पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१९४

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सलजा सर्वास्तिवादी सर्वास्तिवादी-वि०, सद्या पु० [म० सर्वास्तिवादिन] मर्वास्तिवाद मत सर्पपक-सचा पुं० [स०] एक प्रकार का साँप । क माननेवाला वौद्ध। सर्पपकी--सज्ञा स्त्री० [म०] १ एक विपला कीडा । २ एक प्रकार सर्वास्त्र-वि० [म०] सब प्रकार के शस्त्रास्त्रो से युक्न । शस्त्रास्त्रो से का चर्म रोग (को०)। सज्जित किो०] । सर्पपतैल-मज्ञा पु० [स०] मरसो का तेल । सर्वास्त्रा--मज्ञा स्त्री० [स०] जैनो की सोलह विद्या देवियो मे से एक । सर्पपनान--सञ्ज्ञा पु० [सं०] सरसो का साग । सविस-सज्ञा स्त्री० [अ] १ नौकरी। चाकरी। २ सेवा । सुश्रूपा। सर्पपा--सज्ञा स्त्री० [स०] मफेद सरमो । परिचर्या । सर्पपारुण-सज्ञा पु० [म०] पारस्कर गृह्यसूत्र के अनुमार असुरो का सर्वीय-वि० [स०] १ सबका | जो सबसे सबद्ध हो । २ जो जन- एक गरण । साधारण के लिये उपयुक्त हो । सर्वोपयुक्त [को० । सर्षपिक--सज्ञा पु० [सं०] सुश्रुत के अन्मार एक प्रकार का बहुत सर्वे सज्ञा पु० [अ०] १ भूमि की नापजोख । पैमाइश । २ वह जहरीला कोडा जिसके काटने से अादमी मर जाता है। सरकारी विभाग जो भूमि को नापकर उसका नक्शा बनाता है। सर्पपिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [म०] १ एक प्रकार का लिग रोग । विशेष-इम रोग मे लिंग पर सरसो के समान छोटे छोटे दाने सर्वेयर-सज्ञा पुं० [अ०] वह जो सर्वे अर्थात् जमीन की नापजोख करता हो । पैमाइश करनेवाला। अमीन । निकल पाते हैं । यह रोग प्राय दुष्ट मैथुन से होता है। सर्वेश, सर्वेश्वर--सहा पुं० [स०] १ सवका स्वामी। सवका २ मसूरिका रोग का एक भेद । ३ सर्पपिक नाम का जहरीला मालिक । २ ईश्वर । ३ चक्रवर्ती राजा। ४ शिव । ५ एक कीड।। दे० 'सर्षपिक'। प्रकार की प्रोपधि । सर्पपी-मन्ना स्त्री० [म०] १ स्राविका । २ सफेद सरसो । ३ ममोला। सर्वेसर्वा-वि० [स० सर्व] १ वह व्यक्ति जिसे किसी मामले मे सव खजन पक्षी। ४ एक प्रकार के छोटे दाने जो शरीर पर कुछ करने का अधिकार हो । २ सर्वप्रधान क्र्ता धर्ता । निकल आते है। सर्वोत्तम-वि० [स०] सबसे उत्तम । जिससे अच्छा दूसरा न हो [को०] । सर्मों-सचा स्त्री॰ [हिं० सरसो] दे० 'सरसो' । सर्वोदय-सज्ञा पु० [स०] सभी के उदय या उत्थान की भावना से सहद-सज्ञा स्त्री० [हिं० सरहद] दे० 'सरहद' । आचार्य विनोबा भावे द्वारा प्रवर्तित स्वतन्त्र भारत का एक सघटन । सलबा नोन-सञ्ज्ञा पुं० [सलवा ? + हिं० नोन] कचिया नोन । सर्वोपकारी-वि० [स० सर्वोपकारिन्] सवका मददगार। जो सव काच लवरण। की सहायता करे। सल'-मक्षा पु० [सं०] १ जल । पानी। २ मरल वृक्ष । ३ एक सर्वोपरि-वि० [स०] सबसे ऊपर या बढकर । सर्वश्रेष्ठ । प्रकार का कीडा जो प्राय घास मे रहता है। इसे बोट भी सर्वोपाधि-समा सी० [सं०] वे गण जो सबमे साधारणत पाए जाते कहते हे। हो । सर्वसामान्य गुण [को॰] । सल-सचा स्त्री० [हिं०] १ मिंकुडन । सिलवट । २ तह । पर्त । सर्वोच-सज्ञा पुं० [सं०] १ सर्वागपूर्ण सेना। २ दे० 'सर्वाभिसार'। सलई-महा स्त्री॰ [स० शल्लकी] १ शल्लको वृक्ष । चौढ । वि० दे० ३ एक प्रकार का मधु या शहद । 'चोट' । २ चीड का गोद । कुदुर । सर्वोषध-सज्ञा स्त्री॰ [स०] दे० 'सर्वी पधि' । सलक-सन्चा पं० [अ०] चुकदर । कदशाक । सर्वोषधि--सक्षा स्त्री० [स०] आयुर्वेद मे ओपधियो का एक वर्ग जिसके सलक्षण-वि० [स] ममान लक्षणो से युक्त । २ चिह्न या अतगर्त दस जडी वृटियाँ हैं । लक्षणयुक्त (को०] । विशेष-राजनिघटु के अनुसार कुष्ठ, मामी, हरिद्रा, वचा, शैलेय, सलखपात-सञ्ज्ञा पुं० [स० शल्क+पद] कच्छप । कछुया। चदन, मुरा, रक्त चदन, कर्पूर और मुस्तक तथा शब्दचद्रिका वे अनुसार मुरा, मॉसी, वचा, कुप्ठ, शैलेय, रजनी द्वय, शटी सलगा-वि० [म० सलग्न] पूरा का पूरा । कुल । समग्न। जो टूटा चपक और मोथा इस वर्ग मे गिनाई गई है। न हो। उ०-कठिन समया कलिकाल को कुटिल दैया सलग स्पैया भैया काप दियो जात है।-कविता को०, भा० १, सर्पफ-सचा पु० [फा० सर्णफ, तुल० स० सर्पप] दे० 'सर्पप'। पृ० ३६०। सर्णप-सज्ञा पुं० [सं०] १ सरसो । २ सरसो भर का मान या तौल । सलगम--संज्ञा पुं० [फा० शलजम] दे० 'शलजम' । ३ एक प्रकार का विप । यो०-सर्पपकद । सर्पपकरण = सरसो का दाना । सर्पपतैल । सलगा सज्ञा स्त्री० [स० शल्लकी शल्लकी । सलई । चीढ । सर्पपनाल । सर्पपशाक = सरसो का साग । सर्पपस्नेह = सरसो सलग्नक वि० [स०] जो (ऋण) प्रतिभू अर्थात् जामिन देकर लिया का तेल। गया हो।को। सर्पपकद-सचा पु० [स० सर्पपकद] एक प्रकार का पौधा जिसकी सलज'--वि० [स० सलज्ज] दे० 'सलज्ज । जड़ विप होती है। सलज-सज्ञा पुं॰ [८० सल ( = जल)] पहाडी बरफ का पानी ।