साँटिया ५०४१ गाँव साँटिया-सशा पु० [हिं० साँटी] टोडी पीटनेवाला। डुग्गीवाला। साँडिया--सा पुं० [हिं० साढियो] १ तेज चलनेवाला ऊँट । २ मानी उ.-चहँ दिसि आनि साँटिया फेरी। भै कठकाई राजा पर मवारी करनेवाला। केगे।—जायसी (शब्द॰) । साँढनी--मज्ञा ली० [हि० मांड 1] 70 'मांनी'। उ०--यह सुनत साँटी'--संज्ञा स्त्री० [म० यष्टिका] १ पतली छोटी छडी । २ वांस की हो तत्काल नामजी एक मानी से ग्राम दाइमै गर और, पतनी कमची। शाखा । उ०-वाम्हन को ले साँटी मारे । तोर दोडमै दूगरी पोर धरि के तहाँ ते श्रीजी द्वार को चोदा जनेऊ पागी डारे ।--कवीर सा०, पृ० २५५ । मौ बावन० मा०, पृ०१६ । क्रि० प्र०-मारना ।-सटकारना । साँढिया @+-ज्ञा पु० [हिं०] ३० मांदियो' । उ०--निनु नितु सॉटी--सशा छी० [हिं० सटना] १ मेल मिलाप । २ वदला । प्रति- कार । प्रतिहिंसा। नवला सांटियाँ, नितु नितु नवना साजि ।-टोला०, द्० ८१ । साँठ'--सझा पु० [देश॰] १ एक प्रकार का कडा जिसे प्राय राजपूताने साँढियो-सगा पुं० [हिं०] ऊँट । यमेतक। के किमान पैर मे पहनते है । २ दे० 'सांकडा' । सांत +-मज्ञा रसी० [म० शान्ति] ३० 'जाति' । 30--होर शोर भी सॉठ:--मा पु० [स० यप्टि, हिं• साँट] १ ईख । गन्ना। २ सरक डा। भांत मान का था, बहु माँत जो मेग मांत या था।--दविजनी०, ३ वह लवा डडा जिमसे अन्न पीटकर दाने निकालते हैं। पृ० १६६ । साँठ'--सशा पु० [स० मन्धि ? या हिं० सटना] मेलजोल। मेल साँ तया --तशा पु० [सं० स्वस्तिक] दे० 'रतिर-१२। उ०- मिलाप । दे० 'मॉटी' । जैसे,--सांठ गांठ। धरहुँ सुहद्रा सांतिये, अपने विरेंन दरबार, बधाई गाजी नद थे । साँठगाँठ--सज्ञा स्त्री० [हिं० गाँठ + अनु० साँट] १ मेल मिलाप । --पोद्दार अभि० ग्र०, पृ० ६२२ । २ छिपा और दूपित सवध । जैसे,--उस स्त्री से उसकी सांठ- साँती-मशा पी० [म० शान्नि] दे० 'शानि'। उ०-- सुना गाठ थी। उ०--क्या भोली बनी जाती है और बागवां से हिये भइ माती।-जायमी ग्र०, पृ० ११७ । खुद ही साँठगाँठ जो की थी 1-फिमाना, भा०३, पृ० साँथड़ा--सज्ञा पुं० [२] वादिया का वह हिम्मा जो पेत्र बनाने के लिये १२६। ३ पड्यन्न । दुरभिमधि । साजिश । जैसे,—उन घुमाया जाता है (लुहार)। दोनो ने साँठगाँठकर उसे वहाँ से निकलवा दिया । सांठना--क्रि० स० [म० सन्धि , हिं० साँठ] पकडे रहना। उ०-- साँथरा-सज्ञा पुं० [म० सम्नर] दे० 'माथरी' । उ०-कामी लज्या नाथ सुनी भृगुनाथ कथा वलि वाल गए चलि वात के सांठे । ना करै मन माहैं अहिलाद । नीद न मांगे माँथरा भूवन माँग --तुलसी (शब्द०)। स्वाद । -कवीर ग्र०, पृ०४१ । सॉठि-सज्ञा स्त्री० [हिं० गाँठ] दे० 'साँठो। उ०-साठि नाहि सायरी--तशा स्रो० [म० सस्तर] १ चटाई । २ विछौना। डामन । जग बात को पूछा।—जायसी ग्र०, पृ० १५७ । उ०--कुस साथरी निहारि नुहाई । कीन्ह प्रनाम प्रदन्छिन सॉठीg:--सज्ञा स्त्री० [हि • गाँठ ? या म० स+अर्थ ( = धन) = जाई।--मानस, २०१६६ । मार्थ ?] पूंजी। धन । उ०-मव निवहिहि तहँ पापन सांठी । सॉथा--ज्ञा पुं॰ [देश॰] लोहे का एक प्रांजार जो चमटा कूटने के माँठी बिना रहव मुख माँटी।-जायसी ग्र० (गुप्त),पृ० २०७ । काम में आता है। साँठी--मशा स्त्री॰ [देश॰] पुनर्नवा । गदहपूग्ना । साथी--मज्ञा स्त्री॰ [देश॰] १ वह लकडी जो ताने के तारोको ठीक सॉठी--सज्ञा पु० [स० पष्ठिक, हिं० माठी] दे० 'साठी' (धान)। रखने के लिये करघे के ऊपर लगी रहती है। २ ताने के सूतो सॉड'--"ज्ञा पु० [म० पण्ड या माण्ड] १ वह वैल (या घोडा) जिसे के ऊपर नीचे होने की निया। लोग केवल जोडा खिलाने के लिये पालते है । साँद'--सज्ञा पु० [देश॰] वह लकडी आदि जो पशुत्रो के गले मे इन विशेष-ऐसा जानवर बधिया नही किया जाता और न उससे लिये बांध दी जाती है, जिसमे वे भागने न पावें । लगर। कोई काम लिया जाता है । २ वह वैल जो मृतक की स्मृति मे हिंदू लोग दागकर छोड देते हैं। साँदपुर--अव्य० [हिं० साथ ?] दे० 'साथ' । उ०--मीने मे दम । वृपोत्सर्ग मे छोडा हुअा वृपभ । अपने माँद लेकर। कमर अपने दामन बाँद लेकर -दक्खिनी०, मुहा०--मॉड की तरह धूमना = अाजाद और बेफिक्र घूमना । पृ० २८१॥ मॉड की तरह डकारना = बहुत जोर से चिल्लाना। सॉड'--पि० १ मजबूत । बलिष्ठ । २ अावारा । बदचलन । साँदा--सज्ञा पुं० [देग०] द० 'साँद' । सॉडनो--मशा श्री० [हिं० सॉड ?] ऊँटनी या मादा ऊँट जिसकी चाल साँधर--मज्ञा पु० [स० सन्धान] वह वस्तु जिगपर निशाना लगाया वहुत तेज होती है । विशेष दे० 'ऊँट'। उ०--द्रव्यलाभ धावमान जाय । लक्ष्य निशाना। सॉडनी । सद्गहस्थ गेह को उजाडनी । -भारनेदु ग्र०, भा०३, साँघ'--सज्ञा मी० [सं० सन्धि] १ सधि । मित्रता। उ०--मारणे पृ० ८४५। तोड जहान सू सांध न जाणे तीह ।--बांकी० ग्र०, भा० १, सॉडा--प्रज्ञा पु० [हि० सॉड] छिपकली की जाति का पर आकार मे पृ० २३ । २ छिद्र । सधि । फॉक। दरार। पाली जगह । उसमे कुछ वडा एक प्रकार का जगली जानवर। इसकी चरवी उ.--कनातो की माँधो से जगमोहन ने वह नाच देखा था। निकाली जाती है जो दवा के काम मे आती है। -ज्ञानदान, पृ०४८ । टेका।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२२४
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