पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३१७

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सिविल वार ६०३७ सिसुता सिविल वार-मशा पु० [१०] दे० 'गृहयुद्ध' । सिसकारना' कि० अ० [अनु० सी मी + करना] १ जीभ दबाते हुए सिविल सर्जन--मज्ञा पु० [अ०) सरकारी बडा डाक्टर जिसे जिले भर वायु मुह से छोडना। सीटी का सा शब्द मुंह से निकालना । के अस्पतालो, जेलखानो तथा पागलखानो को देखने का सुसकारना। अधिकार होता हे। सयो० क्रि०-देना। सिविल सर्विग-सञ्ज्ञा सी० [मुं०] ब्रिटिश शासनकाल मे अंगरेजी २ जीभ दवाते हुए मुंह से साँस खीचकर 'सी सी' शब्द निकालना। सरकार की एक विशेष परीक्षा जिसमे उत्तीर्ण व्यक्ति देश के अत्यत पीडा या आनद के कारण मुंह से साँम खीचना । प्रवध और शासन मे ऊँचे पद पर नियुक्त होते थे । शीत्कार करना। सिवीलियन-सज्ञा पु० [अ०] १ सिविल सर्विस परीक्षा पास किया सिसकारना-त्रि० स० सुसकार कर या सीटी के शब्द से कुत्ते को हुआ मनुष्य। २ मुल्की अफसर। देश के शासन और प्रवध किसी योर लपकाना । लहकारना । विभाग का कर्मचारी। मयो० क्रि०-देना। सिवैयाँ-श स्त्री० [हिं०] दे० 'मिवई' । सिसकारी-तज्ञा क्षी[हिं० सिसकारना] १ सिसकारने का शब्द मुहा०--सिवैयाँ तोडना, सिवैयाँ पूरना या बटना = दे० 'सिवई जीभ दवाते हुए मुह से वायु छोडने का शब्द । सीटी का सा वटना'। शब्द । २ कुत्ते का किसो पार लपकाने के लिय सोटी का शब्द । सिष-सशा पु० [स० शिष्य, शिष्य । चेला। उ०-ना गुर मिला ३ जीभ दवाते हुए मुंह से साँस खीचने का शब्द । अत्यत न सिप भया लालच खेल्या डाव ।-कबीर ग्र०, पृ० २। पाडा या आनद के कारण मुंह से निकला हुया 'सो सी' शब्द । शीत्कार। सिष्टर सज्ञा स्त्री॰ [फा० शिस्त] बसी की डोरी। उ०- हस्ती लाय सिण्ट सब ढोला। दौड पाय इक चाल्हहिं लीला । --जायसी क्रि० प्र०-देना। - भरना। (शब्द०)। सिसकी - सज्ञा स्त्री० [अनु० सी सी या स० शीत्। १ भीतर ही भीतर सिप्टन-वि० [स० सृष्ट ] रचित । उ०- सिष्ट धारण धारय रोने मे रुक रुककर निकलती हुई सॉस का शब्द । खुलकर न वसुमती।-पृ० रा०, १।१ । रोने का शब्द । रुकती हुई लवी साँस भरने का शब्द । सिप्ट-वि० [स० शिष्ट] दे॰ 'शिष्ट'। उ.-बर्नाश्रम मे निष्ट क्र० प्र०-भरना ।--लेना । इष्ट रत सिष्ट अदूपित । -श्यामा० (भू०), पृ० ४ । २ सिसकारी। शीत्कार । उ०-ध्रुव मटकावति नैन नचावति । सिप्पासु - वि० [स०] स्नान का इच्छुक [को०] । सिंजित सिसकिन सोर मचावति। -पद्माकर ग्र०, पृ० २२७ । सिष्य-मशा पु० [स० शिष्य) दे० 'शिष्य'। उ०-पाय रजायसु सिसिक्षा-सशा स्त्री॰ [स० सोचने की इच्छा । छिडकने या तर करने राय को ऋपिराज बोलाए। सिष्य सचिव सेवक सखा सादर की इच्छा (को०] । सिर नाए।-तुलसी (शब्द॰) । मिसिक्षु-वि० [२०] तर करने, सोचने का इच्छुक (को०] । सिस -सञ्ज्ञा पु० [स० शिशु] दे'सिसु' । सिसियाद--सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] मछली की सी गध । विसायेंध । सिसकना-क्रि० अ० [अनु॰ या स० सोत् + करण] १ भीतर ही सिसिर-सशा पु० [म० शिशिर] एक ऋतु । दे० 'शिशिर' । उ०- भीतर रोने मे रुक रुककर निकलता हुई सास छोडना । जैसे, (क) चलत चलत लौ ले चले, सब सुख सग लगाय। ग्रीसम लडका सिसक मिसककर राता है। २ रोक राककर लबी वासर सिसिर निसि, पिय मो पास बसाय ।-विहारी (शब्द०)। सांस छोडते हुए मोतर हो मोतर रोना। शब्द निकालकर (ख) पावस परपि रहे उधरार। सिसिर सम बसि नीर न राना । खुलकर न राना। उ.-पिय विन जिय तरसत रहे, मझार।-पद्माकर (शब्द०)। पल भर बिरह सताय । रैन दिवस माहि कल नही, सिसक सिमुख-सशा पु० [स० शिशु] दे० 'शिशु'। उ०—(क) लोचना- सिसक जिय जाय।-कबीर सा० स०, पृ० ४४ । भिराम धनस्याम राम रूप सिमु, सखो कहे सखी सो तू प्रेम पय मुहा०-सिसकता भिनकतो = मलो कुचैला ओर रोनी सूरत को पालि री।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) दवर फूल हन जु सिसु (स्त्रो)। उठी हरखि अंग फूल। हँसी करत पोखध सखिनि देह ददारनि ३ जी धडकना। धकधको होना । बहुत भय लगना। जैसे,-वहाँ भूल।-बिहारी (शब्द०)। जाते हुए जो सिसकता ह । ४ उलटो सांस लना । हिचाकया सिसुघातिनी-वि० [३० शिशुधातिनी] शिशु को हत्या करनेवाली भरना। मरने के निकट हाना। ५ (प्राप्ति के लिये) तरसना, (पूतना) । उ०-ससुधातिनो परम पापिना । सतान को रोना । (पान के लिय) व्याकुल होना । उ०-प्रभुहि विलोकि डसनो जु सांपिनो।-नद० ग्र., पृ० २३६ । मुनिगन पुलक कहत भार माग भए सब नोच नारि नर हे। सिसुता-सशा मा० [स० शिशुता] ६० शिशुता'। उ० - (क) तुलसो सो सुख लाहु लूटत किरात कोल जाका सिसकत सुर श्याम के सग सदा विलसा ससुता म सुता म कछू नहीं जान्या । विधि हरि हर ह ।-तुलसी (शब्द०)। -देवी (शब्द॰) । (ख) छुटा न सिसुता की झलक, झलक्यो