असवाव। सरोरक्ष, सरोरक्षक ५००३ सर्गबंध सरोरक्ष, सरोरक्षक-- सज्ञा पुं॰ [स०] जलाशय की रक्षा करनेवाला सर्का-सज्ञा पु० [अ० स]ि १ चोरी। २ दूसरे के भाव या लेख व्यक्ति को०। को चुरा लेने की क्रिया । साहित्यिक चोरी । सरोरुह-सज्ञा पुं० [स०] कमल । सर्कार--सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'सरकार' । सरोला-सज्ञा पु० [देश०] एक प्रकार की मिठाई । सारी -वि० [हिं०] दे० 'सरकारी' । विशेप-यह पोस्ते, छुहारे, बादाम अादि मेवो के साथ मैदे को सर्किट-सञ्ज्ञा पु० [अ०] १ मडल । परिधि । परिणाह । घेरा । घी और चीनी मे पकाकर बनाई जाती है । २ परिभ्रमण । प्रावर्तन । सरोवर--सज्ञा पु० [स०] [स्त्री० सरोवरी] १ तालाव । पोखरा । यो०-सर्किट हाउस = दे० 'सक्युट हाउस' । २ झील । ताल । सर्किल-सञ्ज्ञा पुं० [अ०] कई महल्लो, गाँवो या कसबो आदि का सरोवरी-सज्ञा स्त्री० [स०] पुष्करिणी। छोटी तलया। सरसी। समूह जो किसी काम के लिये नियत हो । हलका । जैसे,-- सर्किल अफसर, सर्किल इन्सपेक्टर । २ घेरा । वृत्त । उ०-नाभि सरोदरी यौ' त्रिवली की तरगनि पैरत ही दिन- राति है। -भिखारी ग्र०, भा॰ २, पृ० १२६ । सक्युट हाउस-सज्ञा पु० [अ०] जिले के प्रधान नगर मे वह सरकारी सरोविंदु-सज्ञा पुं० [स० सरोविन्दु] एक प्रकार का वैदिक गीत । मकान या कोठी जहाँ, दौरा करते हुए उच्च राज्य कर्मचारी सरोष-वि० [स०] क्रोधयुक्त । कुपित। उ०-सुनि सरोप भूगुनायक सऍलर-मचा पु० [अ०] १ गश्ती चिट्ठी । २ सरकारी प्राज्ञापन या बडे अफसर लोग ठहरते हैं । सरकारी कोठी । आए। बहुत भॉति तिन आँखि देखाए ।-मानस, १२६३ । जो दफ्तरो मे घुमाया जाता है। ३ वह पत्र, विज्ञप्ति या सरोसg- वि० [स० सरोप] दे० 'सरोप' । सूचना जो बहुत से व्यक्तियो के नाम भेजी जाय। गश्ती सरोसामान-सज्ञा पु० [फा० सर+4+ सामान] सामग्री। उपकरण । चिट्ठी। सर्वां--वि० [१०] ऋक्षयुक्त । नक्षत्रमडित । नक्षत्रयुक्त [को०] । सरोही --सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० सिरोही] दे० 'सिरोही। सर्ग-सना पु० [स०] १ गमन। गति । चलना या बढना । २. सरौ'--सज्ञा पु० [स० शराव] १ कटोरी। प्याली । २ ढक्कन । ससार । सृष्टि । जगत् की उत्पत्ति । ३ वहाव । झोक । ढकना। प्रवाह । ४ छोडना। चलाना। फेंकना । सरौ-सज्ञा श्री० [हिं० सरो] एक वृक्ष विशेष । दे० 'सरो' । अस्त्र । ६ मूल । उद्गम। उत्पत्ति स्थान । ११ प्रयत्न । मरौट-सक्षा स्त्री० [हिं० सिलवट] दे॰ 'सरौंट' । चेष्टा । १२ सकल्प। १३ किसी ग्रथ (विशेपत काव्य) सरीता-सञ्ज्ञा [स० सार (= लोहा) + पत्न, प्रा० सारवत्त] [खी. का अध्याय । प्रकरण । परिच्छेद। उ०-प्रथम सर्ग जो सेप अल्पा० सरौती] सुपारी काटने का औजार । रह, दूजे सप्तक होइ । तीजे दोहा जानिए सगुन विचारव सोड। विशेप-यह लोहे के दो सडो का होता है । ऊपर का खड गँडासी -तुलसी ग्र०, पृ० ६७ । १४ मोह । मूर्छ। १५. शिव का की भांति धारदार होता है और नीचे का मोटा, जिसपर एक नाम । १६ धावा। हमला (सेना का)। १७ स्वीकृति सुपारी रखते है, दोनो खडो के सिरे ढीली कील से जुड़े रहते (को०)। १८ युद्धोपकरण, शस्त्रादि का उत्पादन (को॰) । हैं, जिससे वे ऊपर नीचे घूम सकते है। इन्ही दोनो खडो के १६ रुद्र का एक पुत्र (को०)। २० जीव । प्राणी (को०)। २१. वीच मे रखकर और ऊपर से दबाकर सुपारी काटी जाती है । मलत्याग (को०)। सरौती-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० सरौता] छोटा सरौता । सर्ग-सज्ञा पु० [स० स्वर्ग] दे० 'स्वर्ग' । सरीती-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० पत्नी] एक प्रकार की ईख जिसकी छड यौ०--सर्गपताली । पतली होती है। सर्गक--वि० [स०] सर्जन करनेवाला । निर्माता को०] । विशेष-इस ईख की गाँठे काली होती है और सब तना फेद सर्गकर्ता-सथा पुं० [स० सर्गकर्तृ] सृष्टि निर्माता । स्रष्टा [को०] । होता है। सर्गकालीन-वि० [स०] जो सृष्टिनिर्माण के काल का या उससे सवद्ध सर्क-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ मन । चित्त । २ वायु । ३ एक प्रजापति हो (को॰] । सर्गक्रम-सज्ञा पु० [स०] सृष्टि का सिलसिला । सर्ग का क्रम [को०] । का नाम । ४ ब्रह्मा (को०)। सर्करा-सझा पी० [स० शर्करा] दे० 'शर्करा'। उ०-ज्यो सर्गपताली-सज्ञा पु० [स० स्वर्ग+पाताल+हिं० ई (प्रत्य॰)] १. सर्करा मिलै सिकता महँ वल ते न कोउ विलगावै ।-तुलसी जिसकी आँखे ऐची हो । ऐंचाताना । २ वह बैल जिसका एक सीग ऊपर की ओर उठा हो और दूसरा नीचे की ओर ग्र०, पृ० ५४२ । सर्कस-सज्ञा पुं० [अ०] १ वह स्थान जहाँ जानवरो का खेन और झुका हो। शारीरिक शक्ति का करतब दिखाया जाता है। क्रीडागन। सर्गपुट-सज्ञा पुं॰ [सं०] शुद्ध राग का एक भेद । २ वह मडली जो पशुप्रो तथा नटो को साथ रखती है और सर्गवध-वि० [स० सर्गबन्ध] जो कई अध्यायो या सगो मे विभक्त हो। खेल कूद के तमाशे दिखाती है । जैसे,--सर्गवघ काव्य। ५ छोडा हुआ
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१८३
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