६०१० सुपार्वक दक्षिण भारत के अन्य स्थानो मे होते हैं। सुपारी (फ्ल) टुकडे करके पान के माथ खाई जाती है । यो भी लोग खाते है । यह प्रोपध के काम में भी आती है । वैद्यक के अनुसार यह भारी, शीतल, म्बी, कमली, कफ-पित्त-नाराक, मोहकारक, रुचिकारक दुधि तथा मुंह की निरसता दूर करनेवाली है। पर्या०-घोटा । पूग । अमुक । गुवाक । खपुर। सुरजन । पूग वृक्ष। दीर्घपादप । वल्कतम् । दृढवल्क । चिक्वण । पुगी। गोपदल । राजताल । छटाफल । प्रमु । कुमुकी। अकोट । ततुमार। यो०-चिकनी सुपारी = एक प्रकार की बनाई हुई सुपारी । विशेष दे० 'चिकनी सुपारी' । महा०-सुपारी लगना = सुपारी का कलेजे मे अटकना । सुपारी खाते समय, कभी कभी पेट मे उतरते समय अटक जाती है। इसी को सुपारी लगना कहते हैं। उ०-राधिका झांकि झरो- खन ह कवि केशव रीझि गिरे सुबिहारी। सोर भयो सकुचे ममुझे हरवाहि कह्यो हरि लागि सुपारी।--केशव (शब्द०)। २ लिंग का अग्न भाग जो प्राय सुपारी (फल) के आकार का होता है। (बाजार)। पारी का फूल-मश पुं० [हिं० सुपारी + फूल] मोचरस या सेमर का गोद। पारी पाक-सज्ञा पुं० [हिं० सुपारी+ सं० पाक] एक पौष्टिक श्रीपध। विशेष-इसके बनाने की विधि इस प्रकार है-पहले पाठ टके भर चिकनी सुपारी का चूर्ण पाठ टके भर गौ के घी मे मिला- कर तीन बार गाय के दूध में डालकर धीमी आंच में पोवा बनाते हैं । फिर वग, नागकेसर नागरमोथा, चदन, सोठ, पीपल, काली मिर्च, आंवला, कोयल के बीज, जायफल, धनिया, चिरीजी, तज, पत्नज, इलायची, सिंघाडा, वशलोचन, दोनो जीरे (प्रत्येक पांच पांच टक) इन सब का महीन कपडछान चूर्ण उक्त खोवे मे मिनाकर ५० टक भर मिनी की चाशनी में डालकर एक टके भर की गोलियां बना ली जाती है । एक गोली सवेरे और एक गोली सध्या को साई जाती है। इसके सेवन मे शुगदोप, प्रमेह, प्रदर, जीग्ण ज्वर, अम्लपित्त, मदाग्नि और अशं का निवारण होकर शरीर पुष्ट होता है। पार्श्व-मसा पुं० [मं०] १ पगम पीपन । गजद । गदमाट। २ पापर । प्नक्ष वृक्ष । ३ रुक्मरथ का एक पुत्र । ४ श्रुतायु का पुन। " दृटनेमि वा पुत्र । ६ एक पर्वत का नाम । ७ एक गक्षम का नाम । ८ मपानि (गिद्ध) का बेटा । ६ देवी नागपत के अनुसार एक पीठस्थान । यहाँ की देवी का नाम नागरणी है। १८ जैनियो के २४ जिनो या तीर्थकरा मे से गातवें तीर्थकर । १५ दर पाच (को०) । पार'-पि० तु दर पाववाला। पाक-सभा पुं० [सं०] १ चिन्नर के एक पुत्र का नाम । २ भावी पिगी के तीमरे प्रहत का नाम । युतायुका एर पुत्र । ४ गर्दभाड वृक्ष । परास पीपल [को०) ।
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