सीपज ६०४६ सीमा 1 पाया जाता है। शुक्ति । मुक्तामाता। मुक्तागृह । सीपी । सीपी-सज्ञा स्त्री॰ [म० शुक्ति', दि० सीप] दे० 'मीप'। सितुही। सीवी-सज्ञा स्त्री॰ [अनु० सी सी] वह शन्द जो पीटा या अन्यन प्रानद के विशेष-तालो के सीप लवोतरे होते है और समुद्र के चौगुंटे विपम समय मुंह स साँस खोचने से उत्पन्न होता है। मी नी शद । आकार के और बड़े बड़े होते है। इनके ऊपर दोहरे सपुट के सिसकारी। शीत्कार उ०-नाक चढ मीवी कर जित च्चीली प्रकार का बहुत बडा प्रावरण होता है जो खुलता पार बद छल । फिरि फिरि भूलि वहै गहें पिय करीली गन।- होता है । इसो सपुट के मोतर सोप का कोडा, जो विना अस्थि विहारी (शब्द०)। और रीढ का होता है, जमा रहता है। ताल के मीपा का सीभा--सज्ञा पुं० [देश॰] दहेज । आवरण ऊपर से कुछ काला या मला तथा समतल हाता है, यद्यपि ध्यान से देखने से उसपर महोन महीन धारिया दिखाई सीमत-पग पुं० [सं० सोमन] १ स्त्रिया की माग । २ अम्थि- पडती है । इस प्रावरण का भौतर को पार रहनेवाला पार्श्व सघात । हडियो का सविस्थान । हदिया का जोट । बहुत ही उज्ज्वल और चमकीला होता है, जिसपर प्रकाश विशेष--सुश्रुत के अनुमार इनकी सख्या १८ है। यथा-जांघ पडने से कई रगो की आभा भी दिखाई पडतो ह । समुद्र के मे १, वक्षण अर्थात् मूत्राशय तथा जघा के मधिम्यान में १, सीपो के आवरण के ऊपर पानी की लहरो के समान टेढो पैर मे ३, दोनो वाहा मे ३-३, निक या गढ के नीचे के भाग धारियाँ या लहरियाँ होती है। समुद्र के सोपो मे हो मोती में १ और मरतक में १। भावप्रकाश के अनुसार हटियो का उत्पन्न होते है । जव इन सोपो की भीतरी खोली और कडे सधिस्थान सीया रहता है, इसलिये हमें 'गीमत' कहत है। आवरण के बीच कोई रोगोत्पादक बाहरी पदाय का कण ३ हिंदुनो मे एक सस्कार जो प्रथम गमस्थिति के चाये, छठे या पहुँच जाता है, तब जतु रक्षा के लिये उस करण के चारो और पाठवें महीने में किया जाता है । दे० 'सीमतोन्नयन' । आवरण ही की शख धातु का एक चमकोला उज्वल पदाय सीमतक--सग पुं० [सं० सीमन्तक] मांग निकालने की किया। २ जमने लगता हे जो धीर धीरे कडा पड जाता है। यही मोती ईगुर। सिंदूर जिसे स्त्रिया मांग के बीच में लगाती है। होता है। समुद्रो सोप प्राय छिछले पानी मे चट्टानो मे चिपके ३ जनो के सात नरका म से एक नरक का अधिपनि । ४ हुए पाए जाते है । ताल के सोपा के सपुट भी कोडो को साफ नरकावास । ५ एक प्रकार का मानिक या स्न। करके काम मे लाए जाते ह । बहुत से स्थानो मे लाग छोटे सोमतकरण-शा पुं० [० सीमन्तकरण] माग निकालना या काटना बच्चो को इसी से दूध पिलाते है। (फो०] 1 २ सोप नामक समुद्री जलजतु का सफेद कडा, चमकीला आवरण सोमतमरिण--सशा पु० [सं० सोमन्तमरिण चूडामणि (फो०) । या सपुट जो वटन, चाकू के बेट आदि बनाने के काम मे आता सोमतनी-सरा सी० [स० मोमन्तिनौ] स्ना। नारी। सोमतिनी । है। ३ ताल के सोप का सपुट जो चभ्गच आदि के समान सोमतवानु-वि० [सं० सीमन्तवत्] [सी० सीमतवती] जिसे माग हो । काम मे लाया जाता है । ४ वह लवातरा पान जिसमे देवपूजा जिसकी मांग निकलौ हो। या तर्पण आदि के लिये जल रखा जाता है। अरघा । सीपज-सज्ञा पुं० [हिं० सीप+ स० ज] सोप से उत्पन्न, मोती। सीमतित-वि० [सं० सौमन्तित] मांग निकाला हुआ । जैसे--साम- तित केश। सोपिज । उ०-सोपज माल स्याम उर सोह विच वधनह छवि पावै री।-सूर०,१०११३६ । सीमतिनी- सी. [स० सीमन्तिनी] स्त्री । नारी। सीपति-सज्ञा पुं० [स० श्रीपति] विष्णु । विशेप--स्त्रियां मांग निकालती है, इससे उन्हें सीमतिनी सीपर:-सज्ञा पुं० [फा० सिपर] ढाल । उ०-मेरे मन की लाज इहाँ कहते है। लौ हठि प्रिय पान दए है। लागत सॉगि विभीपण हो पर, सीमतोन्नयन-सचा पुं० [स० सोमन्तोनयन] द्विजो के दस सस्कारो म सीपर पापु भए है।--तुलसी (शब्द०)। से तोसरा सस्कार। सीपसुत-सञ्ज्ञा पु० [हिं० सीप + सुत] मोती। उ०-देखि माई विशेप-गर्भस्थिति के तीसरे महीने मे पुमवन सस्कार करने के हरि जू की लोटनि ।. परसत आनन मनु रवि कुडल अवज पश्चात् चौये, छटे या प्राट्वें महीने में यह सस्कार करने का स्रवत सीपसुत जोटनि।-सूर०, १०११८७ । विधान है। इसमे वधू की मांग निकाली जाती है। कहते हैं, सीपारा-सशा पुं० [फा० सीपारड्] कुरान का एक भाग । इस सस्कार के द्वारा गर्भस्थ सतान के गभ में रहने के दोपा विशेप--कुरान मे कुल तीस भाग है जिनमे प्रत्येक को सीपारा का निवारण होता है। (सिपारह भी) कहते है [को०] । सीम-सज्ञा पुं० [सं० सोमा] सीमा। हद । पराकाष्ठा । सर- सीपिज-सज्ञा पुं० [हिं० सीपी+ स० ज] मोती। उ०-लाला हौं हद । मर्यादा। वारी तेरे मुख पर। कुटिल अलक मोहन मन विहँसत भुकुटि मुहा०--सीम चरना या काँडना अधिकार दवाना। विकट नैननि पर। दमकति द्वै द्वै दंतुलिया विहँसति मनौ जबरदस्ती करना। उ० है काके ( सीस ईस के जो हठि सीपिज घर कियो वारिज पर।-सूर (शब्द०)। बन की सीम चर।-तुलसी (शब्द०)। सोम चॉपना-हृद दवाना।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३२६
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