पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१७९

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सपना ४६९ सराहना' सरापना-क्रि० सं० [सं० श्राप, हिं० सराप+ना (प्रत्य॰)] १ गिरा गैनी । कच्छप अध अामन अनूप अनि डाँगे शेष पनी । शाप देना। बददुपा देना। अनिष्ट मनाना। कोसना । मही सराव मप्न नागर घृत वाती शैल घनी ।-गू (शब्द॰) । २. बुरा भला कहना । गाली देना। ४. एक तील जो ६४ तोले की होती थी। सरापा-अव्य० [फा०] आपाद मस्तक । पूरा का पूरा । सपूर्ण । यो०--सराव सपुट । यौ०--सरापानाज = नाज नखरे से पूर्ण या भरा हुा । मरापा सराव-वि० [स०] ध्वनियूक्त । गु जित । शब्दायमान [को०] । शरारत-शरारत भरा। सराव--सा पु० १ यावरण । ढक्कन । २. कसोग । गगाव (को०] । सरापा-सज्ञा पुं० १ नखशिख । नख से शिख तक सर्वाग। २ नव सराव'-सा स्त्री॰ [दश०] एक प्रकार की पहाडी बकरी । शिख का वर्णन [को०] । सरावग-समा पु० [स० श्रावक | जैन। मरावगी। उ०-3 सीन सराफ-सज्ञा पुं० [अ० सर्राफ] १ रुपए पैसे या चांदी सोने का लेन विलसत विमल तुलसी तरल तरग। स्वान नरावग के कई देन करनेवाला महाजन । २ सोने चाँदी का व्यापारी। ३ लघुता लहै न गग।-तुलसी ग्र०, पृ० १३५ । सोने चांदी के वरतन, जेवर आदि का लेन देन करनेवाला । सरावगी-सहा पु० [स० धावक] श्रावक धर्मावलबी। जैन धर्म ४. बदले के लिये रुपए पैसे रखकर बैठनेवाला दुकानदार । माननेवाला। जैन। यौ०---सराफखाना = जहाँ सराफे का काम होता हो । सराफा । विशेष-प्राय इस मत के अनुयायी अाजकल वश्य ही अधिक सराफा-सञ्ज्ञा पुं० [अ० सर्राफ] १ सराफी का काम । रुपए पेमे या पाए जाते है। सोने चांदी के लेन देन का काम । २ वह स्थान जहाँ सराफो सरावनां-सञ्चा पु० [म० सरण, हिं० सरना] जुते हुए खेत की मिट्टी की दूकानें अधिक हो । सराफो का बाजार । जैसे,—अभी बरावर करने का पाटा । हेगा। मराफा नही खुला होगा । ३ कोठी । बक । सरावसपुट-सहा पु० [स० शराव+ सम्पुट। रमौषध फूंकने के लिये क्रि० प्र०-खोलना। मिट्टी के दो कसोरा का मुंह मिलाकर बनाया हुआ एक बरतन । सराफी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० सराक+ई (प्रत्य॰)]१ सराफ का काम । सराविका-ज्ञा स्त्री० [स० शराविका] एक प्रकार की फुसी। दे० चांदी सोने या रुपए पैसे के लेन देन का रोजगार । २ वह 'शराविका'। वर्णमाला जिसमे अधिकतर महाजन लोग लिखते है । महाजनी। मुडा । ३ नोट रुपए आदि भुनाने का बट्टा जो भुनानेवाले को सरास-सक्षा पुं० [2] तुप । भूसी। देना पड़ता है। सरासन-मश्या पु० देश० [सं० शरासन] दे० 'शरासन' | उ०--(क) कटि निपग कर वान सरासन ।-मानम, ६।११। (ख) यौ०--सराफी पारचा हुडी। (ख) लछिमन चले क्रुद्ध होइ वान सरामन हाय ।--मानस, सराब'-सचा पु० [अ०] १ मृगतृष्णा । २ धोखा देनेवाली वस्तु । ६॥५१॥ ३ धोखा । वचन । सरासर'----वि० [सं०] इधर उधर घूमनेवाला (को॰] । सराब-सज्ञा स्त्री॰ [फा० शराव दे० 'शराब' । सरासर-अव्य० [फा०] १ एक सिरे से दूसरे सिरे तक । यहा में सरावोर-वि० [म० स्राव + हिं० बोर] बिलकुल भीगा हुआ। वहा तक | २ विलकुल। पूणतया । जस,-तुम सरामर भूठ तरबतर । नहाया हुग्रा । प्राप्लावित । कहत हो । ३ साक्षात् । प्रत्यक्ष । सराय-पञ्चा बी० [फा०] १ रहने का स्थान घर। मकान | २. सरासरी'-तथा क्षा [फा०] १ आसानी। फुरतो। २. शात्रता। यानियो के ठहरने का स्थान । मुसाफिरखाना । जल्दी। ३ मोटा अदाज । स्थूल अनुमान। ४ बकाया लगान मुहा०--सराय का कुत्ता अपने मतलव का यार । स्वार्थी । मतलवी । सराय का भठियारी= लडाकी ओर निर्लज्ज स्त्री। क्रि० प्र०—करना ।—होना । सराय--सचा पुं० [देश॰] गुल्ला नाम का पहाडी पेड। सरासरी-क० वि० १ जल्दो म। हडबडी में। जमकर नही । विशेष-यह वृक्ष बहुत ऊँचा होता है और हिमालय पर अधिक इतमोनान से नही । २ माट तार पर । स्यूल रूप स । होता है। इसके होर को लकडो सुगधित और हलको होती है सराह पु-या बो[सं० श्लाघा वडाई। प्रशमा । ताराक। श्ताधा। और मकान आदि बनवाने के काम म पाती है। सराहत-सा स्वी० [अ० स्पष्ट कहना। विवृत करना या व्याया सरार-सक्षा पुं० [देश०] घोडा वेल नाम को लता जिसको जड विलाई कद कहलाती है । दे० 'घोडा वेल'। सराहना'-क्रि० स० [म० श्लाघन] १. तारीक करना । का. सराव-सञ्ज्ञा पुं० [स० शराव) १ मद्यपान । प्याला। (शराव करना । प्रशसा करना। उ०-(क) ऊँचे चित मसाहयत पीने का) । २ कसोरा । कटोरा । ३. दीया। उ०-हरि जू गिरह कबूतर लेत । दृग झलकित मुकलित वदन तन पुलाकत की मारती बनी। अति विचिन्न रचना रचि राखी परति न हित हेत ।-विहारी (शब्द०) । (ख) जे फल देखी सामय का दावा। करना।