पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२४७

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सानना' ५०६७ सानवध , 1 इन बातो मे तो तुम्हारा सानी पीर कोई नही है। उ०--बले अव त प्रो के सानी नही। जो देऊँ अतिया अब सो तेरे तई।-दविखनी०, पृ० २३६ । यौ०--ला सानी = जिसके समान और कोई न हो । अद्वितीय । सानु-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ पर्वत की चोटी। शिखर । उ०-अचल हिमालय का शोभनतम लता कलित शुचि सानु शरीर । -कामायनी, पृ० २६। २ प्रत । मिरा। ३ ममतल भूमि । (पर्वत के ऊपर की) चौरस जमीन । ४ बन। जगल । विपत पहाडी जगल । ५ मार्ग। रास्ता। ६ परलव। पत्ता । ७ सूर्य ८ विद्वान् । पडित । ६ अंखुमा । अकुर (को०)। १० अतट। करारा। प्रपात (को०)। ११ चट्टान (को०)। १२ हवा का झोका । प्रभजन (को०)। सानुकप-वि० [स० सानुकम्प] अनुकपा या दया से युक्त । सहानुभूति- शील (को०] । सानुक-वि० [स०] उठा हुआ | उद्धत । उच्छ्रित । दृप्त । घमडी [को॰] । सानुकूल-वि० [स०] दे० 'अनुकूल' । उ०-सदा सो सानुकूल रह मो पर । कृपासिंधु सौमित्नि गुनाकर ।- मानस, १।१७ । सानुकूल्य-सज्ञा पु० [स०] अनुकूल होने का भाव । अनुकूलता। पक्षग्रहण । सहयोगिता (को०] । सानुक्रोश-वि० [स०] अनुकोश अर्थात कृपायुक्त। दयालु । कृपालु (को०] । सानना-क्रि० स० [हिं० सनना का सक० रूप] १ दो वस्तुयो को आपस मे मिलाना, विशेषतः चूर्ण आदि को तरल पदार्थ मे मिलाकर गीला करना। गूधना। जैसे,-पाटा मानना । २ समिलित करना। शामिल करना। उत्तरदायी बनाना। जैसे,-आप मुझे तो व्यर्थ ही इस मामले मे सानते ३. मिलाना। लपेटना। मिश्रित करना। सयुक्त करना। जैसे,—तुमने अपने दोनो हाथ मिट्टी मे सान लिए। उ०--यह सुनि धावत घरनि चरन की प्रतिमा खगी पथ मे पाई। नैन नीर रघुनाथ सानिक शिव सो गात चढाई ।- सूर (शब्द०)। सयो० क्रि०-दालना।-देना। लेना । सानना-क्रि० स० [हिं० सान+ना (प्रत्य॰)] सानपर चढाकर धार तेज करना। (क्व०)। सानमान-वि० [स० सानुमत् चोटियो वाला। ऊँचा (पर्वत)। उ.-बलिहारी भूधर तुम धीर कर गुन गान । मानमान कहि अचल कहि सब जग करे बखान ।-दीन ग्र०, पृ० २१० । सानल'-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] शाल वृक्ष से निकलनेवाला निर्यास (को॰) । सानल'-वि० अनलयुक्त । अग्नियुक्त । २ कृत्तिका नामक नक्षत्र से युक्त (को॰] । सानसि-सज्ञा पुं० [स०] सोना । सुवर्ण (को॰] । सानाथ्य-सशा पु० [स०] मदद । सहयोग । सहायता। सानिका- सज्ञा स्त्री० [म०] वशी । मुरली । सानिधि-सज्ञा स्त्री० [स० सान्निध्य] दे० 'सान्निध्य' भगवदीन सगकरि, वात उनकी ल सदा, सानिधि इहि देति भैई। --नद० ग्र०, पृ० ३२८ । सानिध्य-मज्ञा पु० [स० सानिध्य] दे० 'सान्निध्य' । उ०—और श्री आचार्यजी के पलगडी सानिध्य अात्मनिवेदन की प्राज्ञा किए। -दो सौ बावन०, भा० २, पृ० १६ । सानिया-सशा पु० [अ० सानियह] १ घटे का ६०वाँ भाग । मिनिट । २ पल । क्षण । लमहा [को०] । सानियिका-सा स्त्री० [स०] दे० 'सानिका' [को०] । सानी-मज्ञा सी० [हिं० सानना] १ वह भोजन जो पानी मे सानकर पशुग्रो को खिलाया जाता है। विशेप--नाद मे भूसा भिगो देते है और उसमे खली, दाना, नमक आदि छोडकर उसे पशुओ को खिलाते है। इसी को सानी कहते हैं। २. अनुचित रीति से एक मे मिलाए हुए कई प्रकार के खाद्यपदार्थ । (व्यग्य) । ३. गाड़ी के पहिए मे लगाने की गिट्टक । सानी'-सज्ञा भी० [स० शण या शाणा, शाणी (= मन का वस्त्र) प्रा० सारणी] दे० 'मनई'। सानी'-वि० [अ०] १. दूसरा । द्वितीय । जैसे,--औरगजेब सानी । २. बराबरी का । समानता रखनेवाला। मुकावले का । जैसे,- - सातुग-वि० [सं०] अनुगमन करनेवालो या अनुचरो से युक्त (को०] । सानुज'-सा पुं० [म०] १ प्रपोडिक वृक्ष । पुडेरी। २ तु बुरु नामक वृक्ष। सानुज-वि० छोटे भाई के साथ। उ०-मानुज पठइन मोहिं बन कीजिन सवहि सनाथ !-मानस, २२६७ । सानुतर्प-वि० [स०] तृषा या प्यासयुक्त । प्यासा (को०] । सानुनय'- -वि० [स०] विनयशील । शिष्ट । सानुनय - क्रि० वि० विनम्रता के साथ यिो०] । सानुनासिक-वि० [स०] १ जो अनुनामिक वर्ण से युक्त हो । २ नाक के वल गानेवाला [को०] । सानुपातिक--वि० [म०] समुचित अनुपातयुक्त । उचित अगयुक्त । उ०--सानुपातिक सगीतात्मकता, रचना शैली की प्रधानता तथा ऐसी पूर्णता जो विश्लेषण से परे होने पर भी प्रतिदिन एक नए अर्थ को जन्म देगी।--हि० का० प्रा०प्र०, पृ० १४४॥ सानुप्रास--वि० [म०] जिसमे अनुप्रास हो। अनुप्रास से युक्त किो०] । सानुप्लव-वि० [म०] अनुयायी वर्ग से युक्त । अनुगतानो, सहचरो आदि के साथ [को]। सानुवध-वि० [सं० सानुबन्ध] १. अनुबधयुक्त। व्यतिक्रमरहित । क्रमबद्ध। २ जिसके परिणाम हो। परिणाम या फल मे युक्त । ३ अपनी वस्तुओं के साथ (को०] ।