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बनचौर, बनचौंरी
बनना
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(४) मछली, मगर, घड़ियाल, कछुवा आदि जल में | बनदाम-संज्ञा स्त्री० [सं० वदनाम ] बनमाला। रहनेवाले जतु। बनदेवी-संशा स्त्री० [सं० बनदेवी] किसी बन की अधिष्ठात्री देवी। बनचौर, बनचोंग-संज्ञा स्त्रा० । सं० वन+चमरी ] नेपाल के बनधातु-संशा स्त्री० [सं० ] गेरू या और कोई रंगीन मिष्टी। पहाड़ों में रहनेवाली एक प्रकार की जंगली गाय जिसकी उ०प्रका निदारि चले व्रज को हरि । सखा संग आनंद पूंछ की घेवर बनाई जाती है। सुरागाय । सुरभी। करत सब अंग अंग बनधातु चित्र करि।-सूर । बनज-संशा पुं० [सं० वनज ] (१) कमल । उ०—(क) जय बनना-कि० अ० [सं० वर्णन, प्रा० वण्णन-चित्रित होना, रचाजाना।] रघुवंश-वनज-बन-भानू।-तुलसी। (२) जल में होने-: (१) सामग्री की उचित योजना द्वारा प्रस्तुत होना। तैयार वाले पदार्थ । जैसे, शंग्व, कमल, मष्टली आदि। होना । रचा जाना । जैसे, सड़क बनना, मकान बनना, संज्ञा पुं॰ [सं० वाणिज्य ] वाणिज्य । व्यवसाय । व्यापार ।। संदूक बनना। रोजगार। मुहा०-यना रहना=(१) जीता रहना। संसार में जीवित धनजर-संज्ञा स्त्री० दे० "बजर"। रहना । जैसे,--ईश्वर करे यह बालक बना रहे । (२) उपस्थित बनजात-संज्ञा पुं० [सं० बनजात ] कमल । उ.-बरन बरन रहना । मौजूद रहना । ठहरा रहना । जैसे,—यह तो आपका विकले बनजाता। तुलसी । घर ही है, जब तक आप चाहें, बने रहें। घनजारा-संज्ञा पुं० [हि० बनिज+हारा ] (3) वह व्यक्ति जो बैलों (२) किसी पदार्थ का ऐसे रूप में आना जिसमें वह पर अन्न लादकर बेचने के लिए एक देश से दूसरे देश व्यवहार में आ सके । काम में आने के योग्य होना। को जाता है । टांडा लादनेवाला व्यक्ति । या । ह. जैसे, रसोई बनना, रोटी बनना । (३) ठीक दशा या वरिया । वंजारा । उ०पय ठाद पड़ा रह जायेगा, : रूप में आना । जैसा चाहिए वैसा होना । जैसे, जब लाद चलैंगे धनजारा ।---नज़ीर । (२) पनिया । अनाज बनना ।हजामत बनना । (४) किसी एक व्यापारी । यौदागर । उ.--(क) चितउर गढ़ कर इक पदार्ग का रूप परिवर्तित करके दूसरा पदार्थ हो बनजारा । सिंहलदीप चला वैपारा । मायसी । (ख) । जाना । फेरफार या और वस्तुओं के मेल से एक वस्तु का हठी मरहठी तामें राख्यो ना मवाय कोऊ, छीने हथियार दुसरी वस्तु के रूप में हो जाना । जैसे, चीनी से शरबत सबै डोले वनजारे से ।-भूषण। बनना । (५) किसी दूसरे प्रकार का भाव या संबंध रखने- बनजी-संशा पु. ( सं वाणिज्य ] (1) व्यापार । रोजगार। वाला हो जाना । जैसे, शत्रु का मित्र बनना। (६) कोई (२) व्यापारी । रोज़गार करनेवाला । विशेष पद, मर्यादा या अधिकार प्राप्त करना । जैसे, पनज्योत्स्ना-संशा श्री० [सं० वनज्योत्स्ना ] माधवी लता। अध्यक्ष बनना, मंत्री बनना, निरीक्षक बनना । (७) अच्छी बनड़ा-संज्ञा पुं० [ ? } विलावल राग का एक भेद । यह राग या उन्नत दशा में पहुँचना।धनी मानी होजाना । जैसे,-वे शभहा ताल पर गाया जाता है। देखते देखते बन गए। (८) वसूल होना । प्राप्त होना। बनहाजत-संशा पुं० [एक शालक राग जो रूपक ताल पर मिलना। जैसे,- अब इस अलमारी के पाँच रुपये बन जायेंगे। __बजता है। (९) समाप्त होना । पूरा होना । जैसे, अब यह तस्वीर यनादेवगरी-संशा पुं० [?] एक शालक राग जो एक ताले बन गई। (१०) आविष्कार होना । ईजाद होना। पर बजाया जाता है। निकलना । जैसे,—आज कल कई नई सरह के टाइपराइटर बनत-संशा स्त्री० [हिं० बनना+त (प्रत्य॰)](१) रचना। बनावट। बने हैं। (11) मरम्मत होना । दुरुस्त होना । जैसे, (२) अनुकुलता । सामंजस्य । मेल । (२) मखमल वा उनके यहाँ घड़ियाँ भी बनती हैं और बाइसिकले भी। किपी रेशमी कपड़े पर सलमें सितारे की बनी हुई बेल (१२) संभव होना । हो सकना । जैसे,—जिस तरह जिसके दोनों ओर हाशिया होता है। जिस बेल के एकही बने, यह काम आजही कर सलो। उ०-बनै न घरनत ओर हाशिया होता है उसे चपरास कहते है। बनी बराता ।—तुलसी । बनताई*-संज्ञा स्त्री० [हिं० बन+ताई (प्रत्य॰)] बन की मुहा०-प्राणों पर या जान पर आ बनना-ऐसा संकट सघनसा वा भयंकरता। या कठिनता पड़ना जिसमें प्राण जाने का भय हो। बनतुरई-संशा स्त्री० [हिं० बन+तुरई ] बंदाल । (१३) आपस में निभना । पटना । मित्रभाव होना। धनतुलसी-संज्ञा स्त्री० [सं० वन+तुलसी ] बबई नाम का पौधा जैसे,—आज कल उन लोगों में खब बनती है। (१४) जिसकी पत्ती और मंजरी तुलसी की सी होती हैं। बर्बरी। अच्छा सुन्दर या स्वादिष्ट होना । जैसे,—गने से यह बनद*-संशा पुं० [सं० वनद ] बादल । मेध । ___ मकान बन गया। (१५) सुयोग मिलना । सुअवसर