पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१९१

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। सर्ववरिणका सर्वसाक्षी सर्ववणिका-सा स्त्री० [सं०] गभारी का पेड । सर्वशून्य--वि० [स०] १ बिलकुल खाली । पूर्णत रियत । २. जिसके सर्ववर्णी-वि० [स० सर्ववणिन्] विभिन्न वर्ण का । विभिन्न जाति या लिये सब शून्य या अस्तित्वविहीन हो [को०] । प्रकार का [को०। सर्वशून्यवादी--सज्ञा पुं० [सं०] बौद्ध । सर्ववल्लभा--सज्ञा स्त्री॰ [स०] कुलटा स्त्री। सर्वशून्या- सपा सी० [स०] दरिद्रता (जिममे सब कुछ गूना मूना सर्ववागीश्वरेश्वर- सज्ञा पुं॰ [स०] विष्णु (को०] । प्रतीत होता है)। सर्ववादी-मत्रा पुं० [स० सर्ववादिन् । शिव का एक नाम । सर्वशूर-सधा पुं० [म.] एक बोधिमत्व का नाम । सर्ववास-पशा पुं० [स०] शिव का एक नाम । सर्वश्री-वि० [स०] जहां सभी लोग श्रीयुक्त हो । अनेक व्यक्तियो सर्ववासी--सज्ञा पुं० [म० सर्ववासिन्] शिव [को०)। का नाम एक साथ आने पर मब के लिये एक बार प्रारभ मे सर्वविक्रयी--वि० [म० सवविक्रयिन्। सभी प्रकार की वस्तुओं को इसका प्रयोग होता है । जैसे, नर्वश्रा अमुक, फलां ग्रादि। यह बेचनेवाला। प्रयोग अाधुनिक है और अग्रेजी शब्द 'मेमर्म' का अनुवाद है । सर्वश्रेष्ठ--वि० [स०] सब मे वडा । सब से उत्तम । सर्वविख्यात, सर्वविग्रह-मज्ञा पुं० [म०] शिव का एक नाम । सर्वश्वेता-सहा स्त्री० [म०] १ एक प्रोपधि का नाम । २ एक सर्व विद्'---वि० [सं०] सर्वज्ञ । प्रकार का विपैला कीडा । सर्पपिक । (मुश्रुत)। सर्वविद–समा पु० [सं०] १ ईश्वर । २. प्रोकार । सवसगत-सचा पुं० [म० सर्वसहगत पप्टिक धान्य । माठी धान । सर्वविद्य--वि० [स०] ममग्न विद्याप्रो का ज्ञाता । सर्वज्ञ (को०] । सवसज्ञा सज्ञा स्त्री॰ [स०] एक बहुत बडी मख्या [को०)। सर्व विश्रभी-वि० [स० सर्वनिम्भिन्] सबका विश्वास करनेवाला। सर्वसभव-मज्ञा पुं० [स० सवसम्भव] वह जो सबका उत्पत्तिस्थान या प्रत्येक का विश्वास करनेवाला [को०)। मूल हो । [को॰] । सर्व वीर-वि० [स०] जिसके बहुत मे पुत्र हो । सर्वसमत-वि० [स० सर्वसम्मत] जिसके पक्ष में सभी लोय सहमत यौ०--सर्ववीरजित् = समस्त वीरो को जीतनेवाला । हो [को॰] । सर्ववेत्ता-वि० [स० सर्ववेतृ] सर्वविद् । सर्वज्ञ । सर्वसमति-सक्षा सो० [सं० सर्वसम्मनि] सभी सदस्यो की राय [को०) । सर्ववेद-वि० [स०] सब वेदो का जाननेवाला । पूर्णत ज्ञानवान् । सर्वसस्थ-वि० [स०] १ सर्वव्यापक । २ सर्वविनाशक (को०] । सर्ववेदस्-सज्ञा पृ० [स०] वह जो अपनी यज्ञ मे दान कर दे। सर्वसस्थान-वि० [स०] सव स्पो मे रहनेवाला । सर्वरूप । सर्ववेदस-सज्ञा पुं० [स०] १ सारी सपत्ति। सारा मालमता। २. सर्वसहार-मशा पु० [स०] काल । वह यज्ञ जिसमे समग्र सपत्ति दान कर दी जाय (को०)। ३ सर्वसहारी-वि० [म० सर्वमहारिन्] दे० 'सर्व समाहर' । दे० 'सर्ववेदस्' (को०)। सर्वसख-सधा पुं० [स०] सज्जन । सवका मिन्न । माधु पुरप [को०] । सर्ववेदसी-वि० [स० सर्ववेदमिन् ! जो अपनी समग्र सपत्ति का दान सर्वसन्नाह-सज्ञा पुं० [स०] पूरी तौर से सेना को एकन्न और शास्त्र- कर दे (को॰] । सज्ज करना। सर्ववेदी-वि० [स० सर्वबेदिन] जो सब कुछ जानता हो । सर्वज्ञ [को०]। सर्वसमता-सचा स्त्री० [स०] निष्पक्षता । समता। सर्ववेशी-सज्ञा पु० [स० सर्ववेशिन्] नट । अभिनेता [को०] । सर्वसमाहर-वि० [स०] सवका विनाश करनेवाला (को०] । सर्ववैनाशिक-सज्ञा पुं० [म०] आत्मा आदि सवको नाशवान् सर्वस-वि० [सं० सर्वस्व] दे० 'सर्वस्व' । माननेवाना । क्षणिकवादी । वौद्व । सर्वसर-सा पुं० [स०] मुँह का एक रोग जिसमे छाले मे पड जाते सर्वव्यापक-सशा पु० [म०] दे० 'मर्वव्यापी' । हैं तथा खुजली तथा पीडा होती है । सर्वव्यापी'-वि० [स० सर्वव्यापिन्] [वि० सी० सर्वव्यापिनी] सबमे विशेष-यह तीन प्रकार का होता है--वातज, पित्तज और रहनेवाला । सव पदार्थो मे रमणशीन । कफज । वातज मे मुख मे मुई चुभने को सी पीला होती है। पित्तज मे पोले या लाल रंग के दाहयुक्त छाले पटते हैं। कफज मे सर्वव्यापीर-सहा पु०१ ईश्वर । २ शिव । पीडारहित खुजली होती है। सर्वश-प्रव्य० [म० मवंशस्] १ पूरा पूग। २ समूचा । पूर्ण सर्वसह-समा पुं० [स०] १ वह जो सब कुछ सहन करे । सहनगील रूप मे। व्यक्ति । २ गूगल । गुग्गुल। सर्वशक्तिमान्'--वि० [स० सर्वशक्तिमत्] [स्रो० सर्वशक्तिमती] सब सर्वसहा-सहा त्री० [सं०] धरित्री । नर्वमहा पृथ्वी [को०] । कुछ करने की सामथ्र्य रखनेवाला। सर्वसाप्रत-सपा पुं० [स० नर्वनाम्प्रत] नवंद्र वर्तमान रहने का भार । सर्वशक्तिमान'--सज्ञा पुं० ईश्वर । सर्वव्यापकता को०)। सर्वशातिकृत्--सभा पु० [सं० सर्वशान्तिकृत्] दुप्यत के पुत्र भरत का सर्वसाक्षी-सज्ञा पुं० [स० सर्वमानिन्१ वह वो सब कुछ देवता एक नाम को। हो । ईश्वर । परमात्मा। २ अग्नि । ३ वायु ।