समदन समनीक समधिगम-सज्ञा पु० [स०] पूरी तरह समझना या अनुभव करना [को० । समधिगमन-सञ्ज्ञा पुं० [म.] आगे बढ जाना पार कर लेना । जीत जाना (को०। समधियाना--सञ्ज्ञा पु० [हिं०] २० 'समधियाना' । समधियाना-सज्ञा पु० [हिं० ममवी + इयाना (प्रत्य )] दह घर जहाँ अपनी कन्या या पुत्र का विवाह हुया हो। समधी का घर। समदनर-सञ्ज्ञा स्त्री० स० समादान] भेंट । उपहार । नजर । उ०- यापन देस खा, सब श्री चंदेरी लेहु । समुद जो समदन कीन्ह तोहि ते पायौ नग देहु ।-जायसी (शब्द॰) । समदना --कि० अ० [स० समादान] प्रेमपूर्वक मिलना । भेटना । उ.-समदि लोग पुनि चढी विवाना । जेहि दिन डरी सो प्राइ तुलाना ।--जायसी (शब्द॰) । समदनापुर-क्रि० स० १ भेंट करना । उपहार देना । नजर करना । २ विवाह करना। उ०--दुहिता समदी सुख पाय अवै ।- केशव (शब्द०)। ३ आदर सत्कार करना । उ०--सव विधि सबहि समदि नरनाहू । रहा हृदय भरि पूरि उछाहू ।- मानस, ११३५४ । समदर्शन-मज्ञा पु० [स०] १ वह जो मब मनुष्यो, स्थानो और पदार्थों को समान दृष्टि से देखता हो । सबको एक सा देखने- वाला। समदर्शी। समान रूप या आकृति का। एक रूप (को०)। समदर्शी--पञ्चा पुं० [स० ममदशिन् , वह जो सव मनुष्यो, स्थानो और पदार्थों आदि को समान दृष्टि से देखता हो। जो देखने मे किसी प्रकार का मेदभाव न रखता हो। सव को एक सा देखनेवाला। समदाना-क्रि० स० [हिं० समाधान] १. सौपना । रखना। जिम्मे करना । २ समाधान करना । समदु ख वि० [स०] १ दूसरे के दुख कष्ट को स्वय अनुभूत करने- वाला । समवेदना प्रकट करनेवाला । २ समदु खभाए। सम दुखी । सहभोगी [को०)। यौ---समदु खसुख = (१) दुख और सुख का साथी। (२)जिसमे दुख और सुख समान रूप से हो । समदृश् - सञ्ज्ञा पुं० [स०] दे॰ 'समदर्शी' । समदृष्टि--सज्ञा स्त्री० [स०] १ वह दृष्टि जो सब अवस्थाओ मे और सब पदार्थों को दखने के समय समान रहे । समदर्शी को दृष्टि । २ दे० 'समदर्शी'। स्मदेश--पञ्ज्ञा पुं॰ [स०] चौरस मैदान । समतल क्षेत्र [को॰] । समद्युति--वि० [स०] समान कातिवाला [को०)। समद्वादशात्र--सज्ञा पु० [स०] वह क्षेत्र आदि जिसके बारह समान भुज हो । बारह बराबर भुजानो वाला क्षेत्र । समद्विद्विभुज-सज्ञा पु० [स०] वह चतुर्भुज जिमका प्रत्येक भुज अपने सामनेवाले भुज के समान हो। वह चतुर्भुज जिसके आमने सामने के भुज बराबर हो । समद्विभुज-वि० [स०] वह क्षेत्र जिसकी दोनो भुजाएं बराबर हो । समधर्मा--वि० [स० समधर्मन्] समान धर्म, प्रकृति या स्वभाव का [को०] । समधिक-वि० [स०] अधिक । अतिशय । ज्यादा। बहुत । समधिगत--वि० [स०] पास पहुँचा हुआ। निकट आया हुआ। प्राप्त [को०] । समधो मधा पु० [म० सम्बन्धी] [स्त्री० समधिन पुन या पुत्री का ससुर । वह जिसकी कन्या से अपने पुत्र का अथवा जिसके पुत्र से अपनी पुत्री का विवाह हुअा हो । उ० सकल भाँति सम साज समाजू । सम समधी देखे हम आजू।- मानस, १।३२० । समघत--वि० [स०] अच्छी तरह पढा हुआ । जिसने मम्यक् रूप से अध्ययन किया हो । खूब पढा हुअा [को०] समधुर-वि० [स०] मिठास से युक्त । मिष्ट । मीठा [को०) । समधुरा---पक्षा स्त्री० [सं०] द्राक्षा । अगर को०)। समघौरा-सझा ० [हिं० समधी + प्रौरा (प्रत्य॰)] विवाह को एक रीति जिसमे दोनो समची परस्पर मिलते है। समव--वि० [सं०] सहयात्री । जो एक साथ यात्रा करे (को॰] । समनतर-वि० [स० समननर] ठीक बगलवाला। विलकुल सटा हुमा । बराबरी का। समन-सक्षा पुं० [स० शमन] १ दे० 'शमन' । २ यम । उ-- मातु मृत्यु पितु समन समाना |--मानस, ३१२ । समन--वि० दे० 'शमन' । उ.- (क) समन अमित उतपात सब भरत चरित जप जाग ।--मानस, १९४१ । (ख) समन पाप सताप सोक के ।-मानस, ११३२। समन' - सच्चा स्त्री॰ [फा०] चमेली का पुष्प [को०] । यौ०-समनप्रदाम, समनपैकर = चमेली के फूल की तरह सुकु- मार शरीरवाला । समन इजार, समनखद = चमेली के फूल जैसे कपोलवाला। समनजार = चमेली का बाग । समनवू % चमेली को गधवाला । समनरु = चमेली के फूल जैमा काति- मान । समनसाक = वह सुदरी जिसकी पिंडलियाँ चमेली जैसी सफेद हो। समन --सञ्ज्ञा पुं० [अ०] कीमत । दाम । मूल्य [को०) । समन-सच्चा पु० [अ० समन्स] न्यायालय द्वारा प्रतिवादी या गवाहो को इजलास के समुख नियत तिथि पर उपस्थित रहने के लिये भेजी गई लिखित सूचना या बुलावा । दे० 'सम्मन' । जैसे,- समन वगरज इनफिसाल मुकदमा । समनगा--सज्ञा श्री० [स०] १ बिजली। विद्युत् , २ मूर्य की किरण। समनीक-पञ्चा पु० [सं०] युद्ध । लडाई । यो०--समनीक मूर्धा = युद्ध का अग्निम मोर्चा ।
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