समत्थन ४६६७ समाक्रांत समस्थल- सज्ञा पु० [स०] समतल भूमि [को०] । समाँ-सहा पु० [अ० नजारा । दृश्य (को०] । समस्थली-सज्ञा श्री० [स०] गगा और यमुना के बीच का देश । समा'-सहा स्त्री० [स०] १ वर्ष । साल । गगा यमुना का दोग्रावा । प्रतर्वद। समा-सज्ञा पु० [म० समय] दे० 'समाँ' । समाथान-सज्ञा पु० [म० योग की एक विशेष मुद्रा जिसमे दोनो समा-मज्ञा पु० [अ०] अवर । आकाण । गगन (को०। पैर सटा लिए जाते है। समान-सज्ञा पु० [अ० समान १ सगीत के स्वरो की तन्मयता मे समस्य-वि० [म.] १ जो समास करने योग्य हो। छोटा या सक्षिप्त झूमना । २ सगीत श्रवण । गान सुनना (को० । करने लायक । २ ( लोक अादि) जिसके पद या चरण पूर्ण मानत-सज्ञा स्त्री० [अ० समानत] १ श्रवण करना। सुनना । करने योग्य हो । पूरणीय को० । कान देना । २ सुनने की शक्ति । ३ मुकदमे की सुनवाई या समन्या--सज्ञा मी० [स०] १ सवटा । २ मिलाने की दिया। विचार 0 मिथग्ग। ३ किनी श्लोक या छद आदि का वह अतिम पद समाई'-सा श्री० [हिं० समाना ( = मॅटना)] १ सामथ्य । शक्ति । या टुकडा जो पूरा श्लोक या छद बनाने के लिये तैयार करके वूता । समयता । २ समाने की त्रिया या भाव । दुसरो को दिया जाता हे पार जिसके आधार पर पूरा श्लोक समाई -~-सद्धा स्त्री॰ [अ०] १ सुनी हुई वार्ता । श्रुति पर आधारित वात । या छद बनाया जाता है। २. सामान्य लोगो द्वारा बोलने में सुना गया वह शब्द जिसकी क्रि० प्र०--देना।-पूर्ति करना। व्युत्पत्ति व्याकरण के नियमो से मिट्टन हा (को०] । ४. कठिन अवसर या प्रसा। कठिनाई। जैसे,-इस ममय तो उनके समाउ -सज्ञा पु० [हि० समाना] १ दे० 'समाई। निर्वाह। सामने कन्या के विवाह की एक बड़ी समस्या उपस्थित है। समाव । अटने की जगह । ग जाइश । समस्यापूति --सज्ञा सो [म० किमो समस्या के आधार पर कोई समाकरण-सना पु० [म०] ग्राइन करना । बताना को०] । छद या श्लोक आदि बनाना। समातिक-सज्ञा पु० {म.] यह गाह्वान, सोत या इशाग जो समह्या-मक्षा श्री० [40] ख्याति । प्रमिद्धि (को०) । अरनो पार ध्यान आकपित करे। समानिक-वि० [स० ममाट निक] अपने पैरो पर सम भाव मे खड़ा समाकर्प-मज्ञा पु० [स० दे० 'समाकर्पण' (को०) । रहनेवाला (को०] । समाकर्षण-पक्षा पु० [म. [नि समाकृष्ट अपनी ओर खीचना या समाजन-मशा पुं० [म० समाञ्जन] सुश्रुत के अनुगार अाँखो मे प्राकृप्ट करना । को०)। लगाने का एक प्रकार का अजन जो कई प्रोधियो के योग समाकर्षिणी -मज्ञा प्री० [स०] बहुत दूर तक फैलनवाली गध को०] । मे बनता है। समाफपी-० [म० समान [गे ममापिणो १ खीचने- समात--मझा पु० [स० नमान्त] १ प्रतिवेगी। वह जो पडोसी हो । वाना। जो अपनी पार पाटकर। २ दर तक सुगव २ साल का अन या समाप्ति किो०)। फैनानेवाला या प्रमार करनाना। जम,-समाकपा पुष्प या समातक-मक्षा पु० [स० ममान्तक] कामदेव । समाकी गव (को०] । समातर-वि० [म० समान्तर] समानातर । समान अतरवाला को०] । समाकी-सशा पु० [१०] प्रसरण शोल सुगव । दूर तक फैलने वाली समाश-मधा पु० स०] सम या वरावर का हिस्मा। सुगव (को०] । समाशक-वि० [स०) बगवर का हिस्सेदार। समान भाग का समाकार-वि० [म.] एक समान प्राकारवाला (को०] । हकदार [को०)। समाकुचन-सहा पु० [स० समानुचन] मिकाटना । सीमित करना। समाशिक--वि० [स०] दे॰ 'समागक' । समाकुचित .' [म० समाञ्चित] १ सामित । २ समाप्त किया समाशी-वि० [स० समाशिन्] बरावरी का। समान अगवाला को०] । हुआ । जैसे,-समाकुचित वक्तव्य या मापण (को०] । समास-वि० [म०] १ जिसमे मास हो। मासयुक्त । २ पुष्ट । भरा समाकुल-वि० [स०] १ जिसको अकन ठिकान न हो। बहुत अधिक हुमा । मासल को । घबराया हुमा । २ भरा हुआ । पूण । प्रावीण । भीडभाड स समासमीना-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] वह गौ जो हर साल बछडा व्याती युक्त (को०)। हो ।को०] 1 समाकृष्ट-वि० [स०] १ पान खीचा हुआ । निकट लाया हुआ । २ समा-ममा पु० [म० समय समय । वक्त । पूणत आकृष्ट । पोचा हुअा फो०)। मुहा०-समां बँधना = (सगीत आदि कार्यों का) इतनी उत्तमता समाक्रमण-सञ्ज्ञा पुं० [म०१ कुचलना। रौदना।२ कदम रखना। से होना कि सब लोग स्तब्ध हो जा। समां बाँधना= । डग भरना। ३ अाक्रमण । वाया । हमला । चडाई (को०] 1 (सगीत आदि मे) रग जमाना या थोतानो पर प्रभाव डालना। समाक्रात-वि० [म० समानान्त| १ कुचला हुआ । रीदा हुआ। २. २ मौसिम । ऋतु । ३ बहार। आनद । ४ चमक दमक। जिसपर पात्रमण हुअा हो। पानात। ३ पालन किया हुआ हो। सजधज। याकात पूरा किया हुमा (को०] ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१४९
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