सव्य ५०२२ सथीक होता है। ३ प्रतिकूल । विगढ़ । विनाफ। ४ अनुकूल । सशकना--वि० स० [मं० ग+हिं. ना (प्रत्य०)] १ णका- उपयुक्त । दक्षिण (को०)। ५ जो घृत मे मिचित न हो। युका होना। गशित होना । - मयमीत होना । धरना। शुष्क । रुखा (को०)। मणक्तिक-वि० [म०] च नयया । शनिवाली। सव्य-सज्ञा पु० १ यज्ञोपवीत । २ चद्र या मूयगहण के दम प्रकार सशब्द -वि० [सं०] १ ध्वपियुक्त । गब्द करता हमा। २ चिन्ता के ग्रासो मे एक प्रकार का ग्रास । ३ अगिरा के पुत्र का नाग कर कहा गया। जोरा से घोपिा । ३ नादयुक्त । नाद के जो ऋग्वेद के कई मनो के द्रप्टा थे। गाय (को०)। विशेष- कहते है कि अगिरा के तपस्या करने पर इन ने उनके सशयन - वि० [सं०] नमीपवर्ती । 'गन पगी का। घर पुत्र रूप में जन्म ग्रहण किया था, जिनका नाम सव्य पन। सगरीर-० [म०] १ शरीरमा। देवारी। मूत । २ प्रन्थि- ४ विष्णु। ५ अग्नि, जो किसी के मृत्युकाल मे दीप्त की युनि। ३ गैर मार। जाय (को०)। सशरक'-वि० [म०] जिमम गरक हो। गलयुक्न । सव्यचारी-सचा पु० [स० सव्यचारिन्] १ अर्जुन का एक नाम । सशक-पुक प्रकार मत्स्य [को०] । दे० 'सव्यसाची' । २ अर्जुन वृक्ष । कोह वृक्ष । सशत्य'- T पुं० [म.] गेठ । मालू । सव्यजातु-संशा पु० [स०] युद्ध का एक ढग (को॰) । सशल्य-पि० १ गल्पमा । कांटेदार । २ कोटे या नोकदा अन्वी सव्यथ-वि० [स०] १ पीडा या व्यथा से ग्रस्त । २ शोकातुल । गे विधा त्रा। कठिन । मुगिन । काटमय [को०)। दु यान्वित [को०)। राशत्यवान-सभा पुं० [सं०] द्रण गेग ताका भेद । सव्यपेक्ष-वि० [स०] अामरा या अपेक्षायुक्त । किमी पर निगर विशेप-टे यागि जाने से यह प्रण उपन होता है। या अवलबित (को०] । रममे विद्ववान में राजन राती है और पालानर म वह पक सव्यवाहु-सज्ञा पुं० [सं०] वाएं हाथ से लडने का एक तरीगा (को०] । जाता है। सव्यभिचार-सज्ञा पु० [स०] हेत्वाभास का एक भेद । सशत्या--सशा नी [मं०] नागदती। हाथी पुरी। सव्यसाची--सज्ञा स्त्री० [सं० सव्यसाचिन्] अर्जुन । सावी-सरा पुं० [2] माना जीरा । कृष्ण जोक। विशेप--कहते है कि अर्जुन दाहिने हाथ से भी तीर चला मयाते सशस्त्र-वि० [मं०] १ अन्वयुका । शन्नमज्ज। हथियागे से लग। थे और बाएं हाथ से भी, इसी लिये उनका यह नाम पठा। २ जिसमे शम्बी, हथियागे का उपयोग हुआ हो [फो०] । सव्यभिचरण--वि० [सं०] व्यभिचारि भाव से युक्त [को०] । सशस्य-वि० [स०] १ अन्न ने युक्त । २ जिनमे अनाज पैदा हो । सव्यात-सञ्ज्ञा पुं० [सं० सव्यान्त] युद्ध करने का एक प्रकार (को०) । उपजाऊ सव्याज--वि० [स०] १ व्याज या छद्मयुक्त । २. कपटी। धूतं । सशम्या-नया सी० [40] नागपनी को०] । चालवाज [को०)। राशाक-गश पुं० [सं०] नवरा । यादी । सव्यापार-वि० [स०] काम में लगा हुमा [को०] । सशाद्वल-वि० [सं०] हरी हरी घामो ने पूर्ण [को०] । सव्येतर--वि० [स०] दाहिना [को०] । राशुक्र-वि० [म०] दीप्नियक्त । नगरदार ०] । सव्येष्टा-सी० पु० [स० सव्येष्ट] दे० 'सव्येष्ठ । सगूक'-वि० [०] हूँवाला (को० । सव्येष्ठ-मज्ञा पुं० [सं०] सारथी । सगूक'-मशा पुं० ईश्वर विश्वासी । ग्रास्तिक [को॰] । सव्येष्ठा, सव्येष्ठाता-सहा पुं० [स० सव्येप्ठ, सव्येष्ठातृ] सारथी । दे० सशेप-वि० [सं०] जिनमे गेप हो । २ अपूर्ण । अधूग। 'सव्येष्ठ' को०)। सशोय-वि० [स०) सूजा हुया। सन्नए-वि० [स०] १ चोटल । प्रणयुक्त । २ घायल । ३ दोपयुक्त । सशोथपाक-सरा पुं० [सं०] एक प्रकार का नेत्र रोग । छिद्रयुक्त। सदोप [को०] । विशेप - इस रोग मे गाँवो मे से गांसू निकलते है और उनमे सनराशुक्र-सक्षा पू० [स०] आँख का एक रोग जिसमे आँस की पुतली पर सूई से किए हुए छोटे छेद के समान गहरी फूली खुजली तथा शोथ होता है। अांचे लाल भी हो जाती हैं । पडती है और आँखो से गरम आँसू निकलते है। मश्मश्रु'-वि० [सं०] श्मश्रुयुक्त । दाढी [ध्वाला । सवती-वि० [स० सव्रतिन्] १ व्रतयुक्त । २ ममान ढग से काम सम्मधु-मज्ञा सीवह स्त्री जिरो दाढी मूंछ उग आई हो यो०] । करनेवाला । समान रीतिरिवाज वाला (को। सश्रद्ध-वि० [सं०] १ श्रद्धायुक्त । आस्थावान् । २ विश्वास करने सबीड-वि० [स०] ब्रीडा या लज्जायुक्त । लज्जित [को०] । योग्य । सच्चा को । सशक-वि० [स० सशङ्क] १ जिसे शका हो। शकायुक्त । २ सभ्रम-वि० [स०] १ श्रमयुक्त । २ थका हुआ। ३ श्रमपूर्वक । भयभीत । डरा हुआ। ३ भयकारी। भयानक । ४. शका सश्रीक-वि० [सं०] १ समृद्धियुक्त । भाग्यशाली । २ शोभायुक्त । उत्पन्न करनेवाला। भ्रामक । सुदर (को०] ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२०२
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।