पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२५८

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साम्यवादी ५०७८ सायक वैषम्य दूर करना चाहते है। वे लाग चाहते हैं कि समाज मे साय-सज्ञा पुं० १ दिन का अतिम भाग। सध्या। शाम । २ वक्तिगत प्रतियोगिता उठ जाय और भूमि तथा उत्पादन के वाण । तीर। ममम्न माधनो पर किसी एक व्यक्ति का अधिकार न रह सायंकाल-मज्ञा पु० [म० सायडकाल] [वि. सायकालीन] दिन का जाय, बल्कि मारे ममाज का अधिकार हो जाय । इस प्रकार अतिम भाग दिन और रात की सधि । सध्याकाल । सध्या । सब लोगो मे धन प्रादि का वरावर बराबर वितरण हो, न शाम । तो कोई बहुत गरीब रह जाय और न कोई बहुत अमीर सायकालिक-वि० [स० सायडकालिक] सध्या के समय का। रह जाय । शाम का। साम्यवादी--वि० [स० साम्य + वादिन] १ साम्यवाद से सवधित । सायकालीन - वि० [म० सायड्कालीन] सध्या के समय का । शाम का। साम्यवाद का। २ जो साम्पवाद को मानता । साम्यवाद सायगृह--सना पु० [स० सायडगृह] वह जो सध्यासमय जहाँ पहुँचता का अनुयायी। हो, वही अपना घर बना लेता हो। साम्यावस्था-संज्ञा स्त्री॰ [स०] वह अवस्था जिसमे सत्व, रज और सायतन-वि० [स० सायन्तन] सायकालीन । सध्या सवधी। तम तीनो गुण बराबर हो, उनमे किसी प्रकार का विकार, सध्या का। या वैपम्य न हो । प्रकृति । यौ--सायतनमल्लिका शाम को खिलनेवाली चमेली। सायतन- साम्यावस्थान-सज्ञा पु० [स०] प्रकृति । दे० 'साम्यावस्था' (को०] । समय = शाम । सायकाल [को०) । साम्राज्य-मज्ञा पु० [सं०] १ वह गज्य जिमके अधीन बहुत से देश सायतनी-वि० [स० सायन्तनी] दे० 'सायतन' । हो और जिसमे किसी एक सम्राट् का शासन हो । सार्वभौम सायधृति-सज्ञा स्त्री० [स० सायन्धृति] सायकालीन हवन [को०) । राज्य । सलतनत । २ आधिपत्य । पूर्ण अधिकार । ३ प्राधिक्य । बाहुल्य (को०) । ४ प्रधानता (को॰) । सायनिवास-सज्ञा पु० [स० सायन्निवास] वह स्थान जहाँ शाम को रहा जाय [को०) । साम्राज्यकृत्-वि० [स०] साम्राज्य करनेवाला। साम्राज्य का सायपोष--सज्ञा पु० [स० सायम्मोष] सायकाल किया जानेवाला शासक किो०)। भोजन । व्यालू [को॰] । साम्राज्यलक्ष्मी-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] तन्त्र के अनुसार एक देवी जो सायप्रात-अव्य० [स० सायम्प्रातर्] सुवह शाम । साम्राज्य की अधिष्ठात्री मानी जाती है। सायभव-वि० [स० सायम्भव] सध्या का। शाम का । साम्राज्यवाद-सज्ञा पु० [९० साम्राज्य+वाद] साम्राज्य के देशो की रक्षा और वृद्धि या विस्तार का सिद्धात । उ०-साम्राज्य- सायभोजन-सज्ञा पु० [सं०] शाम का भोजन । व्यालू (को०] । वाद था कस, बदिनी मानवता पशु बलाकात ।-युगात, सायमडन--सज्ञा पु० [स० सायम्मण्डन] १ सूर्यास्त । २ सूर्य किो०] । पृ०६०। सायमध्या-सज्ञा स्त्री० [स० सायम्सन्ध्या] १ वह सध्या (उपासना) साम्राज्यवादी--सरा पुं० [स० साम्राज्यवादिन् अथवा हिं० साम्राज्य जो सायकाल में की जाती है। २ सरस्वती देवी जिसकी वाद+ई (प्रत्य॰)] वह जो साम्राज्यशासन प्रणाली का उपामना सध्या के समय की जाती है। ३ सूर्यास्त का काल । पक्षपाती और अनुरागी हो। वह जो साम्राज्य की स्थापना गोधूलि वेला (को०)। और उसकी विस्तारवृद्धि का पक्षपाती हो । सायसध्यादेवता-सज्ञा स्त्री० [स० सायम्सन्ध्या देवता] देवी सरस्वती साम्रारिणकई म-सज्ञा पु० [स०] गधमार्जार या गधविलाव का का एक नाम। वीर्य जो गधद्रव्यो मे माना जाता है । जवादि नामक कस्तूरी। सायस-सज्ञा स्त्री० [अ० साइस] १ विज्ञान । शास्त्र । २ वह शास्त्र साम्रारिणज-मज्ञा पुं० [स०] बडा पारेवत । जिसमे भौतिक तथा रामायनिक पदार्थों के विषय मे विवेचन साम्हना -यज्ञा पुं० [हिं० सामना] दे० 'सामना'। हो । विशेप दे० 'विज्ञान'। साम्हने -अव्य० [हिं० सामने ] दे० 'सामने' । साय--मज्ञा पु० [स०] १ सध्या का समय । शाम । २ वाण । तीर । ३ समाप्ति । अत (को०)। साम्हर-मज्ञा पु० [सं० शाकम्भर या मम्भल, साम्भल] १ ३० 'शाकवर'। २ दे० 'सांभर'। ३ सांभर झील का सायक--सशा पुं० [स०] १ बाण। तीर। शर। उ०--लखि कर सायर अरु तुम्हे कर सायक सर चाप।-शकुतला, पृ०७ । नमक । उ०-कोट यतन सो विजन करई । साम्हर विन फीका सब रहई।--कवीर सा०, पृ० २०६। २ खड्ग। उ०-धीर सिरोमनि वीर वडे विजई विनई रघुनाथ सोहाए। लायकही भृगुनायक से धनु सायक सौपि साम्हे--अव्य० [स० सम्मुख] दे० 'सामुहें । उ०—कहिए अव लो सुभाय मिधाए।-तुलसी (शब्द०)। ३ एक प्रकार का वृत्त ठहरची कौन । सोई माग्यो तुव साम्हें सो गयो परिछ्यो जोन । जिसके प्रत्येक पाद मे सगण, भगण, तगण, एक लघु और एक गुरु भारतेदु ग्र०, भा० २, पृ० २६८ । होता है (IIS, II, Ish, 1,5) | ४ भद्र मुज । राम सर । ५ पाच साय-वि० [स०] सध्या मवधी । सायकालीन । सध्याकालीन । की सस्या। (कामदेव के पांच वाणो के कारण। ६ आकाश साय-अव्य० शाम के समय । का विस्तार । अक्षाश (को०)। वना