पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१७८

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की स्त्री। 1 सरस्वान ४९९८ सराप सरम्वान्-सज्ञा पु० १ मागर । समुद्र । २ तालाब | सरोवर । ३. एक पौधा जिसकी छड पतली, चिकनी और विना गांठ की नद । महानद । ४ भैमामहिप । ५ वाय [को०] । होती हे । २ गडनी । सर्पाक्षी। सरहग-सच्चा पु० [फा०] १ सेना का अफसर । नायक । कप्नान । सरहरी -- सज्ञा स्त्री० [हिं० सरहरा] सर्दी या जुकाम की दशा मे गले २ मल्ल । पहलवान | ३ जबरदस्त । बलवान् । ८ वह जो मे होनेवाली खराश । सुरमुरी । सुरहुरी । किमी से न दवता हो । उद्दड । सरकश । ५ पैदल सिपाही । सरहस्य-वि० [सं०] १ गूढ । भेदपूर्ण। २ उपनिपद् के साथ युक्त । ६ चोवदार । ७ कोतवाल । ३ दार्शनिक शिक्षा या पराविद्या से युक्त को०] । सरहगी- सज्ञा स्त्री० [फा०] मिपहगिरी। सेना की नौकरी । २. सरहिंद - सचा पुं० [फा० सर+ हिंद] पजाव का एक स्थान । उद्दडता। ३ वीरता । ४ पहलवानी। सराँग-सा स्री० [सं० शलाका, लोहे की एक मोटी छड जिसपर सरह-सहा पु० [म० शलभ, प्रा० सरह ] १ पतग। फतिंगा । २ पीटकर लोहार बरतन बनाते है। टिड्डी। उ०—कटक सरह अस छट ।-जायसी (शब्द॰) । सरा'-सहा श्री० [स० शर] चिता। उ०-चदन अगर मलयगिर सरहज-सज्ञा ली० [म० श्यालजाया] माले की स्त्री। पत्नी के भाई काढा । घर घर कीन्ह सरा रचि ठाटा।-जायसी (शब्द०)। सरा--सञ्ज्ञा रूकी 15०1१ गति । सचलन। २ निर्भर। प्रपात । सरहटी-सज्ञा स्त्री॰ [स० सर्पाक्षी] सर्पाक्षी नाम का पौधा । नकुलकद । ३ प्रसारिणी लता (को०)। विशेप-यह पौवा दक्षिण के पहाडो, आसाम, बरमा और लका सरा-तज्ञा पुं० [अ०J पाताल । आदि मे वहुत होता है। इसके पत्ते समवर्ती, २ से ५ इच सरा'--सज्ञा स्त्री॰ [फा०] १ सराय । मुसाफिरखाना। २ घर । तक लवे तथा १ से १॥ इच तक चौडे, अडाकार, अनीदार मकान । ३ जगह । स्थान । और नुकीले होते हैं । टहनियो के अत मे छोटे छोटे सफेद रग सरा-वि० [फा० सरह] वेमेल । खालिस । खरा [को० । के फल आते है। इसके बीज वारीक तथा तिकोने होते है। सरहटी स्वाद मे कुछ खट्टी और कडवी होती है। कहते मरा-सशा सी० [देणी] माला । नक् ।-देशी०, ८१२ । हे कि जव सॉप और नेवले मे युद्ध होता है, तव नेवला अपना सराई–सरा स्त्री० [स० शलाका] १ शलाका। सलाई । २ सरकडे की पतली छडी। विप उतारने के लिये इसे खाता है। इसी से हिंदुस्तान और सिहल आदि मे इसकी जड साँप का विप उतारने की दवा सराई-सज्ञा स्त्री० [स० शराव (= प्याला)] मिट्टी का प्याला या समझी जाती है। इसकी छाल, पत्ती और जड का काढा पुष्ट दीया । सकोरा। होता है और पेट के दर्द मे भी दिया जाता है । सराई-[फा० सराचह( = एक पहनावा)] रायजामा । मरहत-सज्ञा पु० [देश॰] खलिहान मे फैला हुआ अनाज वुहारने सराग-सज्ञा पु० [स० शलाक] १ लोहे की सीख । पतला सीखचा । का झाडू। नुकीली छड। २ वह लकडी जो कुलावे के बीच मे लगाई सरहतना-क्रि० स० [देश॰] अनाज को साफ करने के लिये फटकना । जाती है और उसके ऊपर कुलाबा घूमता है । पछोडना। सराग-वि० [स०] १ रागयुक्त। रगीन । रगदार। २ अलक्तक से रंगा हुआ। लाक्षारजित। ३ प्रेमाविष्ट । मुग्ध । ४ सरहद-सञ्ज्ञा स्त्री० [फा० सर+अ० हद १ सीमा। २ किमी भूमि की चौहद्दी निर्धारित करनेवाली रेखा या चिह्न । ३ सीमा शोभायुक्त । सुदर [को०) । पर की भूमि । सीमात । सिवान । सराजामा--सञ्ज्ञा पुं० [फा० सर अजाम] सामग्री । असवाव । सरहदी-वि० [फा० सरहद+ ई (प्रत्य॰)] मरहद का। सरहद सरा-मशा पु० [स० श्राद्ध] दे० 'श्राद्ध' । उ०—(क) जश सराध सामान। सवधी । सीमा सवधी । जैसे,—सरहदी झगडे । न कोऊ करै। सूर, १२६० । (ख) द्विज भोजन मख होम सरहद्द---सज्ञा सी० [फा०] दे॰ 'सरहद'। सराधा । सव के जाइ करहु तुम वाधा।-मानस, १।१८१ । सरहना-सञ्चा भ्वी० [देश॰] मछली के ऊपर का छिलका । चूई। यौ०-सराधपय =थाद्ध का पक्ष या पखवारा जो पाश्विन कृ० १ सरहर-सहा पु० [स० शर] [सशा स्त्री० सरहरी] भद्रमजु। रामशर । से अमावास्या तक माना जाता है। पितृपक्ष । उ०—जो लगि काग सरपत। सराध पर तो लगि तो सनमानु ।-विहारी र०, दो० ४३४ । सरहरा'-वि० [स० सरल + हिं० धड अथवा हिं० सरहर] १ सीधा सराना-क्रि० स० [हिं० सारना का प्रेर०] पूर्ण कराना। सपादित उपर को गया हुआ। जिसमे इधर उधर शाखाएँ न निकली कराना । (काम) कराना। उ०—ते ही उनकी मूड चढायो। हो (पेड)। भवन विपिन संग ही सँग डोले ऐसेहि भेद लखायो । पुरुष सरहरा-वि० [स० सरण] [वि॰ स्त्री० सरहरी] जिसपर हाथ पैर भंवर दिन चारि आपुनो अपनो चाउ सरायो।-सूर (शब्द०)। रखने से न जमे। फिसलाववाला। चिकना । सराप-सञ्चा पु० [स० श्राप) दे० 'शाप' । उ०-तिन्हहि सराप दीन्ह सरहरी'-तशा सी० [स० शर] १. मुंज या सरपत की जाति का अति गाढा । —मानस, ११३५ । ,