साप्रतकाल ५०४० सांवत्सरक' साप्रतकाल-सज्ञा पु० [म० साम्प्रतकाल] वर्तमान समय। वर्तमान साबपुर-नशा पु० [स० साम्बपुर] पजाव के मुलतान नगर का एक काल [को०)। प्राचीन नाम। विशेप-यह नगर चद्रभागा नदी के तट पर है। कहते है कि साप्रतिक--वि. [स० साम्प्रतिक] [वि॰ स्त्री० साप्रतिको] १ वर्तमान काल से सबध रखनेवाला। वर्तमानकालिक । इस समय इसे श्रीकृष्ण के पुन्न साव ने बसाया था । का। अाधुनिक । उ०--सपादकीय प्रबध वा प्रेरित पत्न अादि सावपुराए-मा पु० [स० साम्बपुराण] एक उपपुराण का नाम । साप्रतिक पत्रो मे प्रकाशित होने की चाल चल रही है।-- सावपुरी-सज्ञा स्त्री॰ [स० साम्बपुरी] दे० 'सावपुर'। प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० २६४। २ वर्तमानजीवी। अाधुनिक साबर'-सज्ञा पु० [स० साम्बर] १ साँभर हरिन। विशेप दे० काल की सीमा मे रहनेवाला (व्यक्ति)। उ०—पर जव उनके 'साँभर'। २ साँभर नमक । जीवनबोध ने अपनी परमिति को छू लिया तो साप्रतिको को सावर--नशा पु० [स० सम्वल] पाथेय । सवल । राहखर्च । उनका स्थान ग्रहण करते देर न लगी। यदनवार (भू०), सावरी --वि० [स० साम्बर+ई] सावर मृग के चर्म या सांभर क्षेत्र पृ० १७। ३ उचित । योग्य । ठीक । उपयुक्त (को०) । का बना हुआ। उ०--पाए पाणही सावगे, चउघड्या माह साप्रदायिक-वि० [स० साम्प्रदायिक] [वि॰ स्त्री० साप्रदायिको] १ दीई मिलाण।-बी. रासो, पृ० ७७ । किसी सप्रदाय से सवध रखनेवाला। संप्रदाय का । २ पर सावरी--मशा स्त्री॰ [नं० साम्बरी] १ माया। जादूगरी। २ परित । परपरासिद्ध (को॰) । जादूगरनी। साप्रदायिकता-सज्ञा स्त्री॰ [म. साम्प्रदायिकता] १ किसी सप्रदाय विशेष--कहते हैं कि इस विद्या का आविष्कार श्रीकृष्ण के पुत्र से सबधित होने का भाव । २ सप्रदाय के प्रति कट्टरता का सावर ने किया था, इसी से इसका यह नाम पड़ा। भाव । दूसरे सप्रदाय के अहित पर अपने सप्रदाय की हितरक्षा । सावाधिक--मशा पु० [स० साम्बाधिक] रात्रि का द्वितीय याम या साप्रियक--वि० [सं० साम्प्रियक] । जहाँ परस्पर प्रियजन अथवा प्रहर (को०)। परस्पर भाईचारा रखनेवाले लोग रहते हो किो०] । साभर--सा पु० [स० साम्भर] सांभर नमक (को०] । साबधिक'-वि० [म० साम्बन्धिक] १ सबंधजन्य । सबध का। २ साभवी--पशा सी० [स० साम्भवी] १ लाल लोध । २ आशका । विवाह सबधी। सभावना (को०)। सावधिक'--सज्ञा पु० १ स्त्री का भाई, साला। ३ सबध। रिश्ते साभाय--सज्ञा स्त्री० [स० साम्भाप्य] सभापण । वातचीत । दारी (को०)। सामुखी-सज्ञा स्त्री॰ [म० साम्मुखी] वह तिथि जिसका मान माय- साब-सज्ञा पु० [स० साम्ब] १ श्रीकृष्ण के एक पुत्र का नाम जो काल तक हो। जाववती के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। सामुख्य--सज्ञा पु० [म० साम्मुख्य] १ प्रत्यक्षता। समक्षता। सामने विशेष--बाल्यावस्था मे इन्होने वलदेव से अस्त्र विद्या सीखी थी। होने की स्थिति । २ अनुकूलता । कृपाभाव । तरफदारी । बहुत अधिक बलवान् होने के कारण ये दूसरे वलदेव माने जाते सायमन--वि० [स०] सयमन सबधी । सयमन विषयक । थे। भविष्य पुराण में लिखा गया है कि ये बहुत सुदर ये और सायात्रिक-मज्ञा पु० [स०] १ समुद्रीय व्यापार करनेवाला व्यापारी । अपनी सुदरता के अभिमान मे किसी को कुछ न समझते थे । पोतवणिक् । २ यान । सवारी। ३ उपाकाल [को०] । एक बार इन्होने दुर्वासा मुनि का कृश शरीर देखकर उनका सायुग---वि० [म०] सयुग सबधी । युद्ध से सबधित (को०] । कुछ परिहास किया, जिससे दुर्वासा ने शाप दिया था कि तुम सायुगीन'-वि० [म०] १ युद्ध से सबधित । सामरिक । २ रण- कोढी हो जाओगे। इसके उपरात एक अवसर पर रुक्मिणी, कुशल । युद्धचतुर (को०)। सत्वभामा और जाबवती को छोडकर श्रीकृष्ण की और सब सायुगीन'- रचा पु० १ युद्ध मे कुशल व्यक्ति । २ श्रेष्ठ योद्धा या वीर। रानियाँ इनके रूपपर इतनी मुग्ध हो गई कि उनका रेत वहादुर । लडाकू। स्खलित हो गया था। इसपर श्रीकृष्ण ने भी इन्हे शाप दिया साराविए--सञ्ज्ञा पु० [स०] कई व्यक्तियो का एक साथ चीखना- था कि तुम कोढी हो जानो। इसी लिये ये कोढी हो गए थे। पुकारना । शोर गुल [को०] । अत मे इन्होने नारद के परामर्श से सूर्य की मिन नामक सावत्सर--वि० [स०] वापिक। वर्ष मे होनेवाला। जो सवत्सर से मूर्ति की उपासना प्रारभ की जिससे अत मे इनका शरीर सवधित हो (को०)। नीरोग हो गया । कहते है कि जिस स्थान पर इन्होने 'मित्र' की सावत्सर--सज्ञा पु० १ ज्योतिषी । ज्योतिर्विद । २ वह जो ग्रहादि उपासना की थी, उस स्थान का नाम 'मित्रवण' पडा । इन्होने की गति के अनुसार पचाग बनाता हो । ३ चाद्रमास । ३ अपने इस नाम से सावपुर नामक एक नगर भी, चद्रभागा के काला चावल । ४ मृतक का एक वर्ष के उपरात होनेवाला तट पर बसाया था। महाभारत के युद्ध मे ये जरासंध और कृत्य । वरसी (को०] । शाल्व आदि से बहुत वीरतापूर्वक लडे थे । सावत्सरक'--वि॰ [स०] (ऋण) जो एक वर्ष मे चुकाया जाय (को०] । २. शिव का एक नाम, जो अवा, पार्वती के सहित है (को०)। सावत्सरक-सज्ञा पु० ज्योतिषी (को०] । 1
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२२०
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