पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१२५

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सनातन सनिष्ठिव, सनिष्ठीव, सनिष्ठेव मे भोजन कराना कर्तव्य हो । ७ ब्रह्मा के एक मानसमुन्न । सनाय-पज्ञा स्त्री० [अ० सना] एक पौधा जिसकी पत्तियाँ दस्तावर ८. एक प्राचीन ऋपि को०)। होती है । स्वर्णपत्नी । सोनामुखी । सनातन--वि० १. अन्यत प्राचीन । बहुत पुराना। जिसके आदि का विष-इस पौधे की अधिकतर जातियाँ अरब, मित्र, यूनान, पता न हो। अनादि काल का। २ जो बहुत दिनो से चला इटली आदि पश्चिम के देशो में होनी है। केवल एक जाति का पाना हो । परपरागत । जैसे,--मनातन गेति, सनातन धर्म । पौधा भारतवर्ष के सिंध, पजाब, मदराम आदि प्रातो मे योडा ३. नित्य। सदा रहनेवाला। शाश्वत । ४. दृढ । निश्चल । बहुत होता है। इसको पत्तियां इमनो को तरह एक मीके के अचल (को०)। दोनो ओर लगती है। एक सौके मे ५ से ८ जोडे तक पत्तियाँ सनातनतम--सज्ञा पु० [स०] विष्णु का एक नाम (को०] । लगती है जो देखने मे पीलापन लिए हरे रंग की होती है। सनातनधर्म--मज्ञा पुं० [सं०] १ प्राचीन धर्म। २ परपरागत धर्म । इसमे चिपटो लबो फलियाँ लगनो हे जो मिरे पर गोन होतो ३ वर्तमान हिंदू धर्म का वह स्वरूप जो परपा से चला आता है। इसको पतियो का जुनाव हकोम और वैद्य दोनो माधा- हुआ माना जाता है और जिसमे पुराण, तन्त्र, बहुदेवोपासना, रणत दिया करते हैं। इसको फलियो मे भो रेचन गुण होगा प्रतिमा जन, तीर्थ माहात्म्य प्रादि सब समान रूप मे माननीय है, पर पत्तियो से कम । वैद्यक मे सनाय रेवक तथा मदाग्नि, हे । साधारण जनता के बीच प्रचलित हिंदू धर्म । विपम ज्वर, अजीर्ण, प्लीहा, यकृत्, पाइ रोग आदि को दूर करनेवाली कही गई है सनातनपुरुष--मचा पं० [स०] वेऽणु भगवान् । उ०--पुरुप मनात । को बधू क्यो न चवला होय |--होम (शब्द०)। सनाल-वि० [स० नाल या डठन मे युक्त । जमे,-मनाल कमल । सनातनी'--वि०, सञ्चा पु० [स० सनातन + ई (प्रत्य॰)] १ जो बहुत उ०-मोहत जनु जुग जलज सनाला । ससिहि समोन देत जय दिनो से चला पाता हो। जिमको परपरा बहुत पुरानी हो । माला।-मानस, ११२६४ ॥ २ मनातन धर्म का अनुयायी। सनाली-मज्ञा स्त्री॰ [स०] वह स्वो जो स्त्रियो को दलालो करतो हो। सनातनो--'नो स०] १. लमा। २ दुर्गा। ३ पार्वतो। ४ सरस्वती कुटनी । दूती (को०] । [को०)। सनासन--सज्ञा पुं० हिं० सनसन । 'सनसन' । सनाथ--वि० [स०] [स्त्री० सनाया} १ जिसकी रक्षा करनेवाला कोई सनाह पु-पञ्चा पु० [स० सन्नाह कवच । वकतर। उ०-उठि स्वामो हो। जिसके ऊपर कोई मददगार या सरपरस्त हो। उठि पहिरि सनाह अभागे। जहें तहँ गाल बजावन लागे । उ०--ही सनाथ हो सही जो लघुतहि न मितही।- --तुलसी (शब्द०)। तुलसी (शब्द०)। २ प्रभु या पतियुक्त । ३ कब्जा किया हुआ। अधिकृत (को०) । ५ सपन्न । सहित । युक्त (को०)। ५ सनिपुर-सक्षा पुं० [१० शनि दे० 'शनि' । जो जनाकारण हो। जैसे, मभा आदि (को०)। ६ कृतार्थ । सनि'-सज्ञा पुं०, मी० [स०] १. दान । भेट । २ अर्चन । पूजन कृतकृय । उ०-प्राइ रामप नार्वाह माया। निरखि बदनु सव ४ विनय । निवेदन । ५ दिशा [को०] । होहि सनाया। -मानस, ४।२२ । ७ सफल । यौ०-सनिकाम = कुछ पाने के लिये इच्छुक । मनिवन्य = भिक्षा मुहा०-सनाय करना= शरण मे लेना । प्राश्रय देना। सहायक या याचना से प्राप्त। होना। सनिकार -वि॰ [स०] निकारयुक्त । अपमानित । तिरस्कृत । अपमान- सनाथा-सबा जी० [सं०] वह स्त्री जिसका पति जीवित हो। पति जनक [को०] । युक्ता स्त्री । सधवा स्त्री। सपतिका नारी [को०] । सनिग्रह-वि० [स०] दस्ता या मूठ से युक्त को०। सनाभ-सज्ञा पुं० [स०] १ सहोदर या सगा भाई। २ नजदीकी सनित'-वि० [हिं० सनना] मिश्रित । सना या माना हुा । मिना रिश्तेदार । सगा सबधी को०) । हुअा [को०]। सनाभि'- पञ्चा पुं० [म०] १ सहादर माई। २ सन्निकट सवधी जो सनित--वि० [स०] १ अगीकृत । स्वीकृत । २ जो प्राप्त हो । पाया सात पीढी के अदर हो (को०)। ३ सबधी। रिश्तेदार (को॰) । हुआ। लब्ध (को०। ४ एक ही पूर्वज से उत्पन्न पुरुप । पिड पुरुप । सनाभि-वि० १ समान केंद्र से सपृक्त या जुडा हुआ । जमे,--रथचक्र सनियम-वि० [सं०] १ नियम, धर्मानुष्ठान से युक्त। नियमवाला । सनिद्र-वि० [सं०] सुप्त । निद्राभिभूत [को०] । का आरा। २ नाभियुक्त । ३ सदृश । तुल्य । समान । ४ सगा या सहोदर । ५ एक पूर्वज से उत्पन्न । मपिड [को०] । २ नियमित । नियमपूवक [को०] । सनाभ्य-मझा पु० [स०] एक ही कुल का पुरुप । सात पोलियो के सनिया -पना पु० [म० शरण] रेशमी धोती या वस्त्र । भीतर एक ही वश का मनुष्य । सपिड पक्ति । सनिघृण-वि० [म०] जिसमे दया न हो । निष्ठुर को०] । सनाम, सनामक -वि० [म०] एक ही या समान नाम का [को०] । सनिर्विशेष-वि० [म०] निरपेक्ष । उदासीन [को०] । सनामा-वि० [स० सनामन्] [वि० सी० सनाम्नी] दे० 'सनाम', सनिर्वेद-वि० [स०] अन्यमनस्क । निर्वेदयुक्त । खिन्न को०] । 'सनामक' (को०] 1 सनिष्ठिव, सनिष्ठीव, सनिष्ठेव'-वि० [स० जिसमे थूक मिला हो ।