पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३६२

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सुधराव ६०८२ सुधाधामा सुधराव -सशा पु० [हिं० सुधरना + आव (प्रत्य॰)] सुधराई । सुधाकार-सज्ञा पुं० [सं०] १ चूना पोतनेवाला । सफेदी करनेवाला । बनाव। सशोधन २ मिस्तरी । राज। मजूर । ३ सुधाकर । चन्द्रमा (को०) । सुधर्म'--सज्ञा पु० [स०] १ उत्तम धर्म । पुण्य कर्तव्य । २ जन सुधाक्षार-सञ्ज्ञा पुं० [स०] चूने का खार । तीर्थंकर महावीर के दस शिष्यो मे से एक। ३ किन्नरो के सुधाक्षालित-वि० सं०] सफेदी किया हुआ। जिसपर चूना पुता एक राजा का नाम । ४ देवताओ का एक वर्ग (को०)। हुना हो। सुधर्म-वि० धर्मपरायण । धर्मनिष्ठ । सुधागेह-सज्ञा पुं० [सं० सुधा + गेह (घर)] चद्रमा । उ०- सुधर्मनिष्ठ-वि० [सं०] अपने धर्म पर दृढ रहनेवाला । सुधर्मी । देह सुधागेह ताहि मृगहु मलीन वियो ताहु पर बाहु विनु राहु सुधर्मा'-वि० [सं० सुधमन्] अपने धर्म पर दृढ रहनेवाला। गहियतु है । -तुलसी (शब्द॰) । धर्मपरायण। सुघाघट- समा पु० [सं० सुधा + घट] चद्रमा । उ०- मुकता माल सुधर्मा'-मज्ञा पु० १ गृहस्थ । कुटुबपालक । कुटुवी। २ क्षत्रिय । नदनदन उर अर्ध सुधाघट काति । तनु श्रीकठ मेघ उज्वल ३ दशाओं का एक राजा । ४ दृढनेमि का पुन । ५ जनो के एक अति देखि महाबल भांति ।- सूर (शब्द०)। गणाधिप । ६ एक विश्वेदेव (को०) । सुधाजीवी-समा पुं० [• सुधाजीविन्] वह जो चूना पोतकर जीविका सुधर्मा -मज्ञा स्त्री० १ इद्र का सभाकक्ष । देवसभा । २ द्वारकापुरी का निर्वाह करता हो । सफेदी करनेवाला । मजदूर। एक नाम (को०)। सुधात-वि० [सं०] अत्यत स्वच्छ किो०] । सुधर्मी'-वि० [स० सुमिन्] धर्मपरायण । धर्मनिष्ठ । सुधाता--वि० [स० सुधातॄन्] सजानेवाला । सयोजित और सुव्यवस्थित सुधर्मी -सञ्ज्ञा स्त्री० १ देवसभा । २ द्वारकापुरी (को॰) । करनेवाला। सुघवाना-क्रि० स० [हिं० सुधरना या स० शोधन, हिं० सोधना का सुधातु' - संज्ञा पुं० [म०] सोना । स्वण । प्रेर० रूप] दोप या त्रुटि दूर कराना। शोधन कराना । ठीक सुधातु-वि० जिसके पास स्वर्ण हो । धनी। कराना । दुरुस्त कराना। सुधातुदक्षिण-सक्षा पुं० [सं०] १ वह जो यज्ञादि मे सुवर्ण दक्षिणा सुघाँ-प्रव्य० [० साध] दे॰ 'सुक्षौ' । उ०—हाथी सुधां सब्ब हाथी देता हो । २ वह जिसे यज्ञयागादि मे बहुत अधिक दक्षिणा परयो खेत । सग्राम मे स्वामि के काम के हेत। -सूदन मिली हो। (शब्द०)। सुधादीधिति-सचा पुं० [सं०] सुधाशु । चद्रमा । सुधाग--संज्ञा पुं० [सं० सुधाडग] चद्रमा। सुधाद्रव-संज्ञा पुं० [सं०] १ अमृत तुल्य एक प्रकार का द्रव पदार्थ । सुधाशु-सचा पु० [स०] १ चद्रमा । २ कपूर । २ एक प्रकार की चटनी । ३ सफेदी (को०)। सुधाशुतैल -सज्ञा पुं० [स०] कपूर का तेल । सुघाघर'--सज्ञा पुं० [सं० सुधा+घर (धारण करनेवाला)] सुध शुरत्न-सज्ञा पुं० [सं०] मोती । मुक्ता। चद्रमा । उ०-(क) श्री रघुवीर कह्यो सुन वीर झ शशी सुघा-मशा सी० [स०] १ अमृत । पीयूप । अमी। २ मकरद । ३ किधो राहु डरायो । नाउ सुधाघर है विप को घर गगा। ४ जल । ५ दूध । ६ रस । अकं । ७ मूर्विका । ल्याई विरचि कलक लगायो।-हनुमन्नाटक (शब्द॰) । (ख) मरोडफली। ८ आंवला। आमलकी। । हरे। हरीतकी। धार सुधार सुधाधर तें सुमनो वसुधा मे सुधा ढरको पर।-- १. सेहुँड । थूहर । ११ सरिवन । शालपर्णी । १२ विजली। सु दरीसर्वस्व (शब्द०)। विद्युत् । १३ पृथ्वी । धरती। जमीन । १४ विप। जहर । हला- सुधाघर'--वि० [सं० सुधा + अधर] जिसके अधरो में अमृत हो। हल । १५ चूना । १६. ईट । इष्टका । १७ गिलोय । गुड ची उ०--वासो मृग अक कहै तोसो मृगनंनी सर्व वासो सुधाधर १८ रुद्र की स्त्री। १६ एक प्रकार का वृत्त । २० पुनी। तोहूँ सुधाधर मानिए।--केशव (शब्द॰) । २१ वधू । २२ धाम । घर । २३ मधु । शहद । २४ श्वेतता। सफेदी (को०)। सुधाधरए-सशा पुं० [सं० सुधा+धरण (= धारणकर्ता)] चद्रमा। सुधाईg-तज्ञा स्त्री० [हिं० सूधा ( = सीधा)] सीधापन । मिधाई । (डि०)। सरलता। उ०--(क) सूधी सुहाँसी सुधाकर सो मुख शोध सुधाधवल--वि० [सं०] १ सुधा या चूने के समान सफेद । २ चूना लई वसुधा की सुधाई । सूधे स्वभाव वस सजनी वश कैसे किए पुता हुआ । सफेदी किया हुआ । अति टेढे कन्हाई । -केशव (शब्द॰) । (ख) सीख सुधाई सुधाधवलित-वि० [सं०] दे० 'सुधाधवल'। तीर तै तन गति कुटिल कमान। भावे छिल्ला वैठा भाव विच सुधाधाम-सज्ञा ० [सं० सुधा+ धाम] चद्रमा । उ०-धूमपुर मैदान । -रतनहजारा (शन्द॰) । के निकेत मानो धूमकेतु की शिखा की धूमयोनि मध्य रेखा सुधाकठ-सज्ञा पु० [स० सुधाकण्ठ] कोकिल । कोयल । सुधाधाम की।--केशव (शब्द॰) । सुधाकर-सज्ञा पुं० [स०] चद्रमा। सुघाधामा-सबा पुं० [सं० सुधाधामन्] चद्रमा। चांद।