उ०- 1 वन- 1 सुकाशन ६०५५ सुकुकुर • भूमि भार दीवे को कि सुर ढाँप लीवे को, समुद्र कीच परमानद वही अहिवदन हलाहल । कदलीगत घनमार मुकुति मह कोवे को कि पान के सुकावनो ।- हनुमन्नाटक (शब्द॰) । मुक्ता कोलाहल ।-सुधाकर (शब्द॰) । सुकाशन-वि० [सं०] अत्यत दीप्तिमान् । बहुत प्रकाशमान । बहुत सुकुमार'--वि० [स०] [वि० सी० मुकुमारी] १ जिसके अग बहुत चमकीला। कोमल हो । अति कामल । नाजुक । २ सौदर्ययुक्त । सुकाष्ठ--सज्ञा पु० [सं०] १ जलावन की लकडी । २ अच्छी लकडी। तरुण (को०)। सुकाष्ठक--संज्ञा पु० [स०] १ देवदारु । २ वृक्ष प्रादि जिसमे सुकुमार'-मज्ञा पु० १ कोमलाग बालक । नाजुक लडका । २ ऊख । काष्ठ अच्छा हो। ईख । ३ वनचपा। ४ अपामार्ग । लटजीरा।" साँवा धान । सुकाष्ठा- सज्ञा स्त्री० [स०] १ कुटकी। २ काष्ठ कदली। ६ कॅगनी। ७ एक दैत्य का नाम । ८ एक नाग का नाम । कदली। कठकेला। ६ काव्य का एक गुण । सुकिज-सज्ञा पु० [स०] शुभ कर्म । उत्तम कार्य । उ०-सोचत विणेष-जो काव्य कोमल अक्षरो या शब्दो से युक्त होता है, वह हानि मानि मन गुनि गुनि गए निघटि फल सकल सुकिज को। सुकुमार-गुण-विशिष्ट कहलाता है। —तुलसी (शब्द०)। १० तवाकू का पत्ता । ११ वैद्यक मे एक प्रकार का मोदक । सुकिया-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० स्वकीया] वह स्त्री जो अपने ही पति विशेष -यह मोदक निसोथ, चीनी, शहद, इलायची और काली मिर्च मे अनुराग रखती हो । स्वकीया नायिका । उ०—ता नायक की के योग से बनता हे और विरेचक तथा रक्तपित्त और वायु नायिका प्रथनि तीनि वखान । सुकिया परकीया अवर सामान्या रोगो का नाशक माना जाता है। सुप्रमान । -केशव (शब्द०)। सुकुमारक-सञ्ज्ञा पु० [म०] १ तवाकू का पत्ता। २ तेजपत्र । सुकी-सज्ञा स्त्री० [स० शुक] तोते की मादा। सुग्गी। सारिका। तेजपत्ता। ३ साँवा धान । ४ सदर वालक । ५ कान का एक तोती। उ०-कूजत हैं कलहस कपोत सुकी सुक सोर करै सुनि विशेप अश (को०)। ६ दे० 'सुकुवार'-२ । ७ जाववान् के ताहू । नेकहू वयो न लला सकुचौ जिय जागत हे गुर लोग एक पुत्र का नाम । लजाहू। देव (शब्द०)। सुकुमारता--सज्ञा स्त्री॰ [स०] सुकुमारहोने का भाव या धर्म । कोमलता। सुकीउ-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० स्वकीया] अपने ही पति मे अनुराग सौकुमार्य । नजाकत । रखनेवाली स्त्री। स्वकीया नायिका। उ०-याही के निहोरे झूठे सांचे राम मारे बाली लोग कहत तीय लै दई सुकीउ है। सुकुमारत्व-संज्ञा पु० [स०] दे० 'सुकुमारता'। सुन्यो जाको नाँव मेरो देश देश गाँव सब शाखामृग राउर विमू- सुकुमारवन--मज्ञा पु० [म०] एक कल्पित वन जो भागवत के अनुसार रति सुग्रीउ है। हनुमन्नाटक (शब्द॰) । मेरु के नीचे है। कहते है इसमे भगवान् शकर भगवती पार्वती के साथ क्रीडा किया करते है। सुकीरति-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० सुकीति] सुकीर्ति । सुयश । उ०-राम सुकीरति भनिति भदेसा। असमजस अस मोहि अंदेसा । मुकुमारा-मज्ञा स्त्री॰ [स०] १ जूही । २ नवगल्लिका । ३ कदली। मानस, १।१४। ४ स्पृक्का। ५ एक नदी का नाम (को०)। ६ सुकीति-सज्ञा स्त्री० [सं०] उत्तम कीर्ति । सुयश । मालती। सुकीति'- वि० उत्तम कीर्तियुक्त । यशस्वी । सुकुमारिक-वि० [स०] जिसकी कन्या सुदर हो [को॰] । सकुडल, सृकुतल--सञ्ज्ञा पुं॰ [स० सुकुण्डल सुकुन्तल] धृतराष्ट्र के सुकुमारिका सज्ञा स्त्री० [०] केले का पेड । एक पुत्र का नाम। सुकुमारी--सरा सी० [स०] १ नवमल्लिका। चमेली। २ शखिनी सुकुद--सज्ञा पु० [स० सुकुन्द] राल । धूना। नाम की प्रोपधि । ३ वनमल्लिका । ४ एक प्रकार की फली। सुकुदक- सज्ञा पुं० [सं० सुकुन्दक] प्याज । जैसे-- मूंग आदि की। ५ बडा करेला। ६ ऊख । ७ कदली वृक्ष । केले का पेड। ८ निसधि नामक फूलदार पेड । ६ मुकुदन-सज्ञा पुं० [सं० सुकुन्दन] बर्बरी । ववई तुलसी। स्पृक्का १० सुकुमार कन्या। ११ सुकुवार-वि० [सं० सुकुमार, वि० सुकुमारी] सुकुमार । उ०- लडकी। बेटी। इह न होइ जैसे माखन चोरी। तब वह मुख पहचानि मानि सुख देती जान हानि हुति छोरी। उन दिननि मुकुग्रार हते सुकुमारो'--वि० कोमल अगोवाली । कोमलागी। हरि ही जानत अपनो मन मोरी ।-सूर (शब्द०)। सुकुरनाg+--कि० अ० [स० मइ बन] दे० 'सिकुडना'। उ०- सुकुट्ट , सुकुट्य-मज्ञा पु० [स०] महाभारत के अनुसार एक प्राचीन मुकुर बिलोसो लाल रहे क्यो धुकुरपुर है। मरमाने हो कहा जनपद का नाम। रहे क्यो अग मुकुर के।-अविकादत्त व्यान (शब्द०)। सुकुडना-क्रि० अ० [सं० सडकुचन] दे० 'सिकुडना' । सुकुकुर-सज्ञा पु० [सं०] वालको का एक प्रकार का रोग जिसको सुकुति --सञ्ज्ञा स्त्री० [स० शुक्ति] सीप । शुक्ति । उ०-पूरन गणना वालग्रहो मे होती है। - केला। नामक गधद्रव्य ।
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