समविपम ४६६६ समस्य समविषम--वि० [सं०] १ नतोन्नत । ऊबडखावड । जैसे,-भूमि। विशेष - वैद्यक मे उमे कट, उरण, चिर, दीपन और कफ २ सतुरित अमतुतित । उदित अनुचित । जैसे,-ग्राहार तया वात का नाणक माना है। विहार। २ गीर या गिटनी नाम का साग । समवीर्य-वि०म० समान शकिा मा । तुरगवल । समठिना-मानी० [म.] १ मष्टिन । कोना। २ जमी- समवृत्त--सज्ञा पुं० [२०] १ वह छद जिनके चागे च ण ममान कद । मूग्न । ३ गिंडनी या गदीर नाग का माग । हो । २ वह वृत्त, घेग या गोलाई जो समान हो । समाठोता पण मी० [म०] २० 'ममप्ठिता' । समवृत्ति'--मझा स्त्री० [स०] मन स्थैर्य । धीरता । ममत्यात-वि० [म० गमनदयात जिसी मन्या ममान या बग- समवृत्ति--वि० समान वृत्तिवाला । धीर । स्थिर । वर हो। समवेक्षगा--सज्ञा पु० [म०] निरीक्षण । समरवि-मसा मी० [म० ममान्धि] १ पौटिय के अनुसार वह मनधि समवेक्षित--वि० [स०] ठीक तन्गे देखा परखा हुमा । नुवि- जिसमे नधि करनेगाना गजा या गप्ट अपनी प्री गक्ति के चारित [को०] । माय सहायता कालो तपार हो। २ नमानना के स्तर पर होने वाली गधि या समगीता (फो। समवेत'-वि० [स०] १ एक मे मिला या इकट्ठा किया हुगा । मममस्थान एकन्न । २ जमा किया हुआ। मचित । ३. किमी ले साथ सगा पुं० [सं०] याग के अनुसार आगन का एक प्रकार एक श्रेणी मे पाया हुअा। ४ जो किसी के साथ नित्य सबंध (को०]। द्वारा सबद हो । नित्य मवध मे बँधा हुना । समसन-सन्ना पु० [म०] १ का कने का काम । जोटना। मिलाना समवेत'- सच्चा ५० १ सय । लगाव । ताल्लुक । २ दे० 'मभूय मघटित करना। टापा मक्षिन करना। व्याकरण के कारी'-२ अनुमार गाम क ना । ममा केम्प मे ले अाना (को०] । समव्यूह--सहा पुं० [स०] वह मेना जिसमे २२५ मवार, ६७५ सिपाही समसमयवर्ती-वि० [म० नमाम्य पनिम्] जो एक माय हो । नार तथा इतने ही घोडे और रय आदि के पादगोप हा । माय या युगपत् होनेवाला । समशकु-सञ्ज्ञा पु० [स० ममशट कु] वह रामय जव कि सूर्य ठीक सिर सममरि मार-मारा [८० ममन्नर या मनि, हिं० मरि १] बरा- पर आते हो। ठीक दोपहर का समय । मध्याह । वगे। तुल्यता। समानना । उ०-दुहन देह कछु दिन अरु समशशी-सक्षा पु० [स० समणशिन्] समान कोण या शृगवाला मोती तब करिही मो नमारि पाई।-मूर०, १०६६८ । चद्रमा। समसरि पु-वि० बगबर। ममान । उ०- सहम माण्ट मनि कमल समशीतोष्ण-वि० [स०] जहाँ न तो बहुत गर्मी हो और न शीत । चलाए। अपनी नममरि और गोप जे निनकी साथ पठाए। मात दिल (को०] । -मृर०,१०।१८३ | समशीतोष्ण कटिवव - सज्ञा पु० [स० समशीतोष्ण कटिबन्ध] पृथ्वी सममान-मझा पु० [स० उमशान] रममान [o। के वे भाग जो उपण कटिबध के उत्तर में कर्क रेखा से उत्तर समसामयिक-वि० [म०] ही समय मे होनेनाता। नमकालिक वृत्त तक और दक्षिण मे मकर रेखा से दक्षिण वृत्त तक (अ० कटेंपोरती)। समसूत्र, समसूत्रस्थ-वि० [सं०] एक ही ध्यान में अवस्थित को०। विशेप -पृथ्वी के इन मूभागो मे न तो बहुत अधिक सरदी पडतो ममसिद्धात-वि० [स० सममिद्वान्न] जिमका लक्ष्य एक हो । समान है और न बहुत अधिक गरमी, दोनो प्राय समान भाव मे मिदात को तेरनननेवाला। रहती है। समसुप्ति -सा ली० [सं०] कल्पात मे होनेवाली विश्व की निद्रा। समश्रुति-वि० [स०] जिमकी श्रुति या विराम समान हो । सगीत मे प्रवा (को०) । मे समान श्रुतियुक्त [को०] | समसेर-सञ्ज्ञा ली० [फा० शगगेर] तनवार । कृपाण । समश्रेणि-सज्ञा स्त्री॰ [स०] समान श्रेणि या पक्ति । वह पक्ति या रेखा समस्त-वि० [म०] १ मब । कुल। समग्र । जैसे,—(क) उन्हे जो सीधी हो [को०]। समान रामायण कठ है। (य) इन समय समम्न देश मे एक नए प्रकार की जाग्रति हो रही है। २ एक मे मिलाया हुआ। समष्टि-सज्ञा स्री० [म.] सव का समूह । कुल एक साथ । व्यप्टि का मयुक्त । ३ जो समास द्वारा मिलाया गया हो। समासयुक्त । उलटा या विलोम। जैसे,-याप सब लोगो की अलग अलग ४ जो थोडे मे किया गया हो। जो सक्षेप मे हो । सक्षिप्त। बात जानें दे, समष्टि का विचार करे। २ सयुक्त अधिकार । ५ जो समा में व्याप्त हो । को०) । ६ समिचिन (को०)। समान अधिकार । सत्ता जो समवेत या मयुक्त हो । ३ सामूहिक समस्तघाता-सज्ञा पुं० [स० समस्तधातृ] वह जो मवका धारण- होने का भाव । सपूर्णता। पोपण करनेवाला हो। विष्णु । समष्टिल-सञ्ज्ञा पु० [स०] १ कोकुत्रा नाम का केटीला पौधा जो समस्थ-वि० [स०] १ वगवर । ममान । २ ममतल । ३ अनुस्प। प्राय पश्चिम मे नदियो के किनारे होता है। ४ जो फलने फूलने की या समृद्ध स्थिति मे हो [को०)। पडते हैं।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१४८
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