३ एक प्रकार की घास (को०) । सूक्त'-वि० उत्तम स्प से कथित । भली भाति कहा हुआ। सूक्ष्मता-पशा स्त्री० [स०] सूक्ष्म होने का भाव । बारीकी। महीन- यौ०-सूक्तद्रष्टा = सूक्तदर्शी। सूक्तभाक् = जिसके लिये सूक्त कहे पन । सूक्ष्मत्व। जायँ । सूक्तवाक = (१) मन्त्र का पाठ । (२) एक यज्ञ। सूक्त- सूक्ष्मतुड--सज्ञा पुं० [सं० सूक्ष्मतुण्ड] सुधृत के अनुसार एक प्रकार वाक्य = उत्तम वाणी । सूक्ति । का कीडा।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४१९
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