संकला ४८३४ सकाश सकला-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० शृङ्खला, प्रा० सकला] ३० 'सकल' । सकल्पनीय-वि० [स०] १ कामना करने योग्य । जिनकी कामना या उ.-मनो सकला हेम ते सिघ छुट्ट।-पृ० रा०, २०५०३ । चाह की जाय । २. प्रतिज्ञा करने योग्य। जिसके लिये निश्चय किया जाय [को०] । सकला-सशा स्री० [स० मङ्कला] एकत्रीकरण । जोडना। मिलाना को। सकल्पप्रभव-सज्ञा पुं० [स] कामदेव [को॰] । सकलित'-'व० [स० सङ्कलित] १ चुना हुआ । सगृहीत। २ जोड सकल्पभव-सज्ञा पुं० [स०] कामदेव । लगाया हुया । योजित । ३ इकट्ठा किया हया। एकत्र संकल्पयोनि-एशा पुं० [स०] कामदेव । मदन । २. प्राकाका । किया हुआ। ४. गृहीत । पुन प्राप्त किया या पकडा हुआ इच्छा । कामना [को०] । (को०)। सकल्पा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० सङ्कल्पा] दक्ष को एक कन्या जो धर्म की सकलित-सक्षा पु० जोड । योग [को॰] । भार्या थी। संकलुष-सञ्ज्ञा पुं० [स० सङ्कलुष] कालुष्य । अशुद्धता [को०] । सकल्पात्मक-वि० [स० तङ्कल्पात्मक | जिसमे सकल्प या दृढ इच्छा- शक्ति निहित हो। जिसका निश्चय किया गया हो ।को०] । सकल्प - सज्ञा पु० [स० सङ्कल्प] १ कार्य करने को वह इच्छा जो मन मे उत्पन्न हो। विचार। इरादा। २ दान, पुण्य या और सकल्पित-वि० [म० सङ्कल्पित] १ कल्पित । जिसकी कल्पना की कोई देवकार्य प्रारम करने से पहले एक निश्चित मन का गई हो। २ जिसका दृढ निश्चय किया गया हो। जिसके लिये उच्चारण करते हुए अपना दृढ निश्चय या विचार प्रकट करना । प्रतिज्ञात हो । ३. इच्छित । विचारित । लक्षित [को०] । ३ वह मन जिसका उच्चारण करके इस प्रकार का निश्चय सकष्ट-सज्ञा पुं॰ [स० सङ्कष्ट | दुख । कष्ट । दे० 'सकट'। उ.- या विचार प्रकट किया जाता है। मक्त सकष्ट अवलोकि पितुवाक्य कृत गमन किय गहन विशेष-इस मन मे प्राय सवत्, मास, तिथि, वार, स्थान, दाता वैदेहि मर्ता। तुलसी ग्र०, पृ० ४८८ । या कर्ता का नाम, उपलक्ष मोर दान या कृत्य अादि का उल्लेख सकसुक-वि० [स० सङ्घमुक] १. जो स्थिर न हो। चचल। २. होता है। सदिग्ध। सदेहास्पद । अनिश्चित । ३. बुरा। बदमाश। ४ दृढ निश्चय। पक्का विचार । जैसे,-मैने तो अब यह सकल्प ४. कमजोर । बलहीन [को०] । कर लिया है कि कभी उसके साथ कोई व्यवहार न रखुगा। ५ उद्देश्य । लक्ष्य (को०)। ६. विमर्श । ऊहा। कल्पना (को०)। सका-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० शङ्का] दे० 'शका'। उ०-देखि प्रताप न ७. मन। हृदय (को०)। असका ।-- ८. पति के साथ सती होने की कपि मन सका। जिमि अहिगन महँ गरड मानस, ५॥२०॥ आकाक्षा (को०)। यौ०-सकल्पज। सकल्पजन्मा। सकल्पजूति = सकल्प या कामना सकार-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १. कूडा करकट या धूल जो झाटू देने से द्वारा प्रेरित । सकल्पप्रभव । सकरपभव । सकल्पमूल = विचार उडे । २ पाग के जलने का शब्द । या दृढ इच्छाशक्ति जिसके मूल मे हो। सकल्पयोनि । सकरप यो०--सकारकूट = कूडे कचरे की राशि । रूप = इच्छा के अनुरूप । सकल्पसपत्ति = कामना की पूर्ति । सकार@t--सा सी० [स० सङ्केत, या हिं० सनकार?] इशारा। सकल्पसभव = (१) सकल्प या विचार से उत्पन्न। (२) सकेत। कामदेव । सकल्पसिद्ध = विचार मात्र से पूर्ण होनेवाला । सकारना--क्रि० स० [हिं० सकार+ना (प्रत्य०), या हिं० सकल्पसिद्धि = उद्देश्य की वह सिद्धि जो सकल्प द्वारा पूर्ण हो । सनकारना | सकेत करना । इशारा करना। संकल्पक--वि० [स० सङ्कल्पक) विचार करनेवाला । इच्छा सकारी'-सा स्त्री॰ [स० सङ्कारी] वह कन्या जिसका कौमार्य सद्य करनेवाला। सकल्प करनेवाला (को०] । नग हुआ हो (को०]। संकल्पज'-वि० [सं० सङ्कल्पज] इच्छा, विचार या सकल्प से उत्पन्न सकारी--वि० [स० सङ्कारिन्] १. सकीर्ण। मिश्रित । सकर । होनेवाला (को०] । २ मिश्रित या सकर जाति से उत्पन्न को । सकल्पज'-सज्ञा पुं० १ इच्छा । काम । २ कामदेव [को०] । सकारा'--अव्य० [स० सङ्काश] १ समान । मदृश । मिलना जुलता । सकल्पजन्मा-सज्ञा पु० [स० सङ्कल्पजन्मन् ] दे० 'सकल्पज' । (समासात मे) । उ०--तुपाराद्रि सकारा गौर गभीर।--मानस, सकल्पन-सग पु० [सं० सङ्कल्पन] उद्देश्य । अभिलापा । इच्छा [को०] । ७।१०८ । २ समीप मे । निकट या पास मे (को०)। सकल्पना' -क्रि० स०, क्रि० प्र० स० सकल्प+हिं० ना (प्रत्य॰)] स काश-अव्य० समीप । निकट । पास । दे० 'सकलपना'। उ०-सकल्पि सिय रामहि समपी सील स काश-सरा पु० १. उपस्थिति । मौजूदगी। २ पटोस । प्रतिवेश। सुख सोभामई।-तुलसी ग्र०, पृ० ५८ । सकास (को०। सकल्पना-सहा स्त्री० [स० सङ्कल्पना] १ सफल्प करने को निन्या । सकाश-6 पुं० [स० सम् + काश् ( चमकना)] प्रकाश । २. वासना । इच्छा । मिलापा। चमक । दीप्ति।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२३
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