- बर सुसार ७०३२ सुस्कंध सुसार--सज्ञा स्त्री० [स० स्वसृ] बहन । भगिनी । स्वसा । उ० सुसिर--सञ्चा पु० [स०] दाँत का एक रोग उ०-पचवटी सुदर लखि रामा। मोहत भई सुपनखा वामा । विशेप--वाग्भट के अनुसार यह रोग पित्त और रक्त के कुपित रावन सुसा राम ते भापा । पुनि सीता भोजन अभिलापा ।- होने से होता है। इसमे दाँतो की जड फूल जाती है, उसमे गिरिधरदास (शब्द०)। बहुत दर्द होता है, खून निकलता है और मास कटने या गिरने सुसा--सञ्ज्ञा पु० [देश॰] एक प्रकार का पक्षी । उ०--हनत सुसा लगते है वुज्जर उतग।--सूदन (शब्द॰) । सुसीतलताई-सज्ञा स्त्री० [स० सुशीतलता] दे० 'सुशीतलता' । सुसाइटी--सज्ञा स्त्री० [अ० सोसाइटी। दे० 'सोसाइटी' । सुसीता--सज्ञा स्त्री॰ [स०] सेवती । शतपत्री। सुसाधन--वि० [स०] जो सरलता से साधा जा सके या प्रमाणित सुसीम'-नि० [स० सुसम] शीतल । ठढा । (डि०) । हो सके (को०] । सुसीम'-वि० [स०] जिसका सीमत या सीम शोभन हो। सुसाधित-वि० [म०] १ अच्छी तरह साधा हुअा या शिक्षित । २ सम्यक् पाचित । पकाया या सिद्ध किया हुआ । मुसीम-सज्ञा पुं० विंदुसार का एक पुत्र [को०] । सुसाध्य--वि० [स०] [सशा सुसाधन] जिसका सहज मे साधन किया सुमीमा--सशा स्त्री० [स०] १ जैनो के अनुसार छठे अहंत की माता जा सके। जो महज मे किया जा सके। सुखसाध्य । सहज- का नाम । २ उत्तम सीमा। सु दर सीमा (को०)। साध्य । २ सरलता से नियनित करने योग्य । ३ सरल । सुसुकना -क्रि० अ० [हिं० सिसकना] दे० 'सिमकना' । प्रासान । साधारण। सुसृडी-सज्ञा स्त्री॰ [सुर सुर से अनु०] एक प्रकार का कीडा जो जो मे सुसाना--क्रि० अ० [हिं० साँस] सिसकना। उ०-रामहि राज्य लगता है और उसके सार भाग को खा जाता है । सुरसुरी। विदेश बसे सुत सोच कियो यह बात न चगी। एक उपाय सुसुनिया-तज्ञा पुं॰ [देश॰] एक पहाड जो बगाल प्रदेश के बांकुडा करो सु फिरे मत 8 बर वेलेउ मांग सुरगी। भूपण डारन जिले में है। आंचर लेत है जात सुसात सुपाइन नगी। दौर चली पिय पै विशेष-यहाँ चौथी शताब्दी का एक शिलालेख है जिससे जाना मांगत मानहु काल कराल मुजगी। हनुमन्ना जाता है कि पुष्कर के राजा चद्रवर्मा ने इस पहाड पर चक्र- टक (शब्द०)। स्वामी की स्थापना की थी। ससामुझि--वि० [म० सु + हिं० समझ] अच्छी समझवाला। सुसुपी-सशा स्त्री० [हिं० सुषुप्ति] दे० 'सुषुप्ति' । उ०---सुख दुख सुबुद्धि । समझदार । उ०--नाम रूप दुइ ईस उपाधी । अकथ है मन के धरम नही पातमा मांहि । ज्यी मुसुपी मैं द्वददुख अनादि सुसामुझि साधी । —तुलसी (शब्द०)। मन विन भास नाहिं । --दीनदयाल (शब्द॰) । सुसायटी--सशा स्त्री० [अ० सोसायटी] दे० 'सोसाइटी' । सुसुम-वि० [सं० सुपमा] सुदर। उ०-जहँ पिय सुमुम कुसुम सुसार'--सज्ञा पुं० [स०] १ नीलम । इद्रनील मणि । २ लाल खैर । लै मुकर गुही हे वेनी।-नद० ग्र०, पृ० १६ । रक्त खदिर वृक्ष । ३ उत्तम सार या तत्व (को०) । ४ क्षमता। सुसुरप्रिया-राज्ञा स्त्री० [सं०] चमेली । जातीपुष्प । सामर्थ्य (को०)। ५ सारयुक्त वस्तुएँ । पक्वान्न आदि। उ०- सुसूक्ष्म'-सज्ञा पुं॰ [स०] परमाण । पठई जनक अनेक सुसारा।-मानस, १।३३३ । सुसार'-वि• अत्यत सारयुक्त [को॰] । सुसूक्ष्म'--वि० अत्यत सूक्ष्म । बहुत बारीक या छोटा। २ अत्यत कोमल । अतीव मृदु (को०) । ३ तेज। तीव्र । तीक्ष्ण । प्रखर । सुसारना -क्रि० स० [हिं० 'सु+ सारना] अच्छी तरह समझाना जैसे सूक्ष्म वुद्धि (को०)। या सारना। सुसूक्ष्मपत्रा-सजा स्त्री॰ [स०] आकाशमासी । जटामासी। बालछड । सुसारवत्-सज्ञा पुं॰ [स०] बिल्लौर । स्फटिक । सुसूक्ष्मेश-सज्ञा पु० [स०] (परमाणुप्रो के प्रभु या स्वामी) विष्ण सुसारवत्'---वि० उत्तम सार या तत्व से-युक्त (को०] । का एक नाम। सुसिकता--सज्ञा स्त्री० [सं०] १ चीनी । शर्करा ।.२ ककड । करी । बजरी। ३ अच्छी रेत या बालू (को०] । सुसृत-वि० [स०] खूब तप्त । सुसिक्त--वि० [स०] अच्छी तरह सीचा हुआ। सुसेन-सज्ञा पुं० [स० सुपेण] दे॰ 'सुपेन' । सुसेव्य-वि० [स०] १ अच्छी तरह सेवा करने योग्य । २ सरलता से सुसिद्ध-वि० [स०] १ जिसे उत्तम सिद्धि प्राप्त हो। २ भली प्रकार गमन करने योग्य । जैसे, पथ, मार्ग (को०] । सिद्ध किया हुग्रा । पका या पकाया हुआ [को॰] । सुसिद्धि-सज्ञा सी० [स०] साहित्य मे एक प्रकार का अलकार। जहाँ सुसैघवी-सज्ञा स्त्री० [० सुसैन्धवी] सिंध देश की अच्छी घोडी। परिश्रम एक मनुष्य करता है, पर उसका फल दूसरा ही भोगता सुसो-सज्ञा पुं॰ [स० शश] खरगोश । खरहा । (डि०) । है, वहाँ यह अलकार माना जाता है। उ०-साधि साधि और सुसौभग-सज्ञा पु० [स०] दापत्य सुख । पति पत्नी सबधी सुख मर और भौग सिद्ध । तासो कहत सुसिद्धि सब जे है बुद्धि सुस्कदन-सञ्ज्ञा पुं० [स० सुस्कन्दन] वर्वर वृक्ष । समृद्ध ।-केशव (शब्द०)। सुस्कंध-वि० [स० सुस्कन्ध] सुदर स्कध या तनेवाला। -
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४१२
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