पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/९४

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बरकाना २३८७ बरछा परकाना-कि० अ० [सं० वारण, चारक ] (1) कोई खुरो यही कारण है कि बरगद के किसी बड़े वृक्ष के नीचे सैकड़ों बात न होने देना । निवारण करना । बचाना । जैसे, हजारों आदमी तक बैठ सकते हैं। इसके पत्तों और झगडा बरकाना । (२) पीछा छुड़ाना । बहलाना । फुसलाना । डालियों आदि में से एक प्रकार का तूध निकलता है जिससे उ.-खेलत खुशी भए रघुवंशिन कोशलपसि सुख छाये। घटिया रबर बन सकता है। यह दूध फोड़े फुसियों पर, दै नवीन भूषन पट सुन्दर जस सस के बरकाये।-रघुराज । उनमें मुंह करने के लिये, और गठिया आदि के दर्द में बरख*+-संज्ञा पुं० [सं० वर्ष ] बरस । साल। लगाया जाता है। इसकी छाल का काढ़ा बहुमूत्र होने में बरखना-क्रि० अ० [सं० वर्षण ] पानी बरसना । वर्षा होना।। लाभदायक माना जाता है। इसके पत्ते जो बड़े और चौड़े बरखा*-संज्ञा स्त्री० [सं० वर्षा ] (1) मेह गिरना । जल का बर- : होते हैं, प्रायः दोने बनाने और सौदा रखकर देने के काम सना । दृष्टि । उ०का बरखा जब कृषी सुखाने।-तुलसी। में आते हैं। कहीं कहीं, विशेषत: अकाल के समय में, (२) वर्षाऋतु । बरसात का मौसिम । गरीब लोग उन्हें खाते भी हैं। इसमें छोटे छोटे फल बरखाना*-क्रि० स० [सं० वर्षा ] (1) बरसाना । (२) ऊपर से . लगते हैं जो गरमी के शुरू में पकते हैं और गरीबों के खाने इस प्रकार छितराकर गिराना कि बरसता हुआ मालूम हो।। के काम में आते हैं। यों तो इसकी लकड़ी फुसफुसी और (३) बहुत अधिकता से देना। कमज़ोर होती है और उसका विशेष उपयोग नहीं होता, बरखास* -वि० दे० "बरखास्त" । उ-करि भूपति | पर पानी के भीतर वह खूब ठहरती है इसलिए कुएँ की दूतन विदा कियो सभा बरखास । भरत शत्रुहन संग लै जमवट आदि बनाने के काम आती है। साधारणत: गए भापु रनिवास। रघुराज ।। इसके संदूक और चौखटे बनते हैं। पर यदि यह होशियारी बरखास्त-वि० [फा० ] (१) ( सभा आदि) जिसका विस से काटी और सुखाई जाय तो और सामान भी बन सकते जन कर दिया गया हो, जिसकी बैठक समाप्त हो गई हो। हैं। डालियों में से निकलनेवाली मोटी जटाएँ बहँगी के जैसे, दरबार, कचहरी, स्कूल आदि बरखास्त होना । जो डंडे, गाड़ियों के जूए और खेमों के घोष बनाने के काम बंद कर दिया गया हो। उ.-सुनिक सभासद अभिलपित आती है। इस पेड़ पर कई तरह के लाख के कीड़े भी निज निज अयन गमनत भए । भूपति सभा बरखास्त करि पल सकते हैं। हिंदू लोग बरगद को बहुत ही पवित्र और किय शयन अति आनंदमए।-रघुराज । (२) जो नौकरी स्वयं रुद्र स्वरूप मानते हैं। इसके दर्शन तथा स्पर्श आदि से से हटा या छुड़ा दिया गया हो। मौकूफ। बहुत पुण्य होना और दुःखों तथा आपत्तियों आदि का दूर बरखिलाफ़-क्रि० वि० [फा० बर+अ. खिलाफ ] प्रतिकूल।। होना माना जाता है और इसीलिये इस वृक्ष का लगाना उलटा । विरुद्ध । भी बड़े पुण्य का काम माना जाता है। वैद्यक के अनुसार बरगंधा-संज्ञा पुं० [सं० वर+गंध ] सुगंधित मसाला । यह कषाय, मधुर, शीतल, गुरू, ग्राहक और कफ, पित्त, व्रण, बरग-संज्ञा पुं० [फा० बर्ग ] पत्ता पत्र । जैसे, बरग । बनफशा ।। दाह तृष्णा, मेह तथा योनि दोषनाशक माना गया है। बरग गावजुयाँ। पर्याव-न्यग्रोध । बहुपात । वृक्षनाथ । यमप्रिय । रक्तफल । बरगद-संज्ञा पुं० [सं० वट, हिं० बड़ ] बड़ का पेड़। पीपल ' शृंगी। कर्मज । ध्रव । क्षीरी । वैश्रवणावास । भांडीर । गूलर आदि की जाति का एक प्रसिद्ध बड़ा वृक्ष जो प्रायः जटाल । अवरोही। विटपी । स्कंदरुह। महाच्छाय। भृगी। सारे भारत में बहुत अधिकता से पाया जाता है। अनेक यक्षावास । यक्षतरु । नील । बहुपाद । वनस्पति । स्थानों पर यह आप से उगता है, पर इसकी छाया बहुत बरगेल--संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का लवा (पक्षी) जिसके धनी और ही होती है, इसलिये कहीं कहीं लोग छाया पंजे कुछ छोटे होते हैं और जो पाला जाता है। आदि के लिये इसे लगाते भी हैं। यह बहुत दिनों तक बरचर-संज्ञा पुं॰ [देश] हिमालय में होनेवाला एक प्रकार का रहता, बहुत जल्दी बढ़ता और कभी कभी अस्सी या देवदार वृक्ष जिसकी लकड़ी भूरे रंग की होती है। घेसी। सौ फुट की ऊँचाई तक जा पहुँचता है। इसमें एक विशे परूँगी। खेख। पता यह होती है कि इसकी शाखाओं में से जटा निकलती | बरचस-संशा पुं० [सं० वर्चस्क ] विष्ठा । मल । (डि.) है जो नीचे की भोर आकर ज़मीन में मिल जाती है और तब | बरछा-संशा पुं० [ब्रश्चन-काटनेवाला ? ] [स्त्री० बरछी] भाला एक नए वृक्ष के तने का रूप धारण कर लेती है। इस नामक हथियार जिसे फेंककर अथवा भोंककर मारते हैं। प्रकार एक ही बरगद की गलों में से चारों ओर पचासों इसमें प्राय: एक बालिश्त लंबा लोहे का फल होता है और जटाएँ नीचे आकर जड़ और तने का काम देने लगती हैं एक बड़ी लाठी के सिरे पर जदा होता है। यह प्राय: जिससे वृक्ष का विस्तार बहुत शीघ्रता से होने लगता है। सिपाहियों या शिकारियों के काम का होता है। भाला।