- मयूर पक्षी। की चाल । सर्पकंकालिका ५००५ साक्षी धरित्री । सर्पमणि = वह मणि या रत्न जो सर्प के सिरपर पाया सर्पपुष्पो- सना त्री० [म०] १ नागदती । २ वाँझ खेखसा । जाता है। सर्पविद् = सँपेरा । सपविवर = सॉप का विल। सर्पप्रिय-सधा पु० [म०] चदन । सर्पवेद = दे० 'सर्प विद्या'। मर्पव्यापादन = (१) साँप द्वारा सपफरणज-सज्ञा पु० [स०] सर्पमरिण । काटे जाने से मरना। (२) सर्प का व्यापादन । साँपो को सपफेरण-सञ्ज्ञा पु० [५०] अफीम । अहिफेन । मारना। सर्पबध-मचा पुं० [म० सपंपन्ध कुटिल या पेचीली चाल । ३ ज्योतिप मे एक प्रकार का बुरा योग । ४ नागकेसर । ५ सपबेलि-मचा ली [स०] नागबल्लो । पान । ग्यारह स्द्रो मे से एक। ६ एक म्लेच्छ जाति । ७ सरण । सपंभक्षक-सञ्ज्ञा पु० [स०] १ नकुल कद । नाकुली कद । २ मोर । गमन । को०)। ८ वक्र या कुटिल गति (को०)। ६ आश्लेपा नक्षत्र (को०)। १० एक राक्षस (को॰) । सर्पभुक्, सर्पभुज---सञ्चा पुं० [स०] १ नकुल कद । २ मोर। मयूर । सर्पककालिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० सर्पफडालिका] सर्प लता। ३ मारस पक्षो । ४ एक प्रकार का बहुत बडा साप (को॰) । सर्पकाल--सञ्चा पु० [स०] सॉपो का काल, गरुड । उ.-सर्पकाल सर्पमाला--सञ्ज्ञा स्त्री० [स०) सरहँटो । साक्षी । कालीगृह आए। खगपति बलि वलात सो खाए |--गोपाल सर्पयज्ञ, सर्पयाग-सञ्ज्ञा पु० (म०] एक यज्ञ जो नागो के सहार के (शब्द०)। लिये जनमेजय ने किया था। सर्पगधा--सज्ञा स्त्री॰ [म० सर्पगन्धा] १ गध नाकुली। २ नकुल कद । सर्पराज--सज्ञा पु० [स०] १ सौ के राजा, शेषनाग । २ वासुकि । नाकुली । ३ नागदवन नामक जडी। सर्पलता-सक्षा स्त्री० । स०] नागवल्ली । पान । सर्पगति--मज्ञा स्त्री० [स०] १ सर्प की गति । २ कुटिल गति । कपट सर्पवल्लो-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] नागवल्ली । पान । सपविद्या-सज्ञा श्री० [स०, साँप को पकडने या उन्हें वश मे करने की विद्या। सर्पगृह-सञ्ज्ञा पुं० [स०] साँप का घर । वाँवी । सपंघातिनी-सज्ञा स्त्री॰ [स.] सरहँटी । सर्पाक्षी । सर्पव्यूह-सज्ञा पु० [स०] सेना का एक प्रकार का व्यूह जिसकी सर्पच्छत्र, सर्पच्छत्रक-सज्ञा पु० [स०] छनाक । खुमी । कुकरमुत्ता । रचना सर्प के आकार की होती थी। सपैछिद्र--सचा पु० [स०] सर्प+ हिं० छिद्र] साँप का विल । बाँबी । सपेशीपं-सञ्ज्ञा पु० [म.] १. एक प्रकार की ईंट जो यज्ञ की वेदी बनाने के काम मे पाती थी। २ तात्रिक पूजा मे हाथ और सर्पए - सन्ना पु० [स०] [वि० सर्पित, सर्पणीय] १ रेगना । सरकना। पजे की एक मुद्रा । २ धीरे धीरे चलना। ३ छोटे हुए तीर का भूमि से लगा हुया जाना । ४ कुटिल या वक्र गति (को॰) । सर्पसत्र-सज्ञा पु० [म०] दे० 'सर्पयज्ञ' । सर्पसती-सला पु० [मं० सर्पसदिन्] राजा जनमेजय का एक नाम सर्पततु--सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] बृहती का एक भेद । जिन्होने सर्पयज्ञ क्यिा था। सपैतृण-सना पु० [स०] नकुन कद । सर्प मुगधा, सपनुगधिका-पञ्चा स्त्री॰ [स० सर्पसुगन्धा, सर्पसुगन्धिका] सपंदडा-मञ्ज्ञा स्त्री० [स० सर्पदण्डा] सिंहली पीपल । सपगवा । गधनाकुली। सर्पदडी--सज्ञा स्त्री० [सं० सर्पदण्डो] १ गोरक्षी। गोरख इमली। सर्पमहा-मज्ञा स्त्री० [स०] सरहेंटी । सर्पाक्षी । २ गँगरेन । नागवला। सपमारो व्यूह-सञ्ज्ञा पुं० [म०] कौटिल्य के अनुसार वह भोगव्यूह सपंदता--सचा स्त्री० [स० सर्पदन्ता] सिंहली पीपल । जिमम पक्ष, कक्ष तथा उरस्य विपम हो । सर्पदती-सज्ञा स्त्री॰ [स० सर्पदन्ती] नागदती। हाथी श दी। सर्पहा'-रज्ञा पु० [स० सर्पहन्] १ सर्प का मारनेवाला। नेवला । सर्पदष्ट्र-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ साँप का दत । २ जमालगोटा । २ गरुड (को०)। सर्पदष्ट्रा -सशा स्त्री० [स०] दाती। उदु वर पर्णी । सपहार-पञ्चा जी० [स०] ग डेनी । सरहेंटी । साक्षी । सर्पदष्ट्रिका-सज्ञा स्त्री० [१०] अजशृगी। विपाणी [को०) । सपांगो--सक्षा १० [स० सपद्विगी] १ सरहॅटी। २ सिंहली पीपल । ३ नकुल कद। सपैदष्ट्री-सञ्ज्ञा सी० [स०] १ वृश्चिकाली। २ दती। उदु वर- सात-सञ्ज्ञा पुं० [स० सन्ति] गरुड का एक पुत्र [को॰] । पर्णी । ३ विठुा । वृश्चिका । सर्पा--सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १ साँपिन । सर्पिणी । २ फरिणलता। सर्पदमनी---सञ्चा सी० [स०] वध्या कर्कोटकी (को०] । साक्ष-सञ्ज्ञा पु० [म.] १ रुद्राक्ष। २ साक्षी। सर्पद्विट, सपद्विष-सन्ना पुं० [स०] मोर । मयूर । सरहँटी। सर्पनेना--सक्षा पु० [स०] १ सपक्षी । २ गधनाकुली । साक्षी-सहा खी० [स०] १ सरहँटी। २ गधनाकुली। ३ सर्पपति-सज्ञा पुं० [सं०] शेषनाग । सपिणी । ४. श्वेत अपराजिता । ५. शखिनी। हिं० श. १०-२२ शिवाक्ष ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१८५
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