पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१२३

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जाते है। - सधर्मा ४९४१ सनकुरगी सधर्मा-वि० [स० मधर्मन् समानधर्मा। समान गुण एव धर्मवाला । विशेप-पह तीन साढे तीन हाथ ऊँचा होता है और इसका काड दे० 'सधर्म' को०] 1 मीधी छडी की तरह दूर तक ऊपर जाता है । फल पीले रग समिणी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] नधर्मचारिणी। पत्नी । भार्या [को०] । के होते हे । कुमारी फसल के साथ यह खेतो मे बोया जाता सधर्मी-वि० [स० समिन्] [स्त्री० ममिणो] ममानधर्मा । दे० हे और मादो दुपार मे तैयार होता है। रेणेदार छिलका अलग करने के लिये इसके डठल पानो मे दालकर मडाए 'मवर्मा' [को०] । सधवा-पशा मी० [१०] वह स्त्री जिसका पति जोवित हो। जो विधवा न हो । सुहागिन । सौभाग्यवती। सन-प्रत्य० [१० सुन्तो या सग] अवधी मे करणकारक का चिह्न। से । माथ । सवाना-क्रि । म० [हिंसवना का प्रेर० रूप] साधने का काम दूसरे से कगना । दूसरे को साधने मे प्रवृत्त करना। सन'-पञ्चा श्री० [अनु॰] वेग से निकल जाने का शब्द । जसे,-नीर सन से निकल गया। सधावर-सञ्ज्ञा पु० [हिं० मधवा या स० सप्त, प्रा० सद्ध ! अथवा देशज] वह उपहार जो गर्भवती स्त्री को गर्भ के मातवें महीने सन-~-सञ्ज्ञा पु० (स०११ ब्रह्मा के चार मानस पुत्रो मे से एक मानस दिया जाता है। पुत्र । २. हायो का कान फडफडाना (को०)। ३ समर्पण । भेंट (को०)। ४ भोजन | आहार को०)। ५ लाभ । प्राप्ति सधि'-सञ्ज्ञा पु० [सं०] पावक । अग्नि [को०] । (को०)। ६ घटापाटलि वृक्ष । सधि' - सना पु० [म० मधिस्] साँड । वृपभ (को०] । सन-वि० [अनु० सुन| १ सन्नाटे मे पाया हुआ । स्तब्ध । ठक । सधी-वि० {स०] धी अति बुद्धियुक्त । बुद्धिमान् [को०] । २ मौन । चुप । सधूम-वि० [भ०] धूए से आच्छादित । धूमयुक्त [को०) । मुहा०-जी सन होना=चित्त स्तब्ध होना । घबरा जाना । सधूमक-वि० [स०] १ धूम्रयुक्त । २ धूए जैसा (को०] । सनई सच्चा स्त्री० [हिं० सन । छोटी जाति का सन । सधूमवर्णा-सञ्ज्ञा की० [स०] अग्नि को सात जिह्वानो मे से एक सनक'-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० शडक( = खटका)] १ किसो वात की धुन । जिह्वा । मन की झोक । वेग के साथ मन को प्रवृत्ति । सधूम्र-वि० [स०] १ धुधला । २ धुए से आच्छादित । ३ धूम्र मुहा०-सनक चढना या सवार होना = धुन होना । वर्ण का । काला | श्यामवर्ण का को॰] । २. उन्माद की सी वृत्ति । खब्त । जुनून । यौ०-सम्रवर्णा - अग्नि की एक जिह्वा । सधूमवर्णा । मुहा०-सनक पाना = पागल होना। खसी होना । सनक जाना = सधोए-सज्ञा पुं० [हिं० संघावर] दे॰ 'सधावर'। पागल होना । मनकना । सनक लेना = पागलो का सा काम सघौर-सज्ञा पु० [हिं० सधावर] २० 'सधावर'। सनकर-मचा प० स०] ब्रह्मा के चार मानस पुत्रो मे से एक । सध्रीच-सञ्ज्ञा पु० | स० स व्यञ्च] [स्रो० सनीची ( = पत्नी। सखी)] विशेष-ये परम ज्ञानी और विष्ण के सभासद माने गए हैं। शेष पति । सखा । स्वामी ।को०) । सध्रीची-रज्ञा स्त्री॰ [स० मध्रोचीन ( = समान उद्देश्यवाला)] सखो के नाम है-~सन, सनत्कुमार और सनदन | (डि० । सनकना' क्रि० अ० [हिं० मनक+ना (प्रत्य॰)] पागल हो जाना। पगलाना । झक्की हो जाना। सध्रीचीन-वि० [स०] [लो० मध्रोचीना] १ साथ साथ रहनेवाला। साथी । २ समान उद्देश्यवाला [को०) । सनकना-क्रि० अ० [अनु० सनमन | वेग मे हवा में जाना या फेंका जाना । जैसे,—तीर सकना, गोले मनकना । सध्वस-सचा पुं० [म.] दे० 'कराव', 'कारव' । सनकाना-क्रि० स० [हिं० मनकता का प्रेर०] किमो को सनकने मे मनका-मज्ञा पु० [अनु० सन सन्] मन्नाटा । स्तब्धता । नीरवता। प्रवृत्त करना। सनद-सक्षा पु० [म० सनन्द] दे० 'सनदन' । सनकारनाg-कि० स० [हिं० सैन+करना] १ सकेत करना। सनदन-माझा पु० [स० सनन्दन] ब्रह्मा के चार मानस पुत्रो मे से एक इशारा करना । २ इशारे से बुलाना । ३. किसी काम के लिये मानसपुत्र। इशारा करना | उ०-तुलसी सभीतपाल मुमिरे कृपालु राम विशेष-ये कपिल के भी पूर्व सारय मत के प्रवर्तक कहे ममय सुकरना सगहि मनकार दी।--तुलसी (शब्द०)। गए है। सयो० क्रि०-देना। यौ०~सनक सनदन । सनकियाना'-क्रि० स० [स० मडकेतन, हिं० सन] इशारा करना । सन् -मक्षा पं० [अ०] १ वर्ष । साल । सवत्सर । २ कोई विशेप सकेत करना। वर्ष । सवत् । जैसे,- सन इसवी, सन् हिजरी। सनकियाना' -कि० अ० [हिं० सनक] दे० 'सनकना' । सन-सज्ञा पुं० [सं० शरण] वोया जानेवाला एक प्रसिद्ध पौधा जिसको सनकियाना' - क्रि० स० दे० 'सनकाना'। छाल के रेशे से मजबूत रस्सियाँ आदि वाती है । मनकुरगी-सञ्ज्ञा पुं० [दश०] एक प्रकार का बडा पेड । हिं० २०१०-१४ करना।