सतप ४६३४ सत्वर बाँटा जाता है। छेन्न । सदावर्त । जैसे,--अन्न सन्न । ११ सत्रु--ससा पुं० [स० शत्रू] दे० 'शत्रु' । उ०--मन्नु न काहू करि गर्न विक्ट स्थान या समय । मित्र गर्न नहिं काहि । तुलमी यह मत सत के बोल ममता विशेष-कोटिल्य ने लिखा है कि रेगिस्तान, सकटमय स्थान, माहि । तुलसी ग्र०, पृ० १० । दलदल, पहाड, नदी, पाटी, ऊँची नीची भूमि, नाव, गौ, शकट, सत्रुधन, सत्रुहन -मज्ञा पु० [स० शत्रुघ्न] दे० 'शत्रुघ्न' । उ०- व्यह, घुव तथा रात ये सब सत्र कहे जाते हैं। (क) सुनि मनुधन मातु कुटिलाई।-मानम, २६१६३ । १२ उदारता। वदान्यता (को०)। १३ सद्गुण (को॰) । १४ (ख) जाके सुमिरत ते रिपु नाना । नाम सनुहन वेद प्रकामा । दो वडे अवकाशो के बीच किसी सस्था का लगातार चलनेवाला -मानस, १११६७ । (मत्रुसमन, नन्नुमाल, मनुस्दन, सनुहा कार्यकाल (को०)। १५ घमड । अभिमान (को०)। १६. आदि भी इनके नाम प्राप्त होते है)। छद्म वेश (को०)। सत्व--सञ्ज्ञा पुं० [स० मत्त्व] १ मत्ता। होने का भाव । अस्तित्व । यौ०-सनगृह = यज्ञ करने या आश्रय लेने का स्थान । सत्र परि हस्तो। २ मार । तत्व । मूल वस्तु। अमलियत । ३ अन - वेपण = यज्ञ मे भोजनदान । मत्रफल = सोमयाग का फल । प्रकृति । खासियत । विशेषता।। चिन की प्रवृत्ति। ५ अात्म- मत्रफलद = यज्ञ या मन का फल देनेवाला। सन्नयाग = सोम तत्व । चैतन्य । चित्तत्त्व । ६ प्राण । जीव तत्व । ७ माख्य के यज्ञ । मनवसति, सत्रशाला = दे० 'सत्रगृह' । सन्नमा = दे० अनुसार प्रकृति के तीन गुणो मे से एक जो सब मे उत्तम है 'सत्रागार। और जिसके लक्षण ज्ञान, शाति, शुद्धता ग्रादि हैं । सत्रप-वि० [स०] लाज सकोचवाला । विनयशील । लजालू (को॰] । विशेष—इस गुण के कारण अच्छे कर्म मे प्रवृत्ति, विवेक आदि सतह-सद्धा पु० [हिं० सत्तर १ सत्तरह की सर । २ पासे के का होना माना गया है। खेल मे एक दांव जिसमे दो छक्के और एक पजा साथ पडते ८. प्राणो । जीवधारी । ६ गर्भ । हमल । १०. भूत । प्रेत । ११ हैं। उ०-ढारि पामा साधु मगति फेरि रसना सारि। दाँव घृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम । १२ दृढता। धीरता। माहन । अव के परयो पूरो कुमति पिछली हारि। राखि सत्रह सुनि शक्ति । दम। १३ मूल तत्व । जमे--पृथ्वी, वायु, अग्नि आदि अठारह चोर पांचो मारि ।-सूर (शब्द०) । (को०) । १४, भद्रता। सद्गुण । श्रेष्ठता (को०) । १५. वास्त- सत्रह-वि० दे० 'सत्तरह। विकता। सचाई (को०)। १६ बुद्धिमत्ता। अच्छी समझ सत्रही-सज्ञा पुं० [हिं० सत्तरह] मृत्यु के सत्रहवें दिन होनेवाला कृत्य । (को०) । १७ स्वाभाविक गुण या लक्षण (को०)। १८ सज्ञा । सत्रा-अव्य० [सं० सत्ता] सहित । साथ [को०] । नाम (को०)। १६. लिंग शरीर (को॰) । सत्रागार-सज्ञा पुं॰ [स० सत्त्रागार] सनशाला। यज्ञशाला [को०] । यौ०-सत्वकर्ता = जीवो को सृष्टि करनेवाला । सत्वपति = सत्राजित--सञ्ज्ञा [सं०] एक यादव जिमकी कन्या सत्यभामा श्रीकृष्ण प्राणियो का स्वामी। सत्वलोक प्राणिलोक । सत्वमपन्न = को व्याही थी। (१) धीरजवाला। (२) जिममे मत्वगुण हो । विशेप-इमने सूर्य को तपस्या करके दिव्य स्यमतक मणि प्राप्त सत्वक-श पुं० [स० मत्त्वका] मृत मनुष्य को जीवात्मा । प्रेत । की थी। उसके खो जाने पर इसने श्रीकृष्ण को चोरी लगाई। सत्वगुण-संश पु० [सं० सत्त्वगुण] अच्छे कर्मों को प्रोर प्रवृत्त करनेवाला जव श्रीकृष्ण ने वह मणि ढूढकर ला दी, तव मनाजित बहुत गुण । साधु और विवेकशील प्रकृति । विशेप दे० 'सत्व' । लज्जित हुआ और उसने श्रीकृष्ण को अपनी कन्या मत्यभामा सत्वगुणी-वि० [स० सत्त्वगुणिन्| साधु और विवेको । उत्तम ब्याह दी। पकृति का। सत्राजितो-सज्ञा स्त्री० [स०] मनाजित की कन्या सत्यभामा का एक सत्वततु-सहा पुं० [म० सत्त्वतनु] विष्ण का एक नाम (को०] । सत्रापश्रय-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० सत्तापश्रय] आश्रय या पनाह का स्थान । सत्वधातु-सज्ञा पुं० [स० मत्त्वधातु] पशुश्रेणी । पशुमडल [को०] । आश्रय का स्थान [को॰] । सत्वधाम-सखा पुं० [स० सत्त्वधाम] विष्णु का एक नाम । सवायण-सञ्ज्ञा पुं० [स० सत्त्रायण] यज्ञादि का वह सिलसिला जो सत्वप्रधान-वि० [स० सत्त्वप्रधान] जिमकी प्रकृति मे सत्वगुण की अनवरत चलता रहे को०] । अधिकता या प्रधानता हो। सत्राहा-सचा पु० [स० सत्ताहन्] इद्र [को॰] । सत्वभारत-सज्ञा पुं० [स० सत्त्वभारत व्यास एक नाम । सत्रि-सञ्ज्ञा पुं० [सं० सनि] १ बहुत यज्ञ करनेवाला। २ हाथी । सत्वमेजय-वि० [स० सत्त्वमेजय] पशुप्रो, प्राणधारियो, जीवो को ३ मेघ । बादल । कॅपानेवाला को०] । सनी-सज्ञा पु० [स० सन्निन्] १ यज्ञ करनेवाला। २ किसी दूसरे सत्वयोग-सञ्ज्ञा पु० [स० सत्त्वयोग] १ गरिमा । माहात्म्य । गौरव । राजा के राज्य मे अपने राजा या राज्य की ओर से रहनेवाला २ सजीवता [को०] । राजदूत । एलची । ३ यज्ञ का निरीक्षण करनेवाला पुरोहित । सत्वर'-अव्य० [स०] शीघ्र । जल्द । तुरत । झटपट । ब्रह्मा (को०) । ४ शिप्य । छान्न (को॰) । सत्वर--वि० तेज । फुर्तीला । गतिशील (को०] । नाम।
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