पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४०२

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सुवर्चस, सुवर्चस ७०२२ सुवर्णधेनु सुवर्चस, सुवर्चस--सज्ञा पुं॰ [स०] १ शिव का एक नाम । २ वह सुवर्णकर्ता f-सज्ञा पुं॰ [स० सुवर्णकर्तृ] सोने के गहने बनानेवाला। जो अत्यत दीप्तियुक्त हो किो०] । सुनार । स्वर्णकार। सुवर्चसी, सुवर्चसी--संज्ञा पु० [म० सुवर्चसिन्] १ शिव का एक सुवर्णकर्प--सशा [सं०] सोने की एक प्राचीन तौल जो सोलह माशे नाम । २ स्वजिकाक्षार। सज्जी (को०)। की होती थी। सुवर्चस्क सुवर्चस्क-वि० [सं०] दीप्तियुक्त । चमकता हुआ। सुवर्णकार-सज्ञा पुं० [सं०] सोने के गहने बनानेवाला, सुनार । कातियुक्त (को०] । सुवर्णकृत्-सज्ञा पुं० [सं०] सुवर्णकार । सुनार [फो०] । सुवर्चा, सुवर्चा'-सज्ञा पु० [स० सुवर्चस्] १ गरड के एक पुत्र का सुवर्णकेतकी--सज्ञा स्त्री० [सं०] लाल केतकी । रक्त केतकी। नाम । २ स्कद के एक पारिपद नाम । ३ दसवें मनु के एक सुवर्णकेश-सशा पुं० [सं०] बौद्धी के अनुमार एक नागासुर का नाम । पुत्र का नाम । ४ धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम । सुवर्णक्षीरिणी - संज्ञा स्त्री० [सं०] कटेगे। सत्यानासी । कटुपर्णी । सुवर्चा, सुवर्चा ---वि० तेजस्वी। शक्तिवान् । स्वर्णक्षीगे। सुचिक, सुच्चिक--सज्ञा पु० [स०] दे० 'सुवर्चक' । सुवर्णक्षीरी-सज्ञा स्त्री० [सं०] दे॰ 'सुवणक्षीरिणी' [को०] । सुवचिका, सुच्चिका-मज्ञा स्रो॰ [स०] १ सज्जी। स्वर्जिकाक्षार । सुवर्णगणित-सज्ञा पु० [सं०] वीजगणित का वह अग जिसके २ पहाडी लता। जतुका। अनुसार सोने की तौल आदि मानी जाती है और उसका हिमाव सुवर्ची, सुवर्ची-सज्ञा पु० [स०] दे० 'सुवर्चक' । लगाया जाता है। सुजिका-सज्ञा स्त्री० [सं०] पहाडी लता । जतुका । सुवर्णगर्भ-सज्ञा पुं० [सं०] एक वोधिसत्व का नाम । सुवर्ण'--सज्ञा पुं० [सं०] १ सोना । स्वर्ण । २ धन । सपत्ति । दौलत । सुवर्णगर्भ-वि० जिसमे स्वर्ण भरा हो । ३ प्राचीन काल को एक प्रकार की स्वर्ण मुद्रा जो दस माशे सुवर्णगर्भा-वि० [सं०] जहां सोने को खाने हो (भूमि)। की होती थी। ४ सोलह माशे का एक मान । ५ स्वर्णगैरिक। सुवर्णगिरि-संज्ञा पुं० [सं०] १ राजगृह के एक पर्वत का नाम । ६ हरिचदन । ७ नागकेशर । ८ हलदी। हरिद्रा । ६ धतूरा। अशोक की एक राजधानी जो किसी के मत से पश्चिमी १० कणगुग्गुल। ११ पीला। धतूरा। १२ पीली सरसो। घाट मे थी। गौर सर्षप। १३ एक प्रकार का यज्ञ। १४ एक वृत्त का सुवर्णगैरिक-सज्ञा पुं० [सं०] लाल गेरु । नाम । १५ एक देवगधर्व का नाम । १६ दशरथ के एक मनी पर्या०-स्वर्णधातु । सुरक्तक । सघभ्र । वभ्रधातु । शिलाधातु । का नाम । १७ अतरीक्ष के एक पुत्र का नाम। १८ एक मुनि सुवर्णगोत्र-सज्ञा पुं० [सं०] बौद्धो के अनुसार एक प्राचीन राज्य का नाम । १६ उत्तम जाति या अच्छा वर्ण (को०) । २० सुव- का नाम । लु कद (को०) । २१ स्वर का शुद्ध उच्चारण (को०)। २२ सुवर्णन-सज्ञा पुं० [स०] रांगा । बग । एक तीर्थ (को०) । २३ उत्तम वर्ण । अच्छा रग (को॰) । सुवर्ण-वि० १ सु दर वर्ण या रग का। उज्वल । चमकीला (को॰) । सुवर्णचपक-शा पुं० [सं० सुवर्णचम्पक] पोत चपा [को०] । २ सोने के रंग का । स्वर्णिम । पीला । ३ उत्तम वश या अच्छी सुवर्णचक्रवर्ती-सज्ञा पुं० [सं० सुवणचक्रवर्तिन] नृपति । राजा । जाति का (को०)। ४ ख्यात । प्रसिद्ध (को०)। सुवर्णचूड--सञ्ज्ञा पुं० [सं० सुवरांचूड] १ गरुड के एक पुत्र का सुवर्णकर-सज्ञा पुं॰ [स०] १ सोना । २ सोने की एक प्राचीन तौल नाम । २ एक प्रकार का पक्षी। जो सोलह माशे की होती थी। सुवर्णकर्प । ३ पीतल जो देखने सुवर्णचूल-सज्ञा पुं० [सं० सुवर्णचूड] दे० 'सुवर्णचूड' । मे सोने के समान होता है। ४ अमलतास । पारग्वध वृक्ष। सुवर्णचौरिका-सञ्ज्ञा सी० [सं०] सोना चुराना । सोने की चोरी । ५ सुवर्णक्षीरी । ६ सीसा धातु (को०) । स्वर्ण की तस्करता [को०)। सुवर्णकर. - वि०१ तोने का । २ सु दर वर्ण या रग का। सुवर्णजीविक-सशा पुं० [सं०] प्राचीन काल की एक वर्णसकर जाति जो सोने का व्यापार करती थी। सुवर्णकदली-सज्ञा स्त्री० [स०] चपा केला । चपक रभा । सुवर्णकमल--सञ्ज्ञा पु० [सं०] लाल कमल । रक्तकमल । सुवर्णज्योति--वि० [स० सुवर्णज्योतिस्] स्वर्णिम कातिवाला। सुनहली चमकवाला [को०] । सुवर्णकरणी-सज्ञा की० [स० सुवर्ण + करण] एक प्रकार की जड़ी। सुवर्णता--सज्ञा स्त्री० [सं०] सुवर्ण का भाव या धर्म । सुवर्णत्व । इमका गुण यह बताया जाता है कि यह रोगजनित विवर्णता सुवर्णतिलका--सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] मालकगनी । ज्योतिष्मती लता। को दूर कर सुवर्ण अर्थात् सु दर कर देती है। सुवर्णकरनी-पञ्ज्ञा स्त्री० [स० सुवर्ण + हिं० करनी] दे० 'सुवर्ण सुवर्णत्व-पशा पुं० [सं०] दे० 'सुवर्णता'। करणी'। उ०-दक्षिण शिखर द्रोणगिरि माही। औषधि सुवर्णदुग्धी-सशा स्त्री० [सं०] कटेरी । भटकटैया । स्वर्णक्षीरिणी। चारिहु अहै तहाँ ही। एक विशल्पकरनी सुखदाई । एक सुवर्ण- सुवर्णद्वीप--सज्ञा पुं० [स०] सुमात्रा टापू का प्राचीन नाम । करनी मनभाई। एक सजीवनकरनी जोई। एक सधानकरन सुवर्णधेनु-सञ्ज्ञा सी० [सं०] दान देने के लिये सोने की बनाई मुदमोई।-रघुराज (शब्द०)। हुई गौ।