सार्वभौमिकता नार्वज्ञ, सार्वझ्य-सरा पुं० [सं०] होने का भाव । सर्वज्ञता। मार्वत्रिक- [.] नर स्यानो से सबद। सब स्थानो मे होने- वाता। प्रत्येक विनियो, स्थानो एव अवन्यानो मे होनेवाला। गवनचापी। जैन, नार्वत्रिक नियम । मा देगिक-वि. [१०] सपूण देशो का । सर्वदेश या राष्ट्र सबधी । नाबंधातुक'-वि. [२०] [सौ० सार्वधातुको] संस्कृत व्याकरण के अनुमार नमी धातुओं मे व्यवहुत होनेवाला । गण विकरण लगाने के पश्चात् धातु के समग्र रूपो मे व्यवहृत होनेवाला। मार्वधातुक'- महा पुं० सस्कृत व्याकरण मे चार लकारो (लट्, लोट, लड और निड) के तिडादि प्रत्यय या लिट् तथा प्राशीलिंड को छोडकर और मभी लकारी के विभक्तिचिह और ध्वनि से प्रकट होनेवाले विकरण । मायनामिक-वि० [सं०] नवनाम से सबंधित । सार्वभौतिक-वि० [40] [जी सावभौतिकी] सवभूत सवधी। सब प्राणियो या भूतो मे सबध रपनेवाला। सार्वभौम'- पुं० [सं०] १ सप्तद्वीपा वसुधग का नरेश । समस्त भूमि का राजा । चक्रवर्ती राजा । २ पुरुवशी अयाति का पुत्र । ३. मागवत के अनुसार विदृरय के पुत्र का नाम । ४ कुवेर को दिशा अर्यात उत्तर दिशा का दिग्गज। हाथी। ५ शुभ नीति के अनुसार वह राज्य जिमया पर या राजस्व प्रतिवप ५० करोड कर्ष हो (को०)। ६ समग्र विश्व की भूमि । दुनिया का राज्य (को॰) । मा नौम'-० १ समन्त भूमि सबधी । सपूण भूमि का। जैसे,-- सार्वभौम राजा। २ नमग्र पृथ्वी का शासन करनेवाला (को०)। ३ जो सपूण विश्व मे विख्यात हो (को०)। ४ योग के अनुसार मन की सभी स्थितियो, अवस्थामो से सवध रयने- थाना (को॰) । यो०-पार्वभोमगृह, मान भीमभवन = चक्रवर्ती नरेश का प्रामाद । मार्वभौमवाद--गरा पुं० [सं० मार्वभौम + वाद] यह सिद्धात जिसमे यी के समस्त प्रारिण्या के प्रति ममता का भाव या जाता है । गभी के साथ ममान भाववाना मिदात । उ०-उपनिषदीय गावभीमयाद और उस काल का प्रचलित वधम निका वैमेन गहवाम ग्योर निम मरना था।--सत. दरिया (म०), पृ०६२। मार्वभौमसत्ता-Tी० [०] समग्न भूमि पर शासन करने की नान्न नपिन । व्यापक शक्ति या प्रयाध अधिकार (प्र० पैगमाउट पार)। उ०-निम्मदेह उन्हें महमूस पन्ना चारिणति मायभीम ना न शिमला में है न हाइट हान (टन) में।-प्राज, १९५४ । सार्वभौमिक-4- [०] मपूर्ण धरती मवयी। विश्व में व्याप्न या फैला हुमा [401 मारंभौमिकता- पुं० [8] मार्वभौमिक होने का भाव । सर्व- व्यापता।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२६८
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