सुह्म ७०३७ सूअर दैत्य का नाम । ११ एक वानर का नाम । १२ वितथ के एक इंडो -सहा सी० [म० गुण्टी] एक प्रकार का सफेद कीटा जो कपास, पुत्र का नाम । १३ क्षत्रवृद्ध के एक पुत्र का नाम । अनाज, रेडी, ऊन आदि के पौधो को हानि पहुंचाता है । सुह्म-सज्ञा पुं० [सं०] १ एक प्राचीन प्रदेश का नाम जो गौड़ देश के सूंतना-क्रि० स० [. महम्त + हिं० ना (प्रत्य॰)] मैतना । साफ पश्चिम में था। २ यवनो की एक जाति । ३ सुह्म प्रदेश का करना। काछना । उ०-श्रीनाथ जी की गाँडन तरें की वह निवासी (को०)। पटेल कीच सूतत रहे ।- दो सौ बावन०, भा० १, पृ० २१४ । सुहाक-सज्ञा पुं० [म०] दे॰ 'मुह्म' । सूची-संज्ञा स्त्री॰ [म० शोधन] मज्जी मिट्टी । -अव्य० [स० सह, प्रा० सहुँ, सय० सउँ, सउ] करण और अपा. सूंपना--क्रि० स० [स० समर्पण, प्रा० समप्पण, हिं० मउँपना, दान कारक का चिह्न । सो । से । उ०-(क) कह्यो द्विजन मूं सीपना] दे० 'सौपना' । उ०-बनडा सूप बनी, हतले सुनहु पियारे ।- रघुराज (शब्द॰) । (ख, कहत थकी ये चरन मिल हाथ ।- वाँकी० ग्र०, भा॰ २, पृ० ५८ | की नई अरुनई वाल । जाके रंग रैगि स्याम सूं विदित कहावत तूंव--वि० [हिं० मूम] दे० 'सूम' । उ०-सूव सूब कहै मरव दिन, लाल ।-शृगारसतसई (शब्द॰) । जाचक पार्ट बूब । -बाँकी० ग्र०, मा० २, पृ० ३५ । सूइस [-सज्ञा स्त्री० [स० शिशुमार दे० 'सूस' । सूंघना-क्रि० म [स० ५/शिव (= प्राघाण) = गिटघति, प्रा० मिंध, झूम'-मशा स्त्री० [स० शिशुमार] एक प्रसिद्ध वडा जलजतु जो लवाई मे ८ से १२ फुट तक होता है और जिमके हर एक जबडे मे देशी सुघ] १ प्राणेंद्रिय या नाक द्वारा किसी प्रकार की गध तीस दान होते हैं । मम । सूसमार । उ०-लेन गया वह थाह का ग्रहण या अनुभव करना। अाधारण करना। वाम लेना। मूमि ले गा घिसिपाई ।--पलटू, पृ० ८८ । महक लेना। विशेष-यह पानी के बहाव में पाया जाता है और एक जगह नही मुहा०-सिर सूंघना = बडो का मगलकामना के लिये छोटो का रहता। सांस लेने के लिये यह पानी के ऊपर पाता है और मस्तक सूंघना। बडो का गद्गद होकर छोटो का मस्तक पानी की सतह पर थोडी देर तक रहता है । शीतकाल मे कभी सूघना। जमीन सूंघना = (१) पिनक लेना । ऊँघना। (२) कभी यह जल के बाहर निकल आता है। इसकी आंखें बहुत किसी अस्त्र के वार से जमीन पर गिर पडना । कमजोर होती है और यह मटमैले पानी मे नही देख सकता। २ बहुत अल्प आहार करना। बहुत कम भोजन करना। इसका आहार मछलियों और झिगवा है । यह जाल में फंसाकर (व्यग) । जैसे,- आप तो खाली सूधकर उठ बैठे। ३ सांप या वछियो से मार मारकर पकडा जाता है, इसका तेल जलाने का काटना । जैसे,-बोलता क्यो नही ? क्या सांप सूघ तथा कई दूसरे कामो मे आता है। गया है? सूंघा-सचा पुं० [हिं० सूघना] १ वह जो नाक से केवल सूचकर सूंस-मज्ञा स्त्री० [सं० शपथ] सौह । उ०--सूस करे कवडी सटे, ते गुण घटे तमाम।-बांकी० ग०, भा॰ २, पृ० ४२ । यह बतलाता हो कि अमुक स्थान पर जमीन के अदर पानी या सूंह'-अव्य० [स० सम्मुख पु०हिं० सौहें] समुख। सामने । उ०- खजाना आदि है । २ सूधकर शिकार तक पहुँचनेवाला कुत्ता। साध मती श्री सूरमा, दई न मो. मूह। ये तीनो भागे बुरे, ३ भेदिया। जासूस । मुखबिर । साहेब जा की मूह।- कबीर सा० सं०, मा० १, पृ० २४ सूंठा--संज्ञा स्त्री० [म० शुण्ठि, हिं० सोठ] दे० 'सोठ'। मू-वि० [म.] उत्पन्न करने या पैदा करनेवाला। (ममासात मे सूंड--समा स्त्री० [सं० शुण्ड] हाथी की नाक जो बहुत लवी होती हे प्रयुक्त) । जैसे, बीरसू। और नीचे की ओर प्राय जमीन तक लटकती रहती हे । शुड। सू. -सरा टी० १ उत्पत्ति । पैदाइश । प्रसव । जन्म। २ माता । शुडादड। जननी [फो०] 1 विशेष --यह लबाई मे प्राय हाथी की ऊँचाई तक होती है। मू-सज्ञा स्त्री० [फा०] ओर । तरफ। दिशा। उ०-नजर प्राती है इसमे दो नथने होते है। हाथी इसी से हाथ का भी काम लेता हर सू सूरते ही मूरते मुझको ।-प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० ११६ । है। यह इतनी मजबूत होती है कि हाथी इससे पेड उखाड सू-मज्ञा स्त्री॰ [तुर्की] पराब । मद्य । मदिरा [को॰] । सकता है और भारी से भारी चीज उठाकर फेक सकता है। इसी मे वह खाने की चीजे उठाकर मुंह मे रखता है और सूअर-सजा पु० [म० शूकर, मूकर, प्रा० सुअर, नगर] [स्त्री० मुअरी, सूग्ररी] १ एक प्रगिद्ध स्तन्यपायी वन्य जतु । वराह । शकर। दमकल की तरह पानी फेकता और पीता है । इससे वह जमीन पर से सूई तक उठा सकता है । विशेप-यह मुख्यत दो प्रकार का होता है। (१) वन्य या जगनी पीर (२) ग्राम्य या पालतू । ग्राम्य मूसर घान मादि सूंडडड --सज्ञा पुं० [हिं० सूड + दड] हाथी। (डि०) । के गिवा विष्ठा मी बाता है, पर जगली पर घास और कद सुंडहला-सज्ञा पु० [स० शुण्ड + हल (प्रत्य० ? )] हाथी । (डि०) । मूल प्रादि हो साता है । यह ग्राम्य शूकर की अपेक्षा बहुत बडा संग-सञ्ज्ञा पुं० [स० शुण्डा] हायी की या नाक । (डि.) । प्रांर बल गार होता है। यह प्राय मनुष्यों पर ही प्रारमण सूंडाल-मशा पुं० [सं० शुण्डाल] दे० 'शुडाल' । करता है, मीर उन्हें मार टालता है । इसके कार्ड मेद है । इमरा डि-मशाग्नी० [स० शुण्ड, प्रा० सुड] दे० 'सूड' । लोग शिकार करते है और कुछ जातियां उनका माम भी गाती हि० २० १०-५१
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४१७
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