पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१९०

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सर्वबंधविमोचन सनलौह सर्ववधविमोचन-ज्ञा पुं० [सं० सर्वबन्धविमोचन] सभी वधनो से सर्वयनी-वि० [स० सर्वयन्त्रिन्] सभी औजारो से युक्त (को०] । छुडानेवाला-शिव [को०] । सर्वयोगी -सञ्ज्ञा पु० [म० सर्वयोगिन् । शिव का एक नाम । सर्ववल-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] एक बहुत वटी सख्या । (बौद्ध)। सर्वयोनि -सज्ञा पु० [म.] सव का मूल । सव की जड (को०] । सर्ववाहु-पक्षा पु० [स०] युद्ध करने को एक विधि । सवरत्नक -सञ्ज्ञा पु० [२] जन शास्त्रानुसार नी निधियो मे एक । सर्वबोज-मज्ञा पु० [१०] सवका बीज या मूल (को०] । सवरत्ना-सचा मी[म०] सगीत मे एक श्रुति [को०] । सर्वभक्ष-सज्ञा पुं० [म०] सब कुछ खा डालनेवाला, अग्नि । आग। सवरस--सज्ञा पुं० [स०] १ राल । धूना। करावल । २. लवण । सर्वभक्षा-मन्ना स्त्री॰ [म०] वकरी । छागी। नमक। ३ एक प्रकार का वाजा । ४ सब विद्यायो मे सर्वभक्षी'-सज्ञा पुं० [स० सर्वभक्षिन्। [वि॰ स्त्री० सर्वभक्षिणी] निपुण व्यक्ति । विद्वान् व्यक्ति । ५ सभी प्रकार के रस, भोज्य पदाय आदि । ६ वह जो सब रसो से युक्त हो। सबकुछ खानेवाला। सवरसा-सचा त्री० [सं०] लाजा का माड । धान को खीलो का सर्वभक्षी -सज्ञा पुं० अग्नि। मॉड। सवभवोद्भव-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] सूर्य । सवरसोत्तम--सचा पु० [स०] नमक । लवण । सर्वभाव -सक्षा पुं० [स०] १ सपूर्ण सत्ता। सारा अस्तित्व । २. सवरास-पक्षा पु० 11 १ राल । करायल । धूना। २ एक प्रकार सपूर्ण आत्मा । ३ पूर्ण तुष्टि । मन का पूरा भरना । का वाद्य [को०। सर्वभावकर-सञ्ज्ञा पु० [स०] शिव [को०] । सर्वरी-सचा सो॰ [स० शर्वरो] दे० 'शर्वरी'। सर्वभावन-मज्ञा पु० [म०] १ वह जो सब का उत्पादक ।। सब सवरोस पु-सञ्चा पु० [सं० शर्वरोश] दे० 'शर्वरीश'। की भावना करनेवाला । २ महादेव । शिव । सवरूप-वि० [सं०] जा सब रूपा का हा । सबस्वरूप । सर्वभूत'- पुं० [स०] सब प्राणो या सृष्टि । चराचर । सवरूप-सञ्ज्ञा पु० एक प्रकार को समाधि । सर्वभूत'-वि० जो सब कुछ हो या सब मे हो । सर्वस्वरूप । सवर्था सद्धि-प्रज्ञा ० [म.] जैना क अनुमार सव से ऊपर का सर्वभूतगृहाशय-वि० [म०] सबके हृदय मे निवास करनेवाला (को॰) । अनुमार या स्वगा के ऊपर का लोक । सर्वभूतपितामह-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] ब्रह्मा । प्रजापति [को०] । सवलक्षए-झा पु० [स०] सभी शुभ लक्षण या चिह्न (को०] । सर्वभूतहर :-सञ्ज्ञा पु० [सं०] शिव का एक नाम (को०)। सव नाक्षत-मज्ञा पु० [म.] शिव का एक नाम (को०] । सर्वभूतहित 1-सञ्ज्ञा पु० [स०] सब प्राणियो की भलाई । सवला-सचा स्रो० [स०] लाहे का डडा । सर्वभूमिक-सहा पु० [स०] दारचीनी। गुडत्वक् । सर्वलालस-सद्या पुं० [स०] शिव [को॰] । सर्वभृत्-वि० [स०] जो सबका पालन पोषण करे [को॰] । सीलग--व० [स० सर्वलिङ्ग] जो प्रत्येक लिंग मे हो। (विशेषण) सर्वभोग-सञ्ज्ञा पु० [सं०] कौटिल्य के अनुसार वह वश्यमित्र जो जो प्रत्येक लिंग (पु०, खी० ओर नपुसक) मे होता है। सेना, कोश तथा भूमि से सहायता करे । सर्वलिंगी'-वि० [स० सालगिन्। [वि० ना० सवलिंगिनो] सव सर्वभोगसह-सज्ञा पु० [म०] कौटिल्य के अनुसार सब प्रकार से प्रकार क ऊपरा आडवर रखनवाला । पापड़ी। उपयोगी मित्र सब प्रकार के कामो मे समर्थ मिन्न । सर्वलिंगी-सञ्ज्ञा पु० [सं०] नास्तिक । सर्वभोगी--वि० [स० सवभोगिन्] [वि॰ स्त्री० सर्वभोगिनी] १ सव सबली-मचा लो० [स०] छाटा लौहदड या तोमर । का आनद लेनेवाला । २ सब कुछ खानेवाला । सवलाक-शा पु० [भ] समा लाफ । चराचर जगत् को०] । सर्वमगला'-वि० [स० सर्वमडगला] सब प्रकार का या सवका मगल यौ०-सवलाककृत् = शव का एक नाम । सबलाकगुर - विष्णु । करनेवाली। सवलाकापतामह - ब्रह्मा जा सबक पितामह ह । सवलाक- सर्वमगला-सद्या स्त्री० १ दुर्गा । २ लक्ष्मी। प्रजापति, सवलाकभृत् = द० सवलाककृत्'। मवलाकमहेश्वर = (१) शिव । शकर । (२) विष्ण का एक नाम । सर्वमलापगत- सञ्चा पु० [स०] एक प्रकार को समाधि [को॰] । सर्वलोकेश, सवलोकेश्वर-नशा पु० [सं०] १ शिव । २. ब्रह्मा । सर्वमासाद-वि० [म०] सभी प्रकार के मास का भक्षण करनेवाला ३ विष्णु । ४ कृष्ण। [को०] । सर्वलोचन--सञ्ज्ञा पुं॰ [स] सूय । सर्वमूल्य-सज्ञा पुं० [स०] १ कौडी। कपईक। २ कोई छोटा सिक्का। सवलोचना-सचा बा [0] एक पौवा जो आपध के काम मे सर्वमूषक -सचा पु० [स०] (सवको मूसने या ले जानेवाला) काल । आता है । गधनाकुलो। सवमेव--पञ्चा पुं० [स०] १ सार्वजनिक सन्न । २ एक उपनिषद् का सवलोह-सवा ५० [सं०] १. तीर । वाण। २ वह जो पूर्णत. लाल नाम (को०)। ३. यज्ञ (को०)। ४ एक प्रकार का सोमयाग वर्ण का हो (को०] । जो दस दिनो तक होता था। सर्वलौह-सथा पु० [स०] १. तावा । तान । २. वाण । तीर ।