सामुद्रवंधु ५०७७ साम्यवाद सामुद्रबधु-संज्ञा पुं॰ [स० सामुद्र वन्धु] चद्रमा [को०] । सामोद्भव-सज्ञा पुं० [स०] हाथी । सामुद्रमत्स्य-मग पु० [स०] ममुद्र मे होनेवाली वडी बडी मछलियाँ सामोपनिषद्---सज्ञा स्त्री० [स०] एक उपनिषद् का नाम । जिनका माम सुश्रुत के अनुसार भारी, चिकना, मधुर, वातनाशक, साम्न-वि० [म.] सामवेद के मनो से सबधित किो०] । कफवर्धक, उप्ण और वृष्य होता है । साम्नो-सा स्त्री० [म०] १ एक प्रकार का छद । २ जानवरो को वाँधने की रस्सी [को०] । गामुद्रविद् -सज्ञा पु० [स०] सामुद्रिक शास्त्र का ज्ञाता [को॰] । सामुद्रस्थलक-संशा पु० [२०] समुद्र तट का प्रदेश । समुद्र के ग्रास- साम्नो अनुष्टुप्-सज्ञा पु० [स०] एक प्रकार का वैदिक छद जिसमे १४ वर्ण होते है। पाम का देश । सामुद्राद्य चूर्ण- -सज्ञा पु० [स०] वैद्यक मे एक प्रकार का चूर्ण जो, साम्नी उष्णिक-सज्ञा पु० [स०] एक प्रकार का वैदिक छद जिसमे १४ वर्ण होते है। मांभर, मॉचर और सेंधा नमक, अजवायन, जवाखार, बाय- विडग, होग, पीपल, चीतामूल और सोठ को बरावर मिलाने से साम्नी गायत्री-एक प्रकार का वैदिक छद जिसमे १२ वर्ण होते है। बनता है। साम्नो जगती-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] एक प्रकार का वैदिक छद जिसमे विशेष-कहते हैं कि इस चूर्ण का घी के साथ सेवन करने से २२ सपूर्ण वर्ण होते है। उदर के सब प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं। यदि भोजन के साम्नी त्रिष्टुप्-सज्ञा पुं० [स०] एक प्रकार का वैदिक छद जिसमे प्रारम मे इसका सेवन किया जाय तो यह बहुत पाच होता २२ सपूर्ण वर्ण होते है। है और इससे कोष्ठपद्धता दूर होती है। साम्नी पक्ति-सञ्चा स्री० [सं० साम्नी पडक्ति] एक प्रकार का वैदिक सामुद्रिक'-वि० [सं०] १ समुद्र से संबंध रखनेवाला। समुदरी। छद जिसमे २० सपूर्ण वर्ण होते है। सागर मवधी । २ शरीरचिह्न मवधी (को०) । साम्नी बृहतो-सश स्त्री० [सं०] एक प्रकार का वैदिक छद जिसमे सामुद्रिक -मशा पु० १ फलित ज्योतिष का एक अग जिसके अनुमार १८ सपूर्ण वर्ण होते है। हथेली की रेखायो, शरीर के तिलो तथा अन्यान्य लक्षणो साम्मत्य-सञ्चा पु० [स०] समति का भाव । आदि को देखकर मनुष्य के जीवन की घटनाएँ तथा शुभाशुभ साम्मुखी-नश स्त्री० [म०] वह तिथि जो सायकल तक रहती हो । फल बतलाए जाते है, यहाँतक कि कुछ लोग केवल हाथ की १ समुख का भाव। रेखाओं को देखकर जन्मकुडली तक बनाते हैं। उपस्थिति (को०) । ३ कृपा । अनुग्रह (को०) । इस शास्त्र का ज्ञाता हो। हाथ की रेखायो तथा शरीर के तुल्यता। तिलो और लक्षणो अादि को देखकर जीवन की घटनाएँ और साम्य--संज्ञा पुं० [सं०] १ समान होने का भाव । समानता । जैसे,—इन दोनो पुस्तको मे बहुत कुछ साम्य है। शुभाशुभ फल बतलानेवाला पडित। ३ नाविक (को०)। ४ २ दृष्टिकोण की समानता या एकता (को०)। ३ सगति । एक जलपक्षी। उ०-डुबकियां लगाते सामुद्रिक, धोतो पीली सामजस्य (को०)। ४ अवधि । माप । काल । सम (को०)। ४ चोचें धोविन । -ग्राम्या, पृ० ३७ । समता की स्थिति । उदासीनता । तटस्थता । निष्पक्षता (को०) मामूहांल-अव्य० [स० सम्मुख] सामने । समुख । सामुहाँ-सज्ञा पु० आगे का माग या अश। सामना । (क्व०) । यो०-साम्यग्राह = (१) घडियाल बजानेवाला । (२) मगीत मे 'मम' को ग्रहण करने और ताल देनेवाला । साम्यताल- सामुहें +-अव्य० [सं० सन्मुख] सामने । सन्मुख । विशारद = लय और ताल का ज्ञाता। जो लय और ताल का सामूना-शा सी० [म.] काले रंग का एक हिरन (को०] । जानकार हो। सामूर-मशा पु० [स०] कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार बलव देश का साम्यतव-सज्ञा पु० [सं० साम्य+तन्त्र] वह शासनप्रणाली जो चमडा [को०] । साम्यवाद के सिद्धात पर हो। साम्यवादी सिद्धात के अनुरूप सामूली-मज्ञा पु० [२०] कौटिल्य वणित वलव देशीय चमडे का चलनेवाला शासन । उ०-ये राज्य प्रजाजन, साम्यतन, शासन एक प्रकार किो०)। चालन के कृतक मान ।-युगात, पृ०६०१ सामूहाँ-अव्य० [स० सम्मुख] सामने । समुख । उ०-जनु घुघची साम्यता-सज्ञा स्त्री॰ [स० साम्य + ता] दे॰ 'साम्य' । वह निलकर मूहाँ। विरहवान साँधो सामूहाँ । - जायसी (शब्द०)। साम्यवाद-सजा पु० [म०] एक प्रकार का पाश्चात्य सामाजिक सामूहिक--वि० [सं०] १ समूह सवधी। समूह का। २ जो समूहबद्ध (समाजवादी) सिद्धात । समष्टिवाद । उ०-ये राष्ट्र, अर्थ, हो (को०)। जन, साम्यवाद, छल सम्य जगत के शिष्ट मान । -युगात, सामृद्धय-मशा पु० [म०] समृद्धि का भाव या समृद्धिता । सामेधिक-वि० [स०] कौटिल्य के अनुसार जो अद्भत प्राकृतिक शक्ति विशेष-इस सिद्धात का प्रवर्तन ईसा की उन्नीसवी शताब्दी मे से मपन्न हो [को०)। हुअा माना जाता है। इस सिद्धात का प्रतिपादन कार्लमार्क्स ने सामोद-पि[स०] १ आनदयुक्त । प्रसन्नतापूर्ण। २. प्रामोद या किया हे जो जर्मनी का निवासी था। इस सिद्धात के प्रचारक सुगधियुक्त [को०] । समाज मे साम्य स्थापित करना चाहते है और उसका वर्तमान हिं० श०१०-३१ २ वह जो साम्मुख्य-मज्ञा पु० [स०] सामना। २ पृ० ५८1
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