५ सहेतु सहेतु-वि० [स०] हेतु युक्त । सहेतुक । कारणयुक्त । हेतु सहित । सहोपमा--मसा मी० [म०] एक प्रकार का अतकार । उपमा । अत्रकार सकारण (को०] 1 काएज भेद। सहेतुक--वि० [म०] जिसका कोई हेतु हो। जिसका कुछ उद्देश्य या सहोवन--मशा पुं० [सं०] भयकर परता या बर्बरता (पो०] । मतलब हो। जमे,--यहाँ यह पद सहेतुक आया है, निरर्थक सहोर'--नशा पुं० [सं० शायोट] एक प्रकार का वृक्ष । मिहार । शायोट। नहीं है। सहेरवा:--सज्ञा पु० [देश॰] हरसिंगार या पारिजात का वृक्ष । विशेप-उसका वृक्ष प्राय जगती प्रदेशो मे होता है और विशेषत महेला--मज्ञा पु० [देश] वह सहायता जो असामी या काश्तकार शुष्क भूमि में अधिक उत्पन्न होता है । यह अत्यन गठीला और अपने जमीदार को उसके खुदकारन खेत को काश्त करने के झाउदार होता है। प्रार यह मदा हगमा रहता है पन वदले मे देता है । यह सहायता प्राय बेगारी और बीज आदि भड में भी उनके पत्ते नहीं गिरते। इसकी छाल मोटी होती के रूप मे होती है। है और रग भूग गारी होता है। इसकी लकडी मफेद और साधारणत मजबूत होती है । इसके पत्ते हो सहेल'--वि० [स०] क्रीडायुक्त । हेलायुक्त । चितारहित । लापर- छोटे और गुर्दुरे होते है। पाल्गुन माम तक वाह [को०] । इमका वृक्ष फूलता फलता है और वैशा ने प्रापाट तर सहेलरीg-मज्ञा स्पी० [हिं० सहेली] दे० 'सहेली' । फत पकने हैं । फून प्राध उच लबे, गान और सफेद या पोला- सहेलवाल--मझा पु० [देश॰] वैश्यो को एक जाति । पन लिए होते है। इसके गोन पान गदेदार होते है प्री-बोज सहेली - मशा सी० [म. सह + हिं० एली (प्रत्य॰)] साथ मे रहनेवाली गोलाकार होते है। इसकी टहनिया को काटकर लोग दातून स्त्री। सगिनी । मयो । २ अनुचरी । पारिचारिका । दासी। बनाते है । चिकित्साशास्त्र के अनुसार यह रक्तपित्त, बवासीर, सहैया --मज्ञा पुं० [हि० सहाय] सहायता करनेवाला । सहायक । वात, कफ और अनिमार का नागर है। सहैया-वि० [स० सहन] महनेवाला । महन करनेवाला। पर्या० -शायोट । भूनानाम । पौतफतक । पिशाचद: सहोक्ति-मज्ञा स्मी० [स०] एक प्रकार का काव्यालकार जिसमे 'सह', राहोर'-वि० [सं०] अच्छा । उत्कृष्ट । उत्तम [को० । 'सग', 'साथ' आदि शब्दो का व्यवहार होता है और अनेक सहोर'- पुं० महात्मा । माधु । सन [को०] । कार्य साथ ही होते हुए दिखाए जाते है । प्राय इन अलकारी महोवर:-वश पुं० [२० महोदर] नगा भाई । एक माता के पुत्र । मे क्रिया एक ही होती है। जैसे,-बल प्रताप वीरता बडाई । नाक, पिनाकहिं सग मिधाई ।--तुलसी (शब्द॰) । सहोवल-नज्ञा ० [स०] दे० 'महोबल' । सहोजा--नज्ञा पु० [म०] १ अग्नि । २ इद्र । सह्य'-सरा पुं० [न०] १ दक्षिण देश में स्थित एक पर्वत । विशेष दे० 'मह्याद्रि'। २ वारस्य । यारोग्यलाभ (के.)। २ सहोटज-मज्ञा पु० [स०] पर्णकुटी। ऋपियो प्रादि के रहने की मदद । महायता (को०) । ३ युक्तता । पर्याप्नि (को०) । पर्णकुटी। सह्य--वि० १ महने योग्य । महने लायक । वर्दाश्त करने लायक । सहोढ-सज्ञा पु० [स० सहोट] १ बारह प्रकार के पुवो मे से एक जो महन करने में समर्थ हो । २ ग्रारोग्य । ३ प्रिय । पारा। प्रकार का पुन । गर्भ की अवस्था मे व्याही हुई कन्या का ४ झेलने, भोगने या वहन करने योग्य (को०)। ५. समर्थ । पुत्र । वह पुत्र जिसको माता विवाह से पूर्व ही गर्भवती रही शक्तिशाली (को०)। हो। २ वह चोर जो चोरी के माल के साथ पकडा गया सह्य-तशा पुं० माम्य । समानता । वरावरी । हो (को०)। सह्यकर्म-सज्ञा पुं० [म० मह्य कर्मन्] मदद । सहायता । महारा। सहोढज-सज्ञा पु० [म० सहोढज] दे॰ 'सहोढ'-१ । सह्यवामिनी-सज्ञा पी० [सं०] दुर्गा की एक मूर्ति । सहोगीg+-सज्ञा स्त्री॰ [स०] सखी । सहेली। सह्यात्मजा-सा सी० [सं०] मह्य नामक पवनमे निकलनेवाली नदी। सहोत्थ-वि० [म०] जो सहज या स्वाभाविक हो [को०] । सहोत्थायी-वि० [म० सहोत्थायिन्] साथ साथ उठने या उन्नति सह्माद्रि-मज्ञा पुं० [सं०] दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध पर्वत । जो करनेवाला [को०] । बबई (महाराष्ट्र) प्रात में है। सहोदक-वि० [स०] साथ साथ तर्पण करनेवाला। दे० 'समा विशेष--पश्चिमीय घाट का वह भाग जो मलयाचल पर्वत के नोदक' (को०] । उत्तर नीलगिरी तक है, सह्याद्रि कहलाता है। पूना से वबई सहोदर'-सज्ञा पु० [सं०] [क्षी० सहोदरा] एक ही उदर से उत्पन्न जानेवाली रेल इसी को पार करती हुई गई है। शिवाजी प्राय सतान । एक माता के पुत्र । अपने शत्रुओं से बचने के लिये इसी पर्वतमाला मे रहा सहोदर'-वि० १ सगा । अपना । खास (क्व०) । २ जो एक माता उदर से पैदा हो। सह--सज्ञा पुं० [सं०] पहाड । पर्वत (फो०] । कावेरी को। करते थे।
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