२०६८ -- सुभीम' सुमन सुभीम'- वि० [वि० स्त्री० सुभीमा] अत्यत भीषण । बहुत भयावना। को ब्राह्मण शून्य किया और इस प्रकार क्षत्रियो का प्राधान्य सुभीमा--सज्ञा स्त्री० [सं०] श्रीकृष्ण की एक पत्नी का नाम । स्थापित किया। सुभीरक, सुभीरव--सज्ञा पु० [सं०] ढाक का पेड । पलाश वृक्ष । सुभ्रपुर-वि० [म० शुभ्र] दे॰ 'शुध्र' । सुभीरुक-सञ्ज्ञा पु० [स०] चाँदी । रजत । सुभ्र'-सशा पु० [सं० श्वन, दि०] जमीन मे का विल या गड्ढा । सुभुज'--वि० [स०] सु दर भुजाअोवाला। सुबाहु । सुभ्राज-नशा पुं० [०] देव नाज के एक पुत्र का नाम । सुभुज-सज्ञा पुं० [स०] सुवाहु नामक राक्षस । उ०-जो मारीच सुभ्र' - सज्ञा सी० [म०] १. नारी । स्त्री । औरत । २ सुदर नेत्रोवाली सुभुज मदमोचन ।-मानस, १।२२१ । नारी। ३. स्कद की एक मातृका का नाम । सुभुजा--सज्ञा स्त्री॰ [स०] एक अप्सरा का नाम । सुभ्र'--वि० सु दर मोहोवाला । जिसकी मवें सु दर हो । सुभूता--सद्या स्त्री० [स०] उत्तर दिशा का नाम जिसमे प्राणी भले सुभ्र-वि० [सं०] दे० 'मुन् । प्रकार स्थित होते हैं । (छादोग्य०)। सुभ्रू'-सशा स्त्री० तिरछी भौहोवाली सुदरी । अाकर्षक नारी कि०] । सुभूति --सज्ञा स्त्री० [स०] १ कुशल । क्षेम । मगल । २ उन्नति । तरक्की । ३ तित्तिर नाम का पक्षी (को०)। सुमगल'--वि० [सं० सुमदगल] १. अत्यत शुभ। कल्याणकारी। २ सदाचारी। ३ यज्ञो से पूर्ण (को०) । सुभूतिक--सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] बेल का पेड । विल्ववृक्ष । सुमगल'-सशा पुं० १ एक प्रकार का विप। २ शुभ या मगलप्रद सुभूम--सज्ञा पुं॰ [स०] कार्तवीर्य जो जैनियो के माठवे चक्रवर्ती थे। वस्तु (को०)। सुभूमि'--सज्ञा पुं० [स०] उग्रसेन के एक पुत्र का नाम । सुमगला--सरा स्त्री० [सं० सुमद्रगला] १ मकडा नामक घाम । सुभूमि'--वि० सु दर भूमि । अच्छी जगह [को॰] । २ स्कद को एक मातृका का नाम । ३ एक अप्सरा का नाम । सुभूमिक-सञ्ज्ञा पुं० [स०] एक प्राचीन जनपद का नाम जो महाभारत ४ एक नदी जो कालिकापुराण के अनुसार हिमालय मे निकल- के अनुसार सरस्वती नदी के किनारे था। कर मणिकूट (कामाक्षा) प्रदेश मे बहती है । सुभूमिका--सज्ञा स्त्री० [स०] दे० 'सुभूमिक' । सुमगली-सशा स्त्री० [सं० सुमङ्गल + ई (प्रत्य॰)] विवाह मे सप्तपदी सुभूमिय--मज्ञा पुं॰ [स०] उग्रसेन के एक पुत्र का नाम । पूजा के बाद पुरोहित को दी जानेवाली दक्षिणा । सुभूषण'-मज्ञा पुं॰ [स०] उग्रसेन के एक पुत्र का नाम । विशेष--सप्तपदी पूजा के बाद कन्या पक्ष का पुरोहित वर के हाथ सुभूषण-वि० सुदर भूपणो से अलकृत । जो अच्छे अलकार मे सिंदूर देता है और वर उसे वधू के मस्तक मे लगा देता है। पहने हो। इसके उपलक्ष मे पुरोहित को जो नेग दिया जाता है, उसे सुभूषित--वि० [स०] उत्तम रूप से भूषित । भली भांति अलकृत । सुमगली कहते है। सुभृत--वि० [स०] १ सम्यक्प्रदत्त। भली भांति प्रदत्त । २ सुर- सुमगा-सज्ञा स्त्री॰ [स० सुमडगा] पुराणानुसार एक नदी का नाम । क्षित । रक्षिन । ३ अच्छी तरह लदा हुआ। जिसपर खूब सुमत -सज्ञा पुं॰ [स० सुमन्त्र] राजा दशरथ का मनी और मारथि । वोझ लदा हो [को०] । विशेष-जब रामचद्र वन को जाने लगे थे, तब यही सुमत सुभृश, सुभृष--वि० [स०] अत्यत अधिक । बहुत अधिक । (सुमन) उन्हें रथ पर बैठाकर कुछ दूर छोड आया था। सुभैक्ष-सज्ञा पु० [सं०] उत्तम भिक्षा । श्रेष्ठ भिक्षा [को०] । सुमतु'--सशा ० [सं० सुमन्तु १ एक मुनि का नाम जो वेदव्यास के सुभोग्य-वि० [स०] सुख से भोगने योग्य । अच्छी तरह भोगने शिष्य, अथर्ववेद के शाखाप्रचारक तया एक स्मृति या धर्मशास्त्र के लायक। के प्रणेता थे। २ जह नु के एक पुत्र का नाम। ३ अच्छा सुभोज-सज्ञा पु० [सं०] १ सुदर भोजन । इच्छा भर भोजन करना। सलाहकार । उत्कृष्ट मनी (को०)। भोजन से तृप्त होना (को०] । सुमतु-वि० १ अच्छी मन्त्रणा या सलाह देनेवाला। २ जो अत्यत सुभौटी@+-सज्ञा स्त्री॰ [स० शोभा + वती या हिं० ओटी (प्रत्य॰)] निंद्य हो । दोषावह । सापराध (को०] । शोभा । उ०-मौन ते कौन सुभौटी रहे, विन बोले खुले घर को सुमत्र-सज्ञा पु० [सं० सुमन्त्र] १ राजा दशरथ का मन्त्री और सारथि । न किवारो।--हनुमान (शब्द०)। १ अतरिक्ष के एक पुत्र का नाम । ३ कल्कि का बडा भाई। सुभौम-सज्ञा पु० [सं०] जैनियो के एक चक्रवर्ती राजा का नाम जो ४ प्रायव्यय का प्रबंध करनेवाला मनी। अर्थसचिव । कार्तवीर्य का पुन था। विशेष-सुमन का कर्तव्य यह बतलाया गया है कि वह राजा को विशेष-जन हरिवश मे लिखा है कि जब परशुराम ने कार्तवी सूचित करे कि इस वर्ष इतना द्रव्य सचित हुआ है, इतना व्यय र्यार्जुन का वध किया, तव कार्तवीर्य की पत्नी अपने बच्चे हुअा, इतना शेष है, इतनी स्थावर सपत्ति है और इतनी सुभौम को लेकर कुशिकाश्रम मे चली गई और वही उसका जगम सपत्ति है। लालन पालन तथा शिक्षा दीक्षा हुई। बड़े होने पर सुभौम ५ अच्छी सलाह । उत्तम मनणा । अच्छा मन (को०)। ६ बाभ्रव ने अपने पिता के वध का बदला लेने के लिये २० वार पृथ्वी गौतम नाम के एक आचार्य (को०) । -
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३७८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।