पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२२५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

साँघना ५०४५ सांप सांधना'--त्रि० स० [स० सन्धान] निशाना साधना। लक्ष्य करना। सधान करना । उ०-(क) अगिन वान दुइ जानो माँधे । जग बेधे जो होहिं न बांधे।-जायसी (शब्द॰) । (ख) जनु घुघची वह तिलकर भूहां । विरह बान सांधो सामूहाँ । —जायसी (शब्द॰) । साँधना'--त्रि० स० [म० साधन] सिद्ध करना । साधना । उ०--सीस काटि के परी बांधा। पावा दाँव बैर जस सांधा।-जायसी (शब्द०)। सांधना --क्रि० स० [स० सन्धि] १ एक मे मिलाना । मिश्रित करना। उ०-बिविध मृगन कर भामिष रांधा। तेहि महें विप्रमासु खल साँधा ।—तुलसी (शब्द०)। २ रस्सियो श्रादि मे जोड लगाना । (लश०) । ३ सधान करना । तैयार करना । वनाना । उ०-धोग्राउरि धाने मदिरा साँध, देउर भाँगि मसीद बाँध । -कीर्ति०, पृ० ४४ । सांधा--सज्ञा पुं॰ [स० सन्धि] दो रस्सियो प्रादि मे दी हुई गाँठ । (लश.)। मुहा०-सांधा मारना = दो रस्सियो अादि मे गांठ लगाकर उन्हे जोडना । (लश०)। सॉन-सज्ञा स्त्री० [फा० शान] दे० 'शान' । उ०-गरवी गुमान होइ वडो सावधान होइ, सान होइ सहिबी प्रताप पुज धाम को।--पोद्दार अभि० ग्र०, पृ० ४३२ । सानना-कि० स० [हिं० सानना] गूंधना। मिलाना। दे० 'सानना' । उ०-पांच तत तीनि गुण जुगति करि सानियाँ । --कवीर ग्र०, पृ० १५६ । सांप-सज्ञा पुं० [सं० सर्प, प्रा० सप्प] [क्षी० सांपिन] १ एक प्रसिद्ध रेंगनेवाला लवा कीडा जिसके हाथ पर नहीं होते और जो पेट के बल जमीन पर रेंगता है। विशेष-केवल थोडे से बहुत ठढे देशो को छोडकर शेष प्राय समस्त ससार मे यह पाया जाता है। इसकी सैकडो जातियां होती है जो आकार और रग आदि मे एक दूसरी से बहुत अधिक भिन्न होती हैं । सांप आकार मे दो ढाई इच से २५- ३० फुट तक लवे होते हैं और मोटे सूत से लेकर प्राय एक फुट तक मोटे होते है। बहुत बडी जानियो के सांप अजगर कहलाते है। कुछ सांपो के सिर पर फन होता है। ऐसे माप नाग कहलाने है। माप पोले, हरे, लाल, काले, भने आदि अनेक रगो के होते हैं। साँपो की अधिकाश जातियां बहुत डरपोक और सोधी होती है, पर कुछ जातियां जहीतो और बहुत ही घातक होती है । भारत के गेहुअन, धामिन, नाग और वाले सांप बहुत अधिक जहरीले होते हैं, और उनके काटने पर आदमी प्राय नहीं बनता। इनके मुर मे साधारण दांतो के अतिरिक्त एक बहुत बड़ा नुकीला खोखला दान भी होता है जिसका सबध जहर को एक थली से होता है। काटने के समय वही दांत शरीर मे गड़ाकर ये विष का प्रवेश करते हिं० श०१०-२७ है। सर सांप मामाहारी होते है और छोटे छोटे जीव- जतुग्रो को निगल जाने हैं। इनमें यह विशेषता होती है कि ये अपने शरीर को मोटाई मे कही गधिक मोटे जतुनो को निगल जाते है । प्राय छोटी जाति के माप पंडो पर और वडी जाति के जगलो, पहाडो आदि मे यो ही जमीन पर रहते है। इनकी उत्पत्ति अटो मे होती है, और मादा हर बार मे बहुत अधिक अ देती है। मांपो के छोटे बच्चे प्राय रक्षित होने के लिये अपनी माता के मुंह मे चले जाते हैं, इमी लिये लोगो में यह प्रवाद है कि माँपिन अपने बच्चो को आप ही खा जाती है। इम देश में सांपो के काटने की चिकित्मा प्राय जतर मतर और झाड फूंक आदि से की जाती है। भारतवामियो मे यह मी प्रवाद है कि पुराने साँपो के सिर में एक प्रकार की मणि होती है जिसे वे रात में अधकार के ममय बाहर निकालकर अपने चारो ओर प्रकाश कर लेते है । मुहा०--कलेजे पर साँप लहराना या लोटना = बहुत अधिक व्याकुलता या पीडा होना। अत्यत दुख होना । (ईर्ष्या आदि के कारण)। सांप उतारना = सर्प के काटने पर विप को मन्त्रादि से दूर करना। सांप का पांव देखना = अमभव वस्तु को पाने का प्रयत्न करना। साँप कीलना = मन्त्र द्वारा मांप को वश मे करना। मन द्वारा सांप को काटने से रोकना। सांप को खिलाना = अत्यत खतरनाक कार्य करना। सांप से खेलना = अत्यत खतरनाक व्यक्ति से सबंध रखना । सांप सूंघ जाना = साँप का काट खाना । मर जाना । निर्जीव हो जाना। जैसे,--ऐसे सोए है मानो सांप सूंघ गया है। उ०--अरे इस मकान मे कोई है या सबको सांप सूंघ गया।—फिसाना०, मा० ३, पृ० ३४ । साँप खेलाना = मन बल से या और किसी प्रकार मांप को पकडना और कोडा करना । साँप की तरह केंचुली झाडना = पुराना भद्दा रूप रग छोडकर नया सुदर स्प धारण करना । माप की लहर = साँप काटने पर रह रह कर पानेवाली विप की लहर। माप काटने का कष्ट । माप की लकीर = पृथ्वी पर का चिह्न जो माप के निकल जाने पर होता है । साँप के मुंह मे = बहुत जोखिम में । माप (के) चले जाने पर लकीर को पीटना = (१) अवसर बीत जाने पर भी उम अवसर को जिलाए रखना। किमी विपय को असमय मे उठाना । (२) सनरे के अवसर पर उसका प्रतिरोध न करके वाद मे उसे दूर करने को चेप्टा करना। मौका गुजर जाने पर मुस्तैदी दिखाना । माप छडूंदर को गति या दशा = भारी अम- मजस की दशा । दुविधा । उ०---भड गनि सांप छछंदर केरी —तुलसी (शब्द०)। विशेप-गांप छबूंदर की कहावत के मवध में कहा जाता है कि यदि नाप छडूंबर को परउने पर ग जाता है, तो वह तुरत मर जाता है, और यदि न वाय और उतरे, तो प्रधा हो जाता है। पर्या---गुजग । भुजग। अहि । विपधर। व्यार। सरीनृप । कुडनी। चक्षुथवा । फणी। ग्लिशय । उन। पन्नग । पवना-