सफेदपलका ४६५४ सब सफेदपलका-सज्ञा ० [फा० मुफैद + हिं० पलक] वह कबूतर मुहा०-मब मिलाकर = जितना हो, उतना मब । कुल । जिसके पर कुछ सफेद और कुछ काले हो । २ पूरा । सारा । ममस्त । सफेदपोश-सञ्ज्ञा पु० [फा० सुफदपोश] १ साफ कपडे पहननेवाला । सब-वि० [अ०] छोटा । गौण । अप्रधान । २ शिक्षित और कुलीन। भलामानस । शिष्ट । ३ अमीर न विशेप-इम अथ मे इम शब्द का प्रयोग प्राय यौगिक गब्दो के प्रारभ होते हुए भी भले व्यक्ति की तरह रहनेवाला। ४ वह जो मे होता है । जैसे,-सवइमपेक्टर, मवजज, मवयोवरमियर, मव केवल सफेद कपडे पहन कर शिष्टता का प्रदशन करता हो और आफिम । जो वस्तुत शिक्षित और भला आदमी न हो। सबक-पहा पु० [फा० मवक) १ उतना अश जितना एक बार मे सफेदा-सञ्ज्ञा पुं० [फा० सुफैदा] १ जस्ते का चूर्ण या मस्म जो दवा पढाया जाय। पाठ। तण लोहे, लकडी आदि पर रंगाई के काम मे पाता है। २ सर्पद चमडा जो जूते आदि बनाने के काम में आता हे । क्रि० प्र०-देना।-पढना। --पढाना।-लेना। ३ ग्राम का एक भेद जो लखनऊ के आसपास होता है। २ शिक्षा । नसीहत । ३ अनुभव । तजुर्वा । क्रि० प्र० देना । -पाना।-मिलना ।-नेना । ४ खरबूजे का एक भेद । ५ पजाव और काश्मीर मे होने- वाला एक बहुत ऊंचा पेड। सबकत-पला बी० [1० मबकन] किसी विषय मे योगे की अपेक्षा विशेष-यह वृक्ष खभे को तरह एकदम सोधा ऊपर जानेवाला प्रागे वह जाना । विशेषता प्राप्त करना । पेड है जिसकी छाल का रंग सफेद होना है। इसको लकटो क्रि० प्र०—करना ।-ने जाना। सजावट के सामान बनाने के काम में आती है। सवच्छो -वि० [स० सवत्मा] वछडेवाली । बछड मे युक्त । बछडे के सफेदार-सज्ञा पुं॰ [देश०] सोसम का पेड। साथ । उ०-दीघो मोनो सोलहो, दीधी सुरह सवच्छी गाई । सफेदी--पचा स्त्री० [फा० सुफैदो] १ मफेद होने का भाव । श्वेतता। -बी० रासो, पृ० २५ ॥ धवलता। सबछ वि० [म० मवत्स, सवच्छ] बछडेवाली। बछडामहित । मुहा०-सफेदी आना = वाल सफेद होना । वुढापा पाना । उ०-द्वै लख धेनु मवछ वहु दूधी। प्रथम प्रसूता सु दर सूधी । २ दीवार आदि पर सफेद रग या चूने को पोताई । चूनाकारो। -नद० ग्र०, पृ० २३४ । क्रि० प्र०—करना ।-फेरना । सबर्ग-वि० [फा० सब्ज़] दे० 'सब्ज' । ३ सूर्य निकलने के पहले का उज्ज्वल प्रकाश जो पूर्व दिशा मे मबजज--सहा पुं० [अ०] छोटा जज । सदराला । मिविल जज । दिखाई पड़ता है। सवडिवीजन-समा पुं० [अ० सवडिवीजन] किसी जिले का वह मुहा०-(सुबह की) सफेदी फैलना = प्रभात होना। सूर्य का छोटा भूभाग जिसके अतर्गत बहुत से गाँव और कसवे हो । प्रकाश विकीर्ण होना। परगना । जैसे, चांदपुर मब डिवीजन । सफेन-वि० [स०] झागदार । फेन युक्न । फेनिल । विशेष -कई सब डिवीजनो का एक जिला होता है अर्थात् हर सफेनपुज-सञ्ज्ञा पु० [स० सकेनपुञ्ज] वह जो धने फैन से भरा हुआ जिला कई सब डिवीजनो मे वटा रा होता है । या आच्छादित हो । जैसे, समुद्र [को०] । सवडिवीजनल -वि० [अ० सवडिवीजनल] सवडिवीजन का। उम सफ्क-पचा पु० [अ० सफ्क] हिंमन । रक्तपात । हिंमा [को०] । भूभाग का जिसके अतर्गत बहुत से गाँव और क्म हो । सफ्तालू-सञ्ज्ञा पु० [हिं० सफतालू] दे॰ 'सफतालू' । सबडिवीजन सवधी । जमे,-मवडिवीजनल अफमर । सफ्फाक-वि० [प्र. सफ्फाक] १ निष्ठुर । बेरहम । २ हिंमक । सबद-मज्ञा पुं॰ [सं० शब्द] १ शब्द । अावाज । ३०-हुता जो ३ अत्याचारी को। सुन्नम सुन्न, नांव ठाँव ना सुर सबद । तहा पाप नहिं पुन्न, महमद सफ्फाकी--सज्ञा स्त्री० [अ० सफ्फाकी] । ३ निष्ठुरता। क्रूरता । आपुहि आपु महँ ।- जायसी (शब्द०)।२ [स्त्री० मवदी] किसी बेरहमी। २ अत्याचार । जुल्म । ३ हिंसा । रक्तपात (को०] । महात्मा की वाणी या भजन आदि। जैसे,-- कवीरजी के सबध-वि० [स० सबन्ध] जिसके लिये बध या प्रतिभू, जमानत यादि सवद, दादूदयाल के सबद । दी गई हो (को०] । सबनमी - वि० [फा० शवनम] जो शवनम की तरह एकदम श्वेत सवधक-वि० [स० सबन्धक] दे॰ 'सबंध' । और महीन हो। उ०-धवल अटारी लखि खरी नवल वधू सबधु'-वि० [स० सबन्धु] १ मिन्नयुक्त । समित्र। २ एक ही कुल हरि दग। सादी सारी सबनमी लमत गुलाबी रग ।-स० या वश का। ३ सन्निकट सबधी । नजदीकी रिश्तेदार [को॰] । सप्नक, पृ० २३४ । सवधु'--मञ्ज्ञा पु० नातेदार । रिश्तेदार । सवधी ।को०) । सबव-सज्ञा पुं० [अ०] १ कारण । वजह । मूल कारण । हेतु । जैसे,- सब-वि० [स० सर्व, प्रा० सब्ब] १ जितने हो, वे कुल । समस्त । उनके नाराज होने का तो मुझे कोई मबब नही मालूम । २. जैसे,—(क) इतना सुनते ही सब लोग वहाँ से चल गए। द्वार । साधन। जैसे,—विना किसी सवव के वहाँ पहुँचना (ख) सब किताबें अलमारी मे रख दो। कठिन है। ३ दलील । तक ।
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