चोर। । सुरियाखार ७०१६ सुरेंद्रवज्रा सुरियाखार-सञ्ज्ञा पुं० [फा० शोरा + हिं० खार] शोरा । विशेष-मूंगफली के इस रोग में कुछ कीडो के खाने के कारण सुरो-सज्ञा स्त्री॰ [स०] देवपली । देवागना। उसके पत्ते और डठल टेढ़े हो जाते हैं। इस पौधे मे यह रोग सुरोला-वि० [हिं० सुर + ईला (प्रत्य॰)] [वि० स्त्री० सुरीली] मीठे प्राय सभी जगहो मे होता है और इससे बडी हानि होती है । सुरवाला । मधुर स्वरवाला । जिसका सुर मीठा हो । मुस्वर । सुरुवा' -मचा पुं० [फा० शोरवा] दे० 'शोरवा'। सुकठ । जैसे-सुरीला गला, सुरीला वाजा, सुरीला गया, सुरुवा'- सचा पुं० [सं० श्रुवा] दे० 'सुरवा' । सुरीली तान। सुरूप-वि० [सं०] [वि० सी० सुरूपा] १ मुदर रूपवाला । रूपवान् । सुरुग-सज्ञा पुं॰ [स० सुन्ङ्ग] १ सहिजन। शोभाजन वृक्ष । २ ३० खूबसूरत २ विद्वान् । बुद्धिमान् । 'सुग्ग'। सुरूप--मझा पु. १ शिव का एक नाम । २ एक असुर का नाम । सुरु गयुक-मज्ञा पुं० [स०, सुरडगयुक्] दे० 'सुरगयुक्' । ३ कपास । तूल। ८ पलास पीपल । परिपाश्वत्य। ५ कुछ विशिष्ट देवता और व्यक्ति । मुरुगा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० सुरुडगा] दे० 'सुरग' । विशेष--कामदेव, दोनो अश्विनीकुमार, नकुल, पुररवा, नलकूवर सुरुगाहि-सज्ञा पुं॰ [स० सुरुद्धगाहि] सेध लगानेवाला चोर । सेंधिया और शाब ये सुरूप कहलाते हैं। सुरूप-सा पुं० [सं० स्वस्प] दे० 'स्वरूप"। उ०-रूप सवाई सुरुदला -सज्ञा स्त्री० [स० सुमन्दला] एक प्राचीन नदी का नाम । दिन दिन चढा। विधि सुरूप जग ऊपर गढा।—जायसी (शब्द०)। सुरुषम-वि० [सं०] अच्छी तरह प्रकाशित । प्रदीप्त । सुरूपक-वि० [सं०] दे० 'स्वरूप"। सुरुख'-वि० [स० सु + फा० रुख (= प्रवृत्ति)] अनुकूल । सदय । सुरूपता--सशा स्त्री॰ [म०] सुस्प होने का भाव । सुदरता । खूबसूरती । प्रसन्न । उ०-सुरुख जानकी जानि कपि कहे सकल सकेत । सुरूपा'–पज्ञा स्त्री० [सं०] १ सरिवन । शालपर्णी। २ वमनेठी । -तुलसी शब्द०)। भारगी। ३ सेवती। वनमल्लिका ।४ वेला । वापिकी मल्लिका। सुरुख'-वि० [फा० सुख] दे॰ 'सुख ।' उ०--रच न देरि करहु ५ पुराणानुसार एक गौ का नाम। ६ एक नागकन्या और सुरुख अब हरि हेरि पर न। विनय वचन मा सुनि भए सुरुख एक अप्सरा का नाम (को०)। तरुनि के नैन।-शृगार सतसई (शब्द०)। सुरूपा-वि० सी० सु दर रूपवाली । सुदरी। सुरुखुरू-वि० [फा० सुखरू] जिसे किसी काम मे यश मिला हो। यशस्वी। उ०--अलहदाद मल तेहिकर गुरू । दीन दुनी रोसन सुरूर-सा पुं० [फा०] दे० 'सरूर। सुरुखुरू ।--जायसी (शब्द॰) । मुहा०-३० 'सरूर' के मुहा० । यो०-सुरूर अगेज = हलका नशा लानेवाला । मादक । सुरुच'-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] उज्वल प्रकाश । अच्छी रोशनी। सुरुहक--सरा पुं० [सं०] खच्चर । गर्दभाश्व । सुरुच'-वि० सुदर प्रकाशवाला। सुरेंद्र-सञ्ज्ञा पु० [सं० सुरेन्द्र] १ सुरराज । इद्र । २ लोकपाल । राजा । सुरुचि-सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ राजा उत्तानपाद की दो पत्नियो मे से ३ विष्णु । उपेंद्र (फो०)। एक जो उत्तम की माता थी। ध्रुव की विमाता। २ उत्तम सुरेंद्रकद-सज्ञा पुं० [सं० सुरेन्द्रकन्द] दे० 'सुरेद्रक' । रुचि । ३ सुदर दीप्ति । ४ अत्यत प्रसन्नता । सुरेंद्रक-सञ्ज्ञा पुं० [सं० सुरेन्द्रक] कटु शूरण । काटनेवाला जमीकद । सुरुचि:--वि० १ उत्तम रुचिवाला । जिसकी रुचि उत्तम हो। २ जगली अोल। स्वाधीन । (डिं०)। सुरेंद्रगोप-सज्ञा पुं० [० सुरेन्द्रगोप] वीरबहूटी। इद्रगोप नामक सुरुचि'--सज्ञा पुं० १ एक गधर्व राजा का नाम । २. एक यक्ष सुरंद्रचाप-सशा पुं० [सं० सुरेन्द्रचाप] इद्रधनुष । सुरुचिर-वि० [स०] १ सुदर । दिव्य । मनोहर । २ उज्वल । सुरंद्रजित्-सचा पुं० [सं० सुरेन्द्रजित्] इद्र को जीतनेवाला, गरुड । प्रकाशमान् । दीप्तिशाली। सुरेद्रता-समा स्त्री० [सं० सुरेन्द्रता] सुरेंद्र होने का भाव या धर्म । सुरुज-वि० [म०] बहुत बीमार । अस्वस्थ । स्ग्ण । इद्रत्व। सुरुज-मज्ञा पुं० [सं० सूर्य] दे० 'सूर्य'। उ०--तह ही से सब सुरंद्रपूज्य-सज्ञा पुं० [सं० सुरेन्द्रपूज्य] बृहस्पति । ऊपजे चद सुरुज अाकाश ।-दादू (शब्द॰) । सुरेंद्रमाला-सज्ञा स्त्री० [सं० सुरेन्द्रमाला] एक किन्नरी का नाम । सुरुजमुखी-सज्ञा पु० [स० सूर्यमुखी] दे० 'सूर्यमुखी' । उ०—विचरि सुरेंद्रलुप्त-सज्ञा पुं० [सं० सुरेन्द्रलुप्त] इद्रलुप्न । बाल झड़ने का चहुँ दिसि लखत हैं वर पूजे वृजराज । चद्रमुखी को लखि सखी रोग । गजापन (को०] । सुरुजमुखी सी आज ।-शृगार सतसई (शब्द॰) । सुरेद्रलोक-संज्ञा पुं० [सं० सुरेन्द्रलोक] इद्रलोक । सुरुद्रि--सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] शतद्रु या वर्तमान सतलज नदी का एक नाम । सुरद्रवजा-सज्ञा स्त्री० [सं० सुरेन्द्रवजा] एक वर्णवृत्त का नाम सुरुल--सज्ञा पुं॰ [देश॰] मूगफली पौधे का एक रोग । जिसमे दो तगण, एक जगण और दो गुरु होते है । इद्राणी। कीडा। का नाम ।
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