पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३८३

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२ उत्तम उपाय। मकोय । सुयश ७००३ सुरकंत सुयश-वि० [स० मुयशम्] उत्तम यशवाला । यशम्बी कीर्तिमान् । क्रि० प्र०-उडाना । लगाना। मुयश' सज्ञा पुं० भागवत के अनुसार अशोकवर्धन के पुत्र का नाम । ३ एक प्रकार का यत्र जिसमे वारूद से भग हुग्रा एक पीपा होता सुयशा--सजा स्त्री० [स०] १ दिवोदाम की पत्नी का नाम । २ एक है और जिमके ऊपर एक नार निकला हुअा होता है । अर्हत् की माता का नाम । ३ परीक्षित की एक स्त्री का नाम । विशेष--यह यत्न समुद्र मे डुबा दिया जाता है और इसका तार ४ एक अप्सरा का नाम । ५ अवसर्पिणी। ऊपर की ओर उठा रहता है। जब किसी जहाज का दा इस तार से छू जाता है, तो अपनी भीतरी विद्युत् शक्ति सुयष्टव्य-सज्ञा पुं० [सं०] रैवत मनु के एक पुत्र का नाम । की सहायता मे वास्द मे आग लग जाती है जिमके फूटने से सुयाति-मज्ञा पुं० [स०] हरिवश के अनुसार नहुष के एक पुत्र ऊपर का जहाज फटकर डूब जाता है। इसका व्यवहार प्राय का नाम। शत्रुनो के जहाजो को नष्ट करने मे होता है। सुयाम - सज्ञा पुं० [म०] ललितविस्तर के अनुसार एक देवपुत्र ४ वह सूगख जो चोर लोग दीवार मे बनाते हैं । सेध । का नाम। क्रि० प्र०--लगाना। सुयामुन-सा पुं० [स०] १ विष्णु। २ राजभवन । राजप्रासाद । ३ एक प्रकार का मेघ । ४ एक पर्वत का नाम । ५ वत्सराज मुहा०--सुरग मारना = सेंध लगाकर चोरी करना। (उदयन) का एक नाम (को०) । सुरंगद --सज्ञा पु० [म० सुरगद पतग · बक्कम । पाल । सुयुक्त - सज्ञा पुं॰ [स०] शिव का एक नाम [को॰] । सुरगगतु--सशा पुं० स० मुरडगधातु| गेर मिट्टी। सुयुक्ति-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १ अच्छी युक्ति । उत्तम तर्क । सुरगधूलि--मज्ञा स्त्री० मं० मुरगलि] नारगी का पगग किो०) । सुरगभुक--सबा पु० स० सुरडगभुन् । सेध लगानेवाला । चोर । सयुद्ध-सज्ञा पु० [सं०] १ धर्मयुद्ध । न्यायसमत युद्ध । २ अच्छी सुरगा--मशा स्त्री० [म० मुरडगा] १ कैवर्तिका लता। २ सेध । तरह लडना । जमकर लडना (को॰) । सुरगिका--सज्ञा स्त्री० [सं० सुरद्धिगका] १ मूर्वा । मुर्हगे। चुरनहार । सुयोग-सज्ञा पु० [सं०] सु दर योग। संयोग । सुअवसर। अच्छा २ उपोदिका। पोई का साग ३ श्वेत काकमाची। मफेद मौका । जैसे,—वडे भाग्य से यह सुयोग हाथ पाया है। सुयोग्य--वि० [सं०] बहुत योग्य । लायक | काविल। जैसे,—उनके दोनो पुत्र सुयोग्य है। --सज्ञा स्त्री० [मं० सुरडगी। १ काकनामा । कौपाठोठी। २ सुरगी-- पुन्नाग । मुलतान चपा । ३ रक्त शोभाजन । लान महिंजन । सुयोधन-सञ्ज्ञा पु० [सं०] धृतराष्ट्र के बडे पुन दुर्योधन का एक नाम । ४ पाल का पेड जिससे पाल का रग बनता है। सुरग-वि० [म० सुरडग] १ जिसका रग मु दर हो। सु दर रग का। २ सुदर । सुडौल । उ०--(क) सब पुर देखि धनुषपुर देख्यो सुरंजन--मज्ञा पुं० [स० सुरञ्जन] सुपारी का पेड । देखे महल सुरग।—सूर (शब्द॰) । (ख) अलकावलि मुक्ता- सुरधक, सुरंध्र--सचा ( स० सुरन्धक, सुरन्ध्र] १, एक प्राचीन जनपद वलि गूंथी डोर सुरग विराज। सूर (शब्द॰) । (ग) गति हेरि का नाम । २ उस जनपद का निवासी। कुरग कुरग फिरै चतुरग तुरग सुरग बने ।-गि० सुर'--सज्ञा पुं० [स०] १ देवता । २ सूर्य । ३ पडित । विद्वान । (शब्द०)। ३ रसपूर्ण। उ०--रमनिधि सुदर मौत के रग ४ मुनि । ऋपि । ५ पुराणानुसार एक प्राचीन नगर का नाम चुचौंहे नैन । मन पट को कर देत है तुरत सुरग ये नैन ।-रस- जो चद्रप्रभा नदी के तट पर था। ६ अग्नि का एक विशिष्ट निधि (शब्द॰) । ४ लाल रंग का । रक्तवर्ण। उ०--पहिरे रूप। ७ देवविग्रह । देवप्रतिमा (को॰) । ८ ३३ की वसन सुरग पावकयुत स्वाहा मनो।--केशव (शब्द०)। ५ निर्मल । स्वच्छ । साफ। उ०--अति वदन शोभ सरसी सुर--सशा पु० [स० स्वर] स्वर । ध्वनि । अावाज । विशेप ३० सुरग । तहँ कमल नयन नासा तरग ।--केशव (शब्द॰) । सुरंग'--सज्ञा पुं० १ शिंगरफ। हिंगुल । २ पतग। वक्कम । ३ यो०--सुरतान । सुरटीप। नारगी । नाग रग । ४ रग के अनुसार घोडो का एक भेद । क्रि० प्र०--छेडना।--देना 1--मरना।-मिलाना । सुरग-मज्ञा स्त्री० [स० सुरडग] १ जमीन या पहाड के नीचे खोदकर या वारूद से उडाकर बनाया हुआ रास्ता जो लोगो के आने मुहा०-सुर में सुर मिलाना = हाँ मे हाँ मिनाना। चापलूसी जाने के काम मे पाता है । जैसे,--इस पहाड मे रेल कई सुरगें करना। सुर भरना = किसी गाने या वजानेवाले को महारा पार करके जाती हैं । २ किले या दीवार आदि के नीचे जमीन देने के लिये उसके साथ कोई एक सुर अलापना या वाजे आदि के अदर खोदकर बनाया हुग्रा वह तग रास्ता जिसमे वारूद से निकालना। आदि भरकर उसमे ग्राग लगाकर किला या दीवार उडाते है। सुरकत--संशा पुं० [सं० मुर+कान] उद्र। उ०--मतिमत महा उ.--भरि वास्द सुरग लगावै । पुरी सहित जदु भटन उड़ावै । छितिकत मनि चढि द्विदत नुरक्त सम ।--गि० दाम -गोपाल (शब्द०)। (शब्द०)। दास सख्या तो